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________________ अपभ्रंश काव्यों में सामाजिक चित्रण ब्राह्मण कृषि-कर्म स्वय नही करने, वहां राजस्थान उत्तर अन्य जातियों में भील, खस, बव्वर,"पुलिंद," में ब्राह्मणों को स्वय कृपिकर्म करते हुए देखा केवट," कलाल," सुनार," लुहार," कुम्हार," यादव," जाता है। आदि के नाम मिलते हैं । खस बव्वर एवं पुलिंद के विषय ब्राह्मण के अतिरिक्त क्षत्रीय, वैश्य एव शूद्रो की मे रइधु ने लिखा है कि ये तीनों जातियां जहां भी रहें, जातियों के भी उल्लेख हुए है। क्षत्रियो मे इक्ष्वाकुवंशी,' वहां किसी को स्वप्न में भी रहने का विचार नहीं करना सूर्यवंशी, चन्द्रवशी,' अन्धकवृष्णि,' एव भोजकवृष्णियो' चाहिए। कवि ने इसीलिये इनका उल्लेख आक्रमणकारी के परम्परा प्राप्त उल्लेख मिलते है। उनके अतिरिक्त जातियों के रूप में किया है। तोमर, गुर्जर, प्रतिहार एव सोरट्ठ नामक क्षत्रिय जातियो अस्पृश्य जातियों में डाम. मातंग," चाण्डाल." के भी उल्लेख हए है। 'सिरिवाल चरिउ' में बताया गया घिनिवाल एवं सम्भिस' जातियों के नाम मिलते हैं। है कि खस एव नव्वर जाति के डाकुओ से मराठे, सोरठे ___'घिनिवालु' जाति नवीन प्रतीत होती है। हो सकता है कि र एवं गुर्जरो ने महायुद्ध मे लोहा लिया था। यह वही हो, जिसे हम आजकल कसाई कहते हैं। इसीलिए वैश्य मे अग्रवाल, पद्मावती, पुरवाल, जैसवाल, कवि ने इसकी डोम आदि जातियों के साथ गणना की है। गोलाराड, एव पौरपाट आदि जातियो के उल्लेख मिलते 'सभिस' सम्भवत. आजकल की मिश्ती जाति है है । अग्रवालों में गर्ग ऐंडिल गोयल मित्तल, बसल गोत्रो के जिसके लोग मशक के द्वारा जाल घर-घर पहुंचाया करते भी नाम प्रशस्तियो एव ग्रन्थ-पुष्पिकाओ में मिलते है। थे। एक अन्य म्लेच्छ जाति का भी उल्लेख आया है। जो साहित्यिक एव कला के विविध क्षेत्रो मे उनका योगदान सम्भवतः यवन जाति के लिये प्रयुक्त है। महत्वपूर्ण रहा है।" सिरिवल चरित' मे एक भांड-जाति" का भी उल्लख ___ 'धण्णकुमार चरिउ' में एक पटवारी जाति का भी आता है। जाति के कारनामें आजकल के समान ही मध्यनिर्देश पाया जाता है। हमारा अनुमान है कि यह भी मे भी थे। किसी भी अच्छे व्यक्ति की नकल बना कर उसे कोई वैश्य जाति है जो पटवारिगिरि अर्थात् भूमि की निम्नतर घोषित करना एवं व्यंग्योक्तियों द्वारा खरी एवं पैमाइश आदि का कार्य करती थी। मध्यभारत में आज स्पष्ट बातो को जनता के समक्ष रख देना इस जाति का भी उन्हें ही पटवारी कहा जाता है जो खेतो की मालगुजारी परम्परा-प्राप्त व्यापार था। श्रीपाल जिस समय धवल का लेखा-जोखा एव बन्दोवस्त के कार्य करते है, भले ही सेठ के द्वारा समुद्र में गिरा दिया जाता है और वह अपने उनकी जाति कुछ भी हो । पुरुषार्थ से समुद्र तैर कर उसी द्वीप मे पहुंचता है, जहां १. उपरिवत् । १३. सिरि० ५।१३।। २. उपरिवत् । १४. वलहद्द० ३२, ५।१०। ३. उपरिवत् । १५. बलहद्द०-३।२, ५१०। ४. उपरिवत् । १६. बलहद्द०-५।१०। ५. हरिवंश० २।२० ; ३३१३-१४; ४।१ । १७. उपरिवत्-३।२, ५१०। ६. सिरिवाल० ५।२२ । १८. हरिवंस० १४।५। ७. रइध-साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन पृ०४६८ १६. सिरि० ७.१२, बलहद्द०६२,५१३ । ८. धण्ण० ११३।४। २०. धण्ण. २१७१-३, सिरि० ७१२। ६. सम्मइजिण० ३१११, बलहद्द० ४।३ । २१. बलहद्द ३।२। १०. सिरि० ५।२२, १०।३, पाम० ५।६।५, बलहद्द० ४।३। २२. उपरिवत् । ११. सिरि० ५।२२, ८।१०, १०३ । २३. उपरिवत् । १२. घण्ण ३।२४।६। २४. सिरि० ७१६-१२।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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