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ओम अहम
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परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।।
वर्ष ३५ किरण ३
वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण सवत् २५०८, वि० स० २०३६
जुलाई-सितम्बर
१९८२
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सीख जिनराज-चरन मन, मति बिसर। को जान फिहि बार काल को, धार अचानक प्रानि परे। देखन दुख भजि जाहि दशों दिशि, प्रजत पातक पंज गिरे। इस संपार सार सागर सौं, और न कोई पार करै ।। इकचित ध्यावत वांछित पावत, प्रावत मंगल, विघन टरै। मोहनि धुल परो माथे चिर, सिर नावत तत्काल झरे। तबलौं भजन संवार सयाने, जबलौं कफ नहि कण्ठ पर। अगनि प्रवेश भयो घर 'भूधर' खोदत कप न काज सरै॥
रेनर, विपति में धर धीर। सम्पदा ज्यों आपदा रे, विनश जैहे वीर ॥ धूप-छाया घटत-बढ़ ज्यों, त्याहि सुख-दुःख-पीर । दोष 'द्यानत' देय किसको, तोरि करम-जंजीर।