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________________ "भाव संग्रह" की लिपि प्रशस्ति 0ले. कुन्दनलाल जैन प्रिन्सिपल "भाव संग्रह" जैन साहित्य की प्राकृत भाषा का सर्वो- विराजमान थे। इसी समय भ. पद्मनन्दी, भ. शुभचन्द्र, तम सेवान्तिक एवं दार्शनिक. ग्रंथ है यह ग्रन्थराज बाचार्य भ.जिनचन्द्र, म. प्रभाचन्द्र के शिष्य मण्डलाचार्य श्री विमलसेन के शिष्य देवसेन ने विक्रम संवत् ११० केलग- धर्मचन्द्र जी महाराज की परम्परा में सावडा गोत्रिय भग रवावा । आचार्य देवसेन की दर्शनसार, बाराधना खण्डेलवाल वंशी साह वीमा और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सारतत्वसार, लषु नयचक्र आलाप पद्धति आदि अन्य विजयश्री के वंश में साह टेह नामका बड़ा धर्मात्मा और कबहमल्य कृतियों का निर्माण किया था, वे अपने समय साहित्यानुरागी एवं गुरुभक्त सुश्रावक पुन हुआ जिसने के बहुश्रुत विख्यात विद्वान् थे। चूंकि भाव संग्रह मुद्रित पंचकल्याणक व्रत के उद्यापनार्थ यह "भाव संग्रह ग्रन्थ हो सका है और इसके विषय में विद्वानों द्वारा सविस्तार लिखा कर आचार्य श्री हेमकीर्ति के लिए ज्ञानवरणी कर्ममहापोह हो चुका है अतः प्रस्तुत लेख का लक्ष्य "भाव क्षय हेतु प्रदान किया था। साह बीझा से साह टेहू तक संग्रह की चर्चा या विवेचना नहीं है अपितु "भाव संग्रह" के वंश वक्ष में उनके सभी पुत्रों और उनकी पत्नियों का की वि० सं० १६०६ में प्रतिलिपि कराई गई थी। इस मामलेट किया गया है। प्रति में लिपिकर्ता की विस्तृत प्रशस्ति दी गई है जो ऐति उपर्युक्त भ. श्री पद्मनन्दी आदि दिल्ली-जयपुर हासिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है अतः उसी लिपि शाखा का प्रतिनिधित्व करते थे, जिनका परिचय अन्य प्रशस्ति को प्रकाश में लाने के लिए ही यह लेख लिखा उपलब्ध होता है । साह टेहू ने "णायकुमार चरिऊ" की भी प्रति लिखवाकर भ० ललित कीति को सं० १६१२ भाव संग्रह" की यह प्रति मूलगाथा मात्र है और ज्येष्ठ सुदी ५ शनिवार को प्रदान की थी। "णायकुमार यह ५८ पत्रों की पूरी प्रति रही होगी। पर दुर्भाग्यवश हमारे हमें इसका अन्तिम पत्र ५८वां ही सुरक्षित चरिउ" महाकवि पुष्पदंत की श्रेष्ठ कृति है। क्या७पत्रों का क्या हुआ कुछ नहीं कहा जा यह साह टेहू अपने समय का बड़ा प्रबुद्ध श्रावक था बहरहाल इतिहास की दृष्टि से यह बकेला ही जिसे ग्रंथों के प्रचार प्रसार में अत्यधिक अभिरुचि थी और पर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है अतः मैंने इसे बड़ी सुरक्षापूर्वक मानवृद्धि के लिए धर्मग्रंथ लिखाकर आचार्यों व भट्टारकों संबोकर रख छोड़ा है। को उपलब्ध कराता था । धन्यास्ते सुकृतिनः । भाव संग्रह के इस अन्तिम पत्र की लम्बाई २८ से. गाथा को लिपि प्रशस्ति मी. तवा चौड़ाई १२ से. मी. है। इसमें प्रत्येक पत्र पर संवतु १६०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि भौमवासरे श्री आदि ११-११ पंक्तियां है तथा प्रत्येक पंक्ति में ३४-३४ बक्षर नाथ चैत्यालये ताक्षकगढ़ महादुर्गे महाराजाधिराज गउ विद्यमान हैं। इस प्रति का लिपिकाल संवत १६० वर्षे श्री रामचन्द्र राज्ये प्रवर्तमाने श्री मूलसंघे नंद्याम्नाये ज्येष्ठ सुदि भौमवार लिखा है। यह प्रति तक्षकगढ़ बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ. (टोडा राबसिंह) नामक महादुर्ग के बादिनाथ चैत्यालय में श्री पपनंदीदेवा तत्पट्टे भ. श्री शुभचन्द्रदेवा तत्पटे भ. लिखी गई थी। श्री जिनचंद्रदेवा तत्पट्टे श्री प्रभाचन्द्रदेवा तत्पट्टे शिष्य "भाव संग्रह के लिपिकास में तक्षकगढ़ के शासक मंडलाचार्य श्री धर्मचंद्रदेवाः तवाम्नाये खंडेलवालान्वये महाराजाधिराज श्री रामचन्द्र जी राव राज सिंहासन पर साबड़ा गोत्रे साह बीशा तत्भार्या विजयश्री तत्पुत्राः
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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