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________________ पचास वर्ष पूर्व- दो मौलिक-भावण [ अतीत के संस्मरण उस काल की स्थिति के दर्पण होते हैं। आज से ५० वर्ष पूर्व जाति समाज और देश की क्या स्थिति थी और साहू-दम्पति के क्या अरमान थे, इसका पूरा चित्र निम्न दो भाषणों में अंकित है। ये भाषण सन् १९३२ के हैं जो 'स्व० साहू शान्तिप्रसाद जैन तथा स्व० श्रीमती रमारानी जैन ने अपने दाम्पत्य सूत्रबन्धन के अवसर पर दिए थे। दोनों भाषण वीर सेवा मन्दिर में लिपिबद्ध रूप मे सुरक्षित है। उन्हें पाठको के चिल्लन व तद्रूप आचरण की प्रेरणा हेतु 'अनेकान्त' में प्रकाशित किया जा रहा है। निश्चय ही साहू जी की स्मृति की चन्दन-सुरभि आज भी हमें सुवासित कर रही है। हमारे नमन । सम्पादक ] साहू श्री शान्तिप्रसाद जंन का अपने विवाहोत्सव पर दिया हुआ भाषरण : पूज्य गुरुजनों तथा उपस्थित सज्जनो ! आज अपना देश जिस परिस्थिति में से गुजर रहा है उन्हें विचार करते हुए विवाह की समस्या एक बडी हो जटिल व विकट समस्या हो रही है। नहीं कहा जा सकता इसके उपरान्त हम देश धर्म तथा समाज के प्रति वहाँ तक अपने कर्तव्य का पालन कर सकते है । विवाह करना एक बहुत बड़ी जरूरत तथा पहले से कई गुना अधिक जिम्मेदारी को अपने सिर पर लेना है। मेरा विद्यार्थी जीवन होने से यद्यपि मैं इस जिम्मेदारी को उठाना नही चाहता था, परन्तु अपने हितैषी गुरुजनों और आप सब सज्जनों की जब यही इच्छा है तथा आज्ञा है कि मुझे इस गृहस्थाश्रम के जुए को उठाना ही चाहिए तब मेरे लिये उसके आगे नतमस्तक हो जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह जाता। ऐसी दशा मे इस विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए आप सब सज्जनों को को कष्ट हुआ है उसके लिए आभार प्रकट करने तथा स्वागत करने का मेरा अधिकार नहीं रह जाता। विवाह सम्बन्ध एक नैतिक और धार्मिक सम्बन्ध है जो दो प्राणियों को अपनी अध्यात्मिक तथा लौकिक उन्नति तयां अग्ने देश व समाज की सेवा के लिये सहायक होता है। विवाह नियमित संबम है। इसमें सन्देह नहीं यह एक प्रकार का बन्धन भी है। स्त्री के लिये पुरुष और पुरुष के लिये स्त्री बन्धन रूप है। इस बन्धन को स्वीकार करने पर मनुष्य बहुत से अंशो में अपनी स्वतन्त्रता खो बैठता है तरह-तरह की चिताओं आपदाओं तथा जिम्मेदारियों के दलदल में फंस जाता है, इस तरह एक अच्छा खासा बन्दी बन बैठता है । समाज और देश की गिरती हुई दशा को रोकने के लिये बड़े सुधारो की नितान्त आवश्यकता है । विवाह आदि अवसरों पर तो फिजूलखर्ची, आडम्बर बनावट और बेहूदी रम्मी ने अपना घर बना लिया है इनसे एकदम छुटकारा पाना कतई जरूरी है। इस अवसर पर जो कुछ भी सुधार हो सका है उसका विशेष श्रेय पूज्य श्रीयुत सेठ डालमिया जी को है। वह धन्य है। किन्तु यह भी मानना पडेगा कि अभी और बहुत से सुधारों की गुंजायण इसमे रह जाती है। संसार विशेषकर हमारा देश इस समय बिल्कुल एक निर्धन अनियन्त्रित और अनियमित स्थिति में से गुजर रहा है। हमारा भविष्य देश के भविष्य पर निर्भर है । अभी भविष्य अन्धकार मे है। नहीं कहा जा सकता कि जीवन गति क्या होगी। परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि वह हम दोनों को बल प्रदान करें। हममें इस भार को सहन करने की शक्ति हो। आप गुरुजन और महानुभाष हमको आशीर्वाद दें कि हम अपनी जीवन नौका को संसार समुद्र में हर प्रकार के कष्ट आंधी- झोंकों का सामना करते हुए अपने ध्येय पर पहुच सकें।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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