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________________ १४ वर्ष ३५, कि२ पपश्री की हमजोली सखियां वर से हंसी-मजाक करने वाह: लगीं। वर से उन्होंने दोहे पढ़वाए और फिर दोनों का अपम्रश-काव्यों के अध्ययन से पता चलता है कि उस विवाह हो गया।' समय बहु-विवाह प्रथा का पर्याप्त रूप में प्रचलन था। क्या पौराणिक पात्र और क्या युगीन पात्र, सभी में यह इसी प्रकार 'भविसयतकहा' में धनपति एवं कमलश्री प्रवृति देखी जाती है। हां, अन्तर इतना ही है कि के विवाह के अवसर पर भवन की सजावट, तोरणबन्धन, पौराणिक पात्र सहस्रों विवाह रचाते थे और युगीन पात्र रंगोली, चौक विविध मिष्ठान्न, आभूषण आदि की २-२, ४-४ चक्रवर्ती सम्राट भरत की ९६ सहस्र रानियां,' सुव्यवस्थाएं कर प्रीतिभोज का वर्णन किया गया हैं। चम्पानरेश श्रीपाल की ८ सहस्र रानियां,' बसुदेव की एक ___जंबूसामिचरिउ मे वैवाहिक भोज का सुन्दर वर्णन सहस्र से अधिक रानियों को चर्चाएं आती हैं। मिलता है। उसमे तृणमय आसनों पर आगन्तुको को भोज बहु-विवाह-प्रथा में अपभ्रंश के कवि स्वयं भी बड़े कराये जाने तथा ग्रीष्मऋतुओं में सुगन्धित सरस पदार्थों से रासक मानसपटाने रसिक प्रतीक होते हैं। पउमवरिउ के लेखक कविराज सरावोर तालपत्रों से सभी पर हवा करने के उल्लेख चक्रवती नाम की उपाधि से विभूषित महाकवि स्वयम्भ मिलते हैं। भोजन में कर नामक धान के चावल से निर्मित की अमृताम्बा एवं आदित्याम्बा नाम की दो पत्नियां थी' मीठे भात, खट्टे आंचार, चटनी एवं तक्र, मूग के बने हुए जिनको प्ररणा एव उत्साह स काब न पउपचार व्यंजन आदि कटोरियों में सजा कर परोसे जाने तथा __गम्भीर महाकाव्य की रचना की। भोजनोपरान्त सुगन्धित द्रव्य एवं ताम्बूल आदि के खिलाये जंबूसामिचरिउ के लेखक महाकवि वीर की भी चार जाने के उल्लेख मिलते है। साहित्यरसिक पत्नियां थीं जो उनकी कबिता-कामिनी की अजस्र प्रेरणा स्रोत थीं ।उनके नाम है जिनमती, पद्मावती, प्रीतिभोज के बाद मंगल मंत्रों एवं घी की आहुति के लीलावती एवं जयामती।" साथ वरमाला डालकर विवाह की अन्तिम प्रक्रिया सम्पन्न महाकवि रइघू के आश्रयदाता श्री मुल्लण साहू की की जाती थी,' सिरिवाल चरिउ में सुलीचना के विवाह- भी दो पत्नियो के उल्लेख मिलते हैं।" प्रसंग में इष्टदेवपूजा के साथ सात भांवरें, सप्तपदीकथन इन उल्लेखों से यह स्पष्ट है कि मध्यकाल में बहुएवं उसके बाद हथलेबा की प्रक्रिया को विवाह की अन्तिम विवाह प्रथा प्रचलित थी। समाज में उसे मान्यता प्राप्त प्रक्रिया कही गई है। हो चुकी थी। (क्रमशः १. पउमचरिउ-पद्य २४ । ७. सिरिवाल० ८।१५, ६।१३ । २. भविसयत्तकहा-११-१०। ८. हरिवंस० ५।१४। ३. जंबूसामिचरिउ भूमिक-पृ० १४३।४४ । ६. रइधू-साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन-पृ० १७ । ४. भविसयत्त० ११।१०। १०. जंबूसामिचरिउ, भूमिका-पृ० ११ । ५. सिरिवालचरिउ-३३१७ । ११. धण्णकुमार चरिउ-४॥२०॥ ६. हरिवंस० २।१७। ou
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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