SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२, बर्ष ३५, कि०१ अनेकान्त फीट ऊँची, विशाल, भव्य एवं अतिशय मनोज्ञ प्रतिमा की उनके प्रतिबोधनार्थ की। त्रिलोकसार के संस्कृत टीकाकार निर्मिति । माधवचन्द्र विद्य ने त्रिलोकसार की प्रथम गाथा की चामुण्डराय का घर का नाम 'गोम्मट' था यह बात उत्थानिका में लिखा है-"भगवन्नेमिचन्द्र सैद्धान्तदेवश्चतुरडॉ० आ० ने० उपाध्याय ने अपने एक लेख में सप्रमाण नुयोगचतुरुदधिपारश्चामुण्डरायप्रतिबोधनव्याजेनाशेषविनेयसिद्ध की है। उनके इस नाम के कारण उनके द्वारा जनप्रतिबोधनार्थ त्रिलोकसारनामान ग्रन्थमारचयन् ।" स्थापित बाहबली की मूर्ति 'गोम्मटेश्वर' के नाम से ख्यात जीवकाण्ड के अन्त की गाथा (नं० ७३५) में ग्रन्थकार हई। डॉ० उपाध्ये ने 'गोम्मटेश्वर का अर्थ किया है- ने कहा है—'आर्य आर्यसेन के गुण समूह को धारण करने गोम्मट अर्थात् चामुण्डराय का ईश्वर अर्थात् देवता । इसी वाले अजितसेनाचार्य जिसके गुरु है वह राजा गोम्मट र कारण से विन्ध्यगिरि की, जिम पर गोम्मटेश्वर की मूर्ति जयवन्त हो।' इसी प्रकार कर्मकाण्ड के अन्त की कुछ स्थापित है. 'गोम्मट' कहा गया है। इसी गोम्मट उपनाम- गाथाओ (अत की कुछ गाथाओं (नं० ६६६ से ६७२) के धारी चामुण्डराय के लिए नेमिचन्द्राचार्य ने अपने गोम्मट के द्वारा, आचार्य नेमिचन्द्र ने गोम्मट राजा चामुण्डराय सार नामक समग्र ग्रन्थ की रचना की। इसी कारण ग्रन्थ का जयकार किया है और उनके द्वारा किए गए कार्यों की को 'गोम्मटसार' सज्ञा प्राप्त हुई। भी प्रशंशा की है-- मेरे मित्र डा० देवेन्द्रकुमार जैन ने गोम्मटेश्वर का "गणधरदेव आदि ऋद्धि प्राप्त मुनियों के गुण जिसमे एक दूसरा अर्थ किया है। वे लिखते है' कि--"उन्हे निवास करते है. ऐसे अजितसेननाथ जिसके गुरु है, वह गोम्मटेश्वर इसलिए कहा जाता है कि वह गोमट यानी राजा जयवन्त हो ।।६६६।। सिद्धान्तरूपी उदयांचल के तट प्रकाश से युक्त थे, प्रकाशवानों के ईश्वर गोम्मटेश्वर । से उदय को प्राप्त निर्मल नेमिचन्द्र रूपी चन्द्रमा की किरणों दसरी व्युत्पत्ति यह है कि साधनाकाल में लता-गुल्मों के से वद्धिंगत, गुणरत्नभषण, चामुण्डराय रूपी समुद्र की बुद्धि वह 'गुल्ममत्' हो गए 'गोम्मट' उमा का प्राकृत रूपी वेला भवनतल को पूरित करे ॥६६७।। गोम्मट सग्रह सूत्र (गोम्मटसार), गोम्मट शिखर पर स्थित गोम्मटजिन जीवकाण्ड की मन्दप्रबोधिनी टीका (प० ३) की और गोम्मट राज के द्वारा निर्मित कुक्कूटजिन जयवन्त उत्थानिका में शब्द लिखे हैं उनसे उनके अप्रतिम व्यक्तित्व हो ॥६६८। जिसके द्वारा निर्मित प्रतिमा का मुख सर्वार्थका सहज बोध हो जाता है-"श्रीमद्प्रतिहतप्रभावस्याद्वाद। सिद्धि के देवो द्वारा तथा सर्बाधिज्ञान के धारक योगियो के शासन गुहाभ्यंतर निवासि''तद्गोम्मटसार प्रथमावयवभूतं द्वारा देखा गया है, वह गोम्मट जयबन्त हो ॥६६६। स्वर्णजीवकाण्डं विरचयन् ।" कलशयुक्त जिनमन्दिर मे, त्रिभुवनपति भगवान् की अर्थात् --"गगवंश के ललामभूत श्रीमद् राजमल्लदेव माणिक्यमयी प्रतिमा की स्थापना करने वाला राजा के महामात्य पद पर विराजमान, रणरगमल्ल, असहाय जयवन्त हो ॥९७०॥ जिसके द्वारा खड़े किए गए स्तम्भ पराक्रम, गुणरत्नभूषण, सम्यक्त्वरत्ननिलय आदि विविध के ऊपर स्थित यक्ष के मुकुट के किरणरूपी जल से सिद्धों सार्थक नामधारी श्री चामुण्डराय के प्रश्न के अनुरूप के शुद्ध पाँव धोए गए, वह राजा गोम्मट जयवन्त जीवस्थान नामक प्रथम खण्ड के अर्थ का संग्रह करने के हो ।।९७१।। गोम्मटसूत्र के लिखते समय जिस गोम्मट राजा लिए गोम्मटसार नाम वाले पंचसग्रह शास्त्र का प्रारभ ने देशी भाषा मे जो टीका लिखी, जिसका नाम वीरकरते हुए, नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती परम मगल पूर्वक मार्तण्डी है, वह राजा चिरकाल तक जयवन्त हो ॥७२॥" गाथा सूत्र कहते है ।" ___ चामुण्डराय के लिए यह कितने सौभाग्य की बात है विन्ध्यगिरि पर बाहुबली की प्रतिमाकि आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती जैसे मनीषी गुरु ने, चामुण्डराय ने श्रवणवेलगोला की विन्ध्यगिरि की न केवल गोम्मटसार अपितु त्रिलोकमार की भी रचना पहाडी पर सत्तावन फुट ऊँची जिस अतिशययुक्त मनोहारी
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy