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________________ एक (आत्मा जान सकेगा। अगला अनन्त वीर्य, अनन्त शान, अनन्त दर्शन रूप तेज के प्रकट रूप से परिणमन करने वाले स्कन्ध को पुद्गल कहा है। हो जाने से अतीन्द्रिय होता हुआ ज्ञान और सुख रूप परि. अर्थात बढ़ने और घटने का नाम पुदगल है। लेकिन नियम णमन करने लगता है। सर्वज्ञ का ज्ञान इन्द्रियाधीन न सार में पुदगल की व्याख्या निश्चय और व्यवहार-नय के होने के कारण और स्वयं आत्मजन्य होने के कारण केवली द्वारा की गई है। उनका मत है कि निश्चयनय बी दृष्टि से परमाणु ही पुद्गलद्रव्य द्रव्य कहलाता है और व्यवहारऔर वर्तमान काल सम्बन्धी समस्त द्रव्यों की पर्यायों को नय की अपेक्षा स्कन्ध पुद्गलद्रव्य कहलाता है।" पुद्गल जानता है इसलिए उसके कुछ भी परोक्ष नही होता है।" की यह व्याख्या किसी भी अर्धमागधी बागम में उपलब्ध अतीन्द्रियज्ञान सप्रदेशी, अप्रदेशी, मूर्त, अमूर्त अनुत्पन्न और नही है। विनष्ट पर्यायों को जानता है ।" सर्वज्ञ का ज्ञान क्षायिक पुदगल की पर्याय कहलाता है क्योंकि वह कर्मों के क्षय से होता है। इसलिए __ आचार्य ने पुद्गल की दो पर्यायें बतलाई हैं-स्वभाव आचार कुन्दकुन्द ने कहा है कि सर्वज्ञ का क्षायिक ज्ञान त्रिकाल- पर्याय और विभाग वर्ती द्रव्यों और उनकी पर्यायों को एक साथ जानता है। परिणमन स्वभाव पर्याय कहलाती है और परमाणु का यदि वह तीन लोक में स्थित कालिक द्रव्यो और उनकी स्कन्ध रूप परिणमन विभाव पर्याय है। पर्यायों को यूगपद न जानकर क्रमशः जाने तो सर्वज्ञ एक पूर्वगलके मेद द्रव्य को भी उसकी समस्त पर्यायों सहित नही जान सकेगा" पंचास्तिकाय मे पुद्गल के निम्न कित चार भेद बत. जो अनन्त पर्यायों सहित एक (आत्मा) द्रव्य को नहीं लाये गये हैंजानता है तो वह अनन्त द्रव्य को युगपत कैसे जानेगा? १. स्कन्ध (खंध)-अनन्त समस्त परमाणुओं का पिंड। अर्थात वह सर्वश कैसे कहलायेगा ?" दूसरी बात यह भी २. स्कंध देश (खंधदेसा)-स्कन्ध का आधा भाग । है कि यदि सर्वज्ञ का ज्ञान अर्थों की अपेक्षा करके क्रम: ३. स्कन्धप्रदेश (खधपदेसा)-स्कन्ध का चौथाई भाग। उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि कोई शान ४. परमाणु (परमाणु)-अविभागी। नित्य, क्षायिक और सर्व-विषयक (सर्वगत)नहीं हो सकेगा नियमसार ८५ में पुद्गल दो प्रकार का बतलाया मश के ज्ञान का माहात्म्य यही है कि वह तीन लोक में गया है-(१) स्कन्ध और (२) परमाणु । स्थित त्रिकालवर्ती विभिन्न प्रकार के समस्त पदार्थों को पुदगल स्कन्ध सदैव एक साथ जानता है।" आचार्य ने पुद्गल स्कन्ध छह प्रकार का बतलाया सर्वज्ञ समस्त द्रव्यों की भूतकालीन, भविष्यत-कालीन "और वर्तमान-कालीन पर्यायों को भेद सहित वर्तमान-कालीन १. अतिस्थूलस्थूल (अइथूलथूल)-पृथ्वी, पर्वत आदि जो पर्यायों की तरह स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष ही जान लेता है। तोड़ने पर टूट जाएं लेकिन पुनः मिलाने पर मिलन सर्वज्ञ के ज्ञान की दिव्यता तो यही है कि वह उत्पन्न और सकें। विनष्ट पर्यायो को प्रत्यक्ष रूप से जान लेता है।" २. स्थूल (थूल)-घी, जल, तेल आदि जो काटने पर पुल्ल द्रव्य भी स्वयं आपस में मिल जायें। बाचार्य कुन्दकुन्द ने पुद्गल द्रव्य का विवेचन पंचास्ति- ३. स्थूलसूक्ष्म-छाया, आतप आदि जो देखने में स्थूल काय, नियमसार और प्रवचनसार मे किया है। उनका लगें किन्तु जिन्हें पकड़ा, काट ना जा सके। द्रव्य विवेचन भूतपूर्व है। पुद्गल को उत्तराध्ययन की ४. सूक्ष्म स्थूल-चक्षु इन्द्रिय के अलावा शेष चार इन्द्रियों तरह स्पर्श, रम, गन्ध और वर्ण वाला मूर्तिक कहा है। के विषय-रस गंध, स्पर्श और शब्द । वस्वासूत्रक र उमास्वामी ने भी पुदगल का लक्षण यही सूक्ष्म-कर्मवर्गणा रूप होने योग्य स्कन्ध सूक्ष्म है जिन्हें कहा है। पंचास्तिकाय में कुन्दकुन्द ने बादर और सूक्ष्म इन्द्रियों से ग्रहण नहीं किया जा सकता है।
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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