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________________ दिगम्बरत्व का क्या होगा? कुन्दनलाल जैन प्रिन्सिपल आज जनतंत्र का युग है, जिसका काम जोड़ना है भ० महावीर की २५सौंवी निर्वाण शताब्दी के तोडना नहीं । जैनधर्म के जहाँ तक प्राचीनतम प्रमाण मिलते अवसर पर प्रयाम भी हुए कि जैनियों की सभी धारायें उपहैं वह भी लिच्छवियों के गणराज्य का युग था। लोगो मे धारायें सम्मिलित होकर जैनधर्म की एक विशाल विस्तृत जहाँ विचारो की विभिन्नता होती थी वहाँ पारस्परिक एव अगाध जैन गगाधारा बन जावे पर यह सब कुछ न हो सौहाई भी रहता था। भ० महावीर के निर्वाण के कुछ सका । फिर भी कुछ सीमा तक परस्पर बिल्कुल क्षीण रूप ही वर्षों बाद जैनधर्म दो शाखाओ मे विभाजित हो गया। से नजदीक तो हुए ही फिर भी कट्टरता तो बनी ही रही। यद्यपि भारतवर्ष के सास्कृतिक इतिहास मे श्रमण अम्नु, यहां मुझे दिगम्बर सम्प्रदाय मे जो कुछ शिथिलाचार सस्कृति का महत्वपूर्ण योग दान रहा है जो वैदिक संस्कृति फैल रहा है उस पर कुछ टिप्पणी करनी है। के विकल्प के रूप में विकसित हुई थी और विगत ढाई यद्यपि नैतिक दुर्बलता, चारित्रिक पतन, भ्रष्टता एवं हजार से अधिक वर्षों से भारतीय दर्शनों को प्रभावित शिथलाचार सभी समाजो, धर्मों में व्याप्त है यहाँ तक कि करती रही। आज भी श्रमण सस्कृति की दोनो धाराए जैन सम्पूर्ण देश और विश्व भी इन दुर्बलताओं से नहीं बच पा और बौद्ध भारतीय इतिहास को विशिष्ट रूप से रेखांकित रहे है अतः किसी तरह का उपालभ कुछ तर्क संगत तो कर रही है। नही जचता पर जब ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर कुठारापात की नौबत आ जाय तो फिर मन बिलबिलाता तो है ही। प्रकृति का कुछ नियम सा है तथा इतिहास भी साक्षी । है कि जब भी कोई धर्म समाज या सम्प्रदाय विकास की यह सब बड़े खेद और लज्जा का विषय है तथा भ. चरम परणति पर पहुंचते हैं तो उनमे विखडन या विभाजन महावीर की वाणी को कलंकित करना है। खाद्य पदापों प्रारम्भ हो जाता है, इसी नियम या परम्परा वश जैनधर्म में मिलावट, घी मे चर्बी मिलाना, टैक्सों की चोरी करना, भी दिगम्बर और श्वेतावर दो धाराओ मे विभक्त कालाधन जोड़ना, झूठे विल बनवाना, रेलवे तथा जीवनहुआ। आचार्य भद्रबाह के नेतृत्व में दिगम्बर दक्षिण मे बीमा निगम आदि संस्थाओं से जानी Claim वसूलना तथा आचार्य स्थूलभद्र के नेतृत्व मे श्वेताम्बरत्व उत्तर- आदि । जहां जैन श्रावक पक्ष को दुर्बलता एवं शिथिलता को पश्चिम में बड़े जोरो से विकसित एव प्रफुल्लित हुआ। उजागर करते हैं वही ये ही श्रावक मुनि वर्ग को भी दोनों ही सम्प्रदायों मे बड़े-बड़े उच्चकोटि के दिग्गज शिथल होने में सहयोग देते है। उपर्युक्त भ्रष्टताओं में जैन विद्वान हुए और उत्कृष्ट शास्त्रो की सर्जना हुई और धीरे लोग अग्रणी होते जा रहे है । अभी सुना है कि दिल्ली के धीरे कुछ मौलिक सैद्धान्तिक मत भेदो की सर्जना होती तथा कथित कुछ जैन करोड पतियो ने रगून और हांगकांग गई। यह सब भ• महावीर ने नहीं सिखाया था अपितु से बादाम, पिस्ता, किसमिस आदि मूखे फलों के करोड़ों परवर्ती आचार्यों मुनियो एवं विद्वानों की विचक्षण बुद्धि रूपये के झूठे बिल बनवाये और जहाजों में मेवों की जगह वैभव का कौशल था कि दोनो धारायें दृढ़ से दृढतर होती भूसा भरवाकर उन जहाजो को डुबवा दिया तथा L. I C. गई और वट वृक्ष की भांति विशाल मजबूत होती रही। से हरजाना वसूलना चाहा पर विशी गुप्तचरों की सतर्कता इन दोनो धाराओं की कुछ उपधारायें भी प्रवनित हुई। से उनकी जालसाजी का भडाफोड हो गया और अब वे बीच के काल में कुछ वैमनस्य भी फैला। अस्तु कानून की गिरफ्त में है। चर्बी कांड मे तो जैन व्यापार
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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