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वर्ष ३४, कि.१
अनेका
इस प्रकार दोनों प्रत्यकारों के भेद का ज्ञान कराने प्रमाद को भावानब के भेदों में नही माना और अविरत वाले उपर्युक्त साक्ष्यों के अतिरिक्त निम्न तथ्य भी इसकी के (दूसरे ही प्रकार के) बारह तथा कषाय के पांच भेद पुष्टि में हेतु कहे जा सकते है
स्वीकार किये हैं।' १. पाचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती ने सगर्व लिखा ६. द्रव्यसंग्रह के सस्कृत टीकाकार श्री ब्रह्मदेव, है कि--जिस प्रकार चक्रवर्ती छ: खण्डों को अपने चक्ररल जिनका समय अनुमानत: ईसा को बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी से निर्विघ्नतापूर्वक वश में करता है ठीक उसी प्रकार मैंने है। गोम्मटसार और द्रव्यसंग्रह के कर्ता में भेद मानते मति रूपी चक्र के द्वारा षट्खण्ड रूप सिद्धांतशास्त्र की हैं। इसीलिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर द्रव्यसंग्रहकार मच्छी तरह जाना है। किन्तु नेमिचन्द्र सिद्धांतिदेव द्वारा को "सिद्धांतिदेव" विशेषण से अभिहित किया है। इसके उपर्यक्त प्रकार की गर्वोक्ति के कही दर्शन नहीं होते हैं। अतिरिक्त ब्रह्मदेव ने अनेक स्थलों पर प्रवचनसार और भपित इससे भिन्न उन्होंने अपनी लघुता प्रकट करते हुए पंचास्तिकाय पादि ग्रन्थों की गाथानों की तरह प्राकृत अपने पापको 'तणुसुत्तघरेण" और "मुणि" इस विशेषण पंचसंग्रह की चौदह गुणस्थानों का नामोल्लेख करने वाली से उल्लिखित किया है तथा अन्यों को "दोससंचयचुदा उन दो गाथानों को प्रागम-प्रसिद्ध गापा कह कर उद्धृत सुदपुण्णा" एव "मणिणाहा" विशेषणो से।
किया है, जो कि किंचित् परिवर्तन के साथ गोम्मटसार २. नेमिचन्द्र पिद्धांतचक्रवर्ती द्वारा रचित ग्रन्थ
जीवकाण्ड में भी पाई जाती हैं। विस्तार रूप से पाये जाते हैं। किन्तु नेमिचन्द्र सिद्धांतिदेव
द्रव्यसंग्रह : द्वारा रचित द्रव्यसंग्रह सूत्र रूप मे लिखित लघुकृति है। व्यसंग्रह को श्री ब्रह्म देव कृत संस्कृत टीका के
३. नेमिचन्द्र सिद्धातचक्रवर्ती अपने ग्रन्थों में अपना उत्थानिका वाक्य से ज्ञात होता है कि प्राचार्य नेमिचन्द्र पौर अपने गुरुजनों का नामोल्लेख करते है, किन्तु सिद्धांतिदेव ने मालव देश के घारा नामक नगर के नेमिचन्द्र मनि लिखा है।'
अधिपति राजा भोजदेव के संबंधी श्रीपाल के माश्रम ४. नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती ने अपने प्रमुख श्रावक नामक नगर में स्थित श्री मनिसवत तीथंकर के त्यालय गोम्मट राय (चामुण्डराय का उल्लेख किया है।
मे भाण्डागार प्रादि अनेक नियोगों के अधिकारी सोम ५. प्राचार्य जुगलकिशोर महतार ने दोनों प्रकारो नामक नगरश्रेष्ठी के निमित्त पहले २६ गाथानों वाले के भिन्न-भिन्न होने मे यह भी कारण प्रस्तुत किया है लघद्रव्यसंग्रह की रचना की थी, पुनः तत्त्वों की विशेष कि-द्रव्यसंग्रह के कर्ता ने भावास्रव के भेदों में प्रमाद
। म प्रमाद जानकारी हेतु बृहद्रव्यसग्रह की रचना की गई।' को भी गिनाया है और प्रविरत के पांच तथा कषाय के द्रव्य मंग्रह प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांतिदेव की एक चार भेव ग्रहण किये है, परन्तु गोम्मटसार के कर्ता ने प्रमर कृति है। इतनी लघु कृति में इतने अच्छे ढंग से १. बृहद्रव्य संग्रह, गाथा ५८ ।
६. पथ मालवदेशे धारानामनगराधिपतिराजभोजदेवा२. दव्यसंग्रहामणं मणिणाहा दोससंचयचुदा सुदपुण्णा ।
भिधानकलिकालचक्रवतिसंबंधिनः श्रीपालमहामण्डसोधयतु तणुसुत्तघरेण मिचन्द मणिणा भणियं ज॥ लेश्वरस्य संबंधिन्याश्रमामनगरे श्रीमुनिसुव्रततीयंकर. ३. दृष्टव्य-पुरातन जैन वाक्य सूची प्रस्तावना पृष्ठ ६३ । चेत्यालये भाण्डागाराचनेकनियोगाधिकारिसोमाभि४. बृहद्रव्य संग्रह, गाथा ५८ ।
घानराज्ये ष्ठिनो निमित्तं श्रीनेमिचन्द्रसिांतदेवः ५. पुरातन जैन वाक्य सूची, प्रस्तावना, पृष्ठ ६३ । पूर्व षडर्विशासिगाथामिलद्रव्यसंग्रह करवा पश्चाहि. ६. पुरातन जैन वाक्य सूची, प्रस्तावना पृष्ठ ९४ । शेषस्वपरिज्ञानार्थ विरचितस्याधिकारशुद्धिपूर्वकस्वेन ७. द्रव्य सग्रह, प्रस्तावना, पृष्ठ ३४, टिप्पणी १।
व्याख्य वृत्तिः प्रारभ्यते । ८. प्रयागमप्रसिद्धगाथायेन गुणस्थाननामानि कथयति ।
-बृहद्रव्यसंग्रह, ब्रह्मदेव टीका, पृष्ठ १-२ -बहदाव्यसंग्रह, ब्रह्मदेव टीका, पृष्ठ २८ ।