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________________ साहित्य-समीक्षा जिनवरत्व नवम्: या है जो अनुसंधानकर्ताओं के बड़े उपयोग का है, उन्हे संपादक : डा. हुकुमचन्द भारिल्ल, प्रकाशक : पं० एक ही स्थल पर ग्रन्थतालिका उपलब्ध होगी तथा भटकना टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर । प्रकाशनवर्ष १६८२, नहीं पडेगा। ग्रंथ उपयोगी बन पड़ा है। डा. पी. सी. जैन पृष्ठ १८०, छपाई व जिल्द बढ़िया, मूल्य ४ से ६ रुपये तक। बधाई के पात्र हैं। उन्होंने परिश्रम पूर्वक समस्या सरल कर 'मय' एक अनादि शैली है जो सापेक्ष दृष्टि से प्रयुक्त दी है। अन्त में अकारादि क्रमबद्ध सूची भी दी गई है। होने पर सम्यक् और निरपेक्ष दृष्टि से प्रयुक्त होने पर शोधाथियों के लिए यह पुस्तक उपयोगी है।-बधाई। मिथ्या होती है। जब से समयसार जैसे अध्यात्म ग्रन्थो का xx पठन-पाठन जन साधारण में प्रचलित हुमा-नयवाद दिल्ली जिनपन्थरत्नावली: विशेष चर्चा का विषय बन गया है। कई लोग तो विप- लेखक : श्री कुन्दनलाल जैन, प्रिंसिपल, दिल्ली; रीत धारणा ही बना बैठे। डा. भारिल्लजी ने जहाँ विषय प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, सन् १९८१, कुल पृष्ठ ४२५, का भथन कर अपनो शैली में अपने विचारो को प्रस्तुत मूल्य : ७० रुपए, छपाई जिल्द आदि उत्तम । किया है वहाँ उन्होने विभिन्न आचार्य-मन्तव्यो को प्रस्तुत प्रस्तुत कृति दि. जैन सरस्वती भण्डार नया मन्दिर, कर बडी बुद्धिमानी की है। इससे जो लोग उन्हे सोनगढ़ी धर्मपुरा दिल्ली के ग्रन्थो की सूची है, जिसे लेखक ने बड़ी कैम्प का समझ बैठे हो, उन्हे निश्चय ही विषय निर्णय में कठिनाइयों में परिश्रम पूर्वक लिखा है। अभी तक अन्य आचार्य वाक्य सहायक होगे। डा० साहब ने विषय को भण्डारी को प्रकाशित सूचियो मे ऐसा व्यवस्थित क्रम कम बहुत स्पष्ट किया है ऐसा मेरा मत है। आचार्य वाक्यो ही देखने में आया है। इसमे ११ कालमों द्वारा १२६१ की कसौटी के अस्तित्व मे मै क्या लिख? निश्चय ही पचयी ग्रन्थो का परिचय वैज्ञानिक ढग से दर्शाया जाने से शोधाभारिल्ल जी का प्रयास सराहनीय है अन्यथा अनेक ग्रन्थों थियों को सरलता हो गई है, वे अल्प परिश्रम से ही अपना अभीष्ट सिद्ध करने में समर्थ हो सकेंगे। २०८ पृष्ठो के को एकत्रित कर देखने का प्रयास ही कौन करता है। परिशिष्ट मे प्रति ग्रंथ के आदि-अन्त अशो को दर्शाया गया बधाई। xx है और कुछ विशेष भी दिया गया है। भट्टारकीय ग्रन्थभण्डार नागौर ग्रन्थसूची . निर्माता : डा० प्रेमचन्द जैन जयपुर, प्रकाशक : डाइ लेखक से विदित हुआ कि उक्त प्रकाशन लेखक के श्रम रेक्टर, संन्टर फोर जैन स्टडीज राजस्थान, जयपुर। का प्रथम अश है, ऐसी कई कलेवरो की सामग्री अभी भी प्रकाशन वर्ष १९८१, पृष्ठ २६६, छपाई व जिल्द उत्तम, प्रकाशन की प्रतीक्षा में है। प्रस्तुत प्रकाशन का विद्वानो में मूल्य ४५ रुपए। स्वागत हुआ है और होगा; हम प्रिंसिपल साहब के उत्साह प्रस्तुत सूची मे भण्डार के १८६२ विभिन्न ३० विपयो की सराहना करते है-वे शोध विषयो के भी योग्य प्रतिके ग्रन्थों का १२-१३ कालमों में विस्तृत विवरण दिया . पादक हैं-~बधाई।। -सम्पादक (पृ० ३२ का शेषाश) कुप्रथाये है । यदि ऐसे अवसरो पर लोगो में स्वाध्याय का हो। पर, आज जयन्तियों का उद्देश्य मानपुष्टि अथवा । प्रचार किया जाय, उन्हे स्वाध्याय व दर्शन करने, रात्रि स्वार्थलोभ में अधिक दिखाई देता है। धार्मिक उत्सव की भोजन त्याग व अभक्ष्य त्याग करने और सदाचार पालन महत्ता प्राय किसी बडे राजनैतिक नेताके आनेसे मापी जाती जैसे नियम दिलाकर सन्मागों को प्रशस्त किया जाय, है । जहाँ वीतरागी महावार की दिव्यध्वनि के लिए अग- विवाह आदि में दान-दहेज और सौदाबाजी न करने की पूर्वधारी गणधरो की खोज करनी पड़ी वहाँ आज सांसारिक प्रतिज्ञा को कराया जाय तो सभी उत्सव सार्थक हों। विषय-कषाय और अभक्ष्य सेवी जैसों को प्रमुखता दी जाती " खेद है कि, आज मद्य-मास-मधु जैसे अभक्ष्य खाद्य है। थोड़ी देर के प्रसंग में धर्म के नाम पर प्रभूत सम्पत्ति बनते जा रहे है। कन्द-मूल त्याग की बात तो पीछे जा न दिखावे में व्यय कर दी जाती है। अहिंसा की जय तो बोली ॥ पड़ी है, वाज लोग अण्डा तक से भी परहेज नही करते । जाती है पर अहिंसा के अंग-जीव रक्षा, दीन भोजन, युवकों का कर्तव्य है कि वे इनके सुधार में कटिबद्ध ज्ञानप्रचार प्रसार आदि पर जार नही दिया जाता। एस हों, स्वाध्याय के अभ्यासी बनें और जिन-शासन को समझें। ही भगवान के अभिषेक आदि की बोलियों जैसी प्रथाएं भी धर्म की बागडोर उन्ही के हाथों मे है-वे इसे उबारें या गरीब साधारण गृहस्थों के अधिकार हनन मे हैं, ये सब ही डुबायें यह उन्हें सोचना है, सोचिए ! -सम्पादक
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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