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________________ ब्रह्म जिनरास सम्बन्धी विशेषज्ञातव्य और भुवनकीति विशेष रूप से जहाँ रहे और उनकी उरलेख स्वर्गीय मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने अपने भद्रारक गद्दी जिस स्थान पर थी, उसका पता लगाना 'जन गुर्जर कवियो' के भाग १ खण्ड ३ में वर्षों पर्व बहुत ही जरूरी था। क्योकि वहीं उनकी रचनाओं की किया है। आश्चर्य है डा. प्रेमचन्द रावका ने ऐसे प्रसिद्ध प्राचीनतम प्रतियाँ व सर्वाधिक रचनाएँ मिलनी सभव है। ग्रन्थ का भी उपयोग नहीं किया। ब्रह्म जिनदास की ४ पर वहाँ पर अभी तक खोजही नहीं की गई, अन्यथा बहुत- रचनाओ का उरलेख जैन गुर्जर कवियों भाग १ पृष्ठ ५३ सी और महत्व की रचनाएँ और ब्रह्म जिनदास के जीवन मे और ५ ऐसी रचनाओ का उर लेख जो भाग १ के बाद सम्बन्धी विशेष जानकारी मिलनी सभव थी। ब्रहा जिनदास ज्ञात व प्राप्त हुयी उनका विवरण जैन गुर्जर कवियो की छोटी रचनाएँ तो और भी बहुत-सी मिलनी चाहिये भाग ३ के पृष्ठ ४७६ मे किया गया है। पहले भाग में क्योकि कवि ने लम्बी आयु पायी। और उनका मुख्य काम वेवल हरिवंश रास एवं थेणिकरास आदिअत छपा था साहित्य-निर्माण का ही प्रधान रूप से रहा है। भट्टारको यशोधर रास, आदिनाथ रास का आदिअन्त विवरण के साथ ब्रह्मचारी रहते और विचरते रहे है, उनकी अलग भाग ३ में छपा है। तीसरे भाग मे हनुमन्तरास, समर्माकत अलग से कोई जिम्मेवारी प्राय नहीं रहती। आने-जाने रास और सामग्वासो रास की प्रतियाँ तो डा० रावका वाले लोगो से मिलना और उपदेश देना, धार्मिक प्रवृत्तियो को अन्य भण्डारी में मिल गई, पर करकण्टु रास एव धर्म के लिए प्रेरणा करना ये सभी काम भट्टारक रवय करते पच्चीसी की जानकारी उनको नहीं मिल सकी। अत इन है। तथा उनके साथ रहने वाले ब्रह्मचारियो को साहित्य दोनो रचनाओ का विवरण नीचे दिया जा रहा है। रचना आदि के लिए काफी समय मिल जाता है। मै करकड राम (पूजा फल पर) जयपुर गया तब मुझे जो ब्रह्म जिन दास की रचनाओं का आदि-~-वीर जिणेसर प्रणमीने, मरसती स्वामिणि देवि, सग्रह-गुटका दिखलाया गया था, मेरे ख्याल से उस एक श्रीसकलकीरति गुरू वादिमु, बली भुवकीरति मुनि देव ।। गटके मे ही कवि की छोटी-मोटी ३०-४० रचनाएँ होगी। तहा परसादे निरमलो, रास करु अति चग। इस दृष्टि से रावका जी ने यदि अधिक भण्डारो का पूजा फलह वेवरणबु, मनि धरि भाव उनंग ॥२ अवलोकन किया होता तो बहुत-सी और भी रचनाए अत-अचल ठाम देउ निरमलो, मजने स्वामी देव, मिलनी सभव थी। मुझे ताजुब होता है कि नागौर के हदास छड तम्ह तणो, जनमि जनमि करु सेव ॥१ भट्टारकीय भण्डार का भी उन्होने उपयोग नहीं किया, श्री सकलकीरति गुरु प्रणमीने, मुनि भुवनकीरती भवतार । जबकि वह दिगम्बर शास्त्र भण्डारो मे सबसे बड़ा है और रासकीयो मे रुवडो, बह्म जिनदास कहे सार ॥२ नागोर कोई दूर भी नहीं है। इसी तरह ब्यावर के सरस्वती पठइ गुणई जे साभले, मन धरि अविचल भाउ । भवन के ग्रन्थ सग्रह का भी उपयोग किया नही लगता। मन वाछित फल तेलहे, पामे सिवपुरि ठाउ ॥३ इसलिए उनकी खोज मे तो अधूरी ही मानता हु, खैर । धनद नाम गोवलीयो, एक कमल करि चग । जो भी, मेरे जितना भी कर सके, अच्छा ही है मैने थोडी- पूज्या जिणवर मुनिग्ली, फल पाम्या उत्तग ॥४ सी खोज की तो मुझे ऐसी रचनाओ की जानकारी मिल ये कथा रस माभलि. भवियण सयल सुजाण । गई, जिनका उल्लेख रावका जी ने अपने शोध प्रबन्ध में पूजो जिणवर मनिरली, असट पगारि गुण भान ॥५ नही किया है। साधारणतया 'ब्रह्म जिनदास' की रचनाएँ एक कमल फलविस्तर्यो, सरग मुगति लगि चग । श्वेताम्बर भण्डारो मे अधिक नहीं मिलती, विशेषतः अनुदिन जे जिन पूजीसे, तेहने फल उत्तंग ॥६ बीकानेर जैसलमेर आदि पश्चिमी राजस्थान के श्वेताम्बर साचो धरम सुहावणो, थोड़ो कीजे महन्त । भण्डारों में । पर कवि की रचनाओ की भाषा गुजराती वड बीज जिमि रूवडो, फल दीसे अनन्त ॥७ प्रधान होने से गुजरात के श्वेताम्बर भण्डारी मे इति करकंड महामुनीश्वरनीकथा पूजाफलम ममाप्त म.भ. तो मिलती ही हैं । और उन रचनाओ की प्रतियों का (शेष पृष्ठ पर)
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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