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________________ अनेकान्त दासी भीतर जाकर काष्ठ के भाजन में कुलमाष लिवा ले गए फिर आदेश दिया कि-आयुष्यमान धान्य ले आई और श्रमण (महावीर) के फैले कर- मुमुक्षकों, श्री भगवान का वन्दन करो। वे पांचों गुरू पात्र में उसे अवज्ञा के भाव से डाल दिया।" आशा पालन को उद्यत हए कि हठात् शास्ता महा (भाग २ पृष्ठ १५२) वीर की वर्जना सुनाई पड़ी-केवली की आशातना ४. "ना कुछ समय में ही ग्वाला कही से कास की एक न करो, गौतम ! ये पांचों केवलज्ञानी अर्हन्त हो सलाई तोड़ लाया। उसके दो टुकड़े किए। फिर गए हैं । अहंन्त, अहंन्त का वन्दन नहीं करते।" निपट निर्दय भाव से उसने श्रमण के दोनो कानो में (भाग ४ पृ० २८४.२८५) वे सलाइयां वेहिचक खोस दो। तदुपरान्त पत्थर इसी प्रकार बहुत से प्रसंग दिगम्बरों के आगमों के उठाकर उन्हें दोनो ओर से ठोंकने लगा।" विपरीत हैं, जिन्हें भावी पीढी प्रमाण रूप में प्रस्तुत करेगी (भाग २ पृ. २१२) और अनायास ही दिगम्बर के विपरीत मार्ग की पुष्टि १. (सलाइयां ठुको और वेदना की अवस्था मे) 'सिद्धार्थ होगी। हमने ऐसे ही कतिपय प्रसंगों के आधार पर प्रका. वणिक के द्वार पर अंजुली पमार दी है"... - "विपुन शन संस्था से विनती की, कि वे ग्रंथ में दिगम्बर सिद्धान्तों केशर, मेवा, द्राक्ष से मधुर और सुगधित पयस उसने (कथानकों) के विपरीत आए प्रसगों का स्पष्टीकरण करें मेरे कर-पात्र में ढाल दिया है। उसके घट कण्ठ से कराएं। तथाहिनीचे उतारने में जो कष्ट हो रहा है, वह पास ही भाग २ पृष्ठ ६ पंक्ति ३-४ क्या दि० मुनि चाँदी की चौकी खड़े श्रेष्ठ के परममित्र खरक वैद्य ने लक्ष्य कर पर चरण रख सकता है? लिया।" (भाग २ पृष्ठ २१४) भाग २ पृ०५१ प. २०-२१ क्या सर्वार्थसिद्धि का जीव ६. "सिद्धार्थ और खरक वैद्य आवश्यक औपधि उपचार नरक, त्रियंचगति में जा के साधन लेकर उद्यान में दौड़े आए हैं। मेरे शरीर सकता है ? को पपासन में ही ज्यों का त्यौ उठाकर एक तेल की भाग २ पृ. १५२ प. १२-१८ क्या द्वारापेक्षण बिना, दासी कुण्डी में बिठा दिया गया है । ....."फिर दो व्यक्तियो के द्वारा अवज्ञापूर्वक दिया ने....."संगसियां लेकर, दोनों कानों के शूलो पर आहार मुनि ले सकता है ? भाग २ पृ. २१२ पं. २५-३० वज्रवृषभनाराच सहनन में पकर बैठाकर एक साथ उन्हें पूरी शक्ति से खीचा । ....."उस क्षण बरबस ही मेरे मुख से एक भयकर कीले ठुक सकते हैं क्या? भाग २ पृ. २१४ पं. २५-36 क्या मुनि उपसर्ग दशा में पीख निकल पड़ी। ऐसी वेदना की अनुभूति हुई, जैसे कोई वजवाण ब्रह्माण्ड के हृदय को भेदकर मेरे आहार को जा सकते हैं ? आर पार निकल गया हो।" (भाग २ पृ. २१५) भाग २ पृ. २१५५. २८-३५ तेल की कुण्डी में बिठाकर मर्दन किया जाना और मुख ७. "कांटों और डालो के खुप जाने के कारण असह्य से चीख निकलना महावीर में वेदना से शरीर टीसने लगता है।" संभव है क्या? (भाग २ पृष्ठ १०) भाग २ पृ. १०५. २३-2५ असह्य वेदना से शरीर टीसना ८. "चम्पा पहुंच कर अपने पांचों शिष्यों (साल, महासाल, गागली, पिठर और स्त्री यशोमती) सहित श्री महावीर मे कैसे ठीक है? भाग ४ पृ. गौतम समवशरण मे यों आते दिखाई पड़े जैसे वे पांच १६०५० २३- समवशरण (केवली अवस्था) सूर्यों के बीच खिले एक सहस्रार कमल की तरह चल में उपसर्ग (तेजोलेश्या का) दिगम्बरों में मान्य है? रहे हैं। पांचों शिप्यों ने गुरू को प्रणाम कर, आदश भाग ४ पृ० १६०५० २८ समवशरण में हाहाकार संभव चाहा। गौतम उन्हें श्री मण्डप मे प्रभु के समक्ष है क्या?
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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