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________________ अविश्वसनीय किन्तु सत्य "जैनधर्म के अनुयायी अपने शुद्ध-सात्विक आहार-विहार एवं नैतिकतापूर्ण बीवन पद्धति के लिये प्रसिद्ध रहे हैं, किन्तु वा आज भो गिधवा गांव के आदर्श निवासियों की भांति वे अपने धर्मसम्मत आचरण पर दृढ रह गय हैं ? इस उदाहरण से उन्हें शिक्षा लेनी चाहिए-" . -प्रेस ट्रस्ट आफ इडिया द्वारा प्रसारित २० मितम्बर अधिकारियों का भी कहना है कि इस ग्राम मे अथवा उसके ८२ के समाचार के अनुसार मध्यप्रदेश के रायपुर जिले मे निवामिया द्वारा कभी भी किसी अपराध का किया जाना अरगराजिम राजपथ पर स्थित गिधवा नाम का एक ग्राम " देखने सुनने में नहीं आया। मद्य-मांस-मत्स्य को तो चे छूते है जिसमें छ. सौ. व्यक्तियो, की आबादी है। इनमे अधि- श्री नहीं, बलात्कार, व्यभिचार आदि की भी कोई घटना काश गौड हैं, कुछ एक परिवार चन्द्रकरस साहु भो के हैं बड़ा नहीं होती। शनिवार १८ सितम्बर २ को इस गांव और एक परिबार ब्राह्मणों का है। इस ग्राम के मभी में एक समारोह हआ जिसमें ग्रामवासियों ने अपनी प्रतिज्ञा निवासी कबीरपश्री हैं और परम्पर अत्यन्त सद्भाव और · को दोहराया । वे अपनी इस आदर्श जीवन-पद्धति पर गर्व भाईचारे के साथ रहते है। लगभग एक मो वर्ष पूर्व इस करते हे जो उचित ही है। ग्राम-प्रमुख ने बताया कि उक्त गाव के निवामियों ने कबीरपथ की दीक्षा ली थी और मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले के साथ कडाई से कामप्रतिज्ञा की थी कि गांव का कोई भी व्यक्ति मांस-मछी लिया जाता है. कोई रूपियायत नही की जाती। उसे आदि । भक्षण नहीं करेगा, भराव नही पियेगा, बलात्कार, सदा के लिए गाँव से निर्वामित होना पडता है। किन्तु मे भार, दुराचार आदि कुकृत्य नही करेगा। तभी से। अपगर बहुत कम ही आए है। इस गान के सभी frवामी अपनी इस उत्तम टेक को आज के युग में यह स्थिति कितनी अविश्वसनीय किमतेचा जा रहा है । यदि गाव का कोई भो निवामी लगती भाव मर्वथा में लगती है, तथापि यह सर्वथा मत्य है। स्व-धर्म को जीवन इन मर्यादाआ म मे किमी का भी उल्लपन करता है, कोई के माथ जोहने, जीवन में उतारने से ही धर्म की सार्थभी दु.कर्म करता है तो उसके लिए गांव छोड़कर चला कता है। जाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं रहता। पुलिम --ज्योति प्रसाद जैन (पृ. २७ का पांण) थे और भोजन करते समय मौन रहते थे। वैसे तो वाबू जो कर कुछ ऐसे कार्य करता है जो उसके आदर्शों के नहीं, का भोजन भी बहुत पवित्रता पूर्वक तयार होता था, किंतु उसकी अन्तरात्मा के भी सर्वथा विपरीत होते हैं। परन्तु ब्रह्मचारी जी का भोजन विशेष तत्परता के साथ बनता अन्दर का आदमी सदा अपने मार्ग पर अयमर रहता है। था। मुझे याद है कि ब्रह्मचारी जी के लिए स्वय हमारी हमारी मम्मति मे वे ही गृहस्थ मच्चे गृहस्थ है जो कम से माताजी भोजन बनाती थी और ब्रह्मचारी जी मेज-कुर्मी पर कम व्यक्तिगत जीवन में अन्तरात्मा की आवाज के साथन लाकर चौके में भोजन करते थे। उनका व्यवहार अभ्या- चलते है। परन्तु माधु का अन्दर का और बाहर का गतों से लगाकर नौकर-चाकरों तक से ममता भग था। व्यवहार मर्वथा ममान होना चाहिए । ब्रह्मचारी जी मेरी बाबूजी के साथ उनकी जो-जो बातें मेरे सामने होमी दृष्टि में एक सच्चे माधु इसलिये थे कि उन्होंने अन्तरात्मा थी मैं उन्हें बड़े ध्यान से सुनता था। समाज-सुधार और की आवाज को स्पष्टतापूर्वक संसार पर प्रकट कर दिया। अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्धी उनके विचार तो प्रकाश में उन्हें न नेतृत्व की चाह थी और न कोई सांसारिक भाबीचोबेपरन्त नारी जाति के सर्वागीण उत्थान पर मोह था। वे एक सर्वथा वैरागमय पुरुष थे जिन्होंने अपना उनकी वारणायें अत्यन्त प्रभावशाली और प्रखर थीं। , जीवन जैन जाति के अभ्युत्थान में न्यौछावर कर दिया था प्रत्येक आवमी के भीतर एक दूसरा आदमी रहता और जिनका तप तथा त्याग अवश्य एक दिन संसार में पर.का यादमी अकसर परिस्थितियों का शिकार बन अपना रंगलाकर रहेगा।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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