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सम्यक्स्य कौमुदी नामक रचनाएँ
स्वामी से सम्यक्त्वकोमदी कथा सुनाने की प्रार्थना करता बैठ गया और राजा एवं मंत्री ने एक अन्य खिड़की के है । भगवान गौतम कहते हैं -मथ रा नगर मे उदितोदय बाहर प्रासन जमाया। उमा समय भीतर अपने संस्मरण नाम का राजा राज्य करता या : उम के मंत्री का नाम सुनाने का निश्चय हुप्रा । नर्वयम सेठ ने ही आप बीती सुबद्धि था। राज्यश्रेष्ठी ग्रहंदत्त बडा धमिक था और अपनी सुई। उम कहानी के मखपात्र वर्तमान सेठ का पिता पाठ पत्नियों के साथ सुख में रहता था। इसी नगर में जिन दास, राजा का पिता पदमोदय, मत्री का पिता सं भिन्न अंजनगुटिकामिद्ध चोर सुवर्णखर भी रहता था। प्रति वर्ष और चोर का पिता रूपखुर थे। वह सब घटना उन चारों कानिकी पूर्णिमा के दिन राजा कोमदी महोत्सव का प्रायो. को भी देवी-जानी थी। रोठ के पश्चात उसकी सात जन करता था, जिसमे नगर की समस्त स्त्रिया वन क्रीड़ा पत्नियों ने भी अपने-अपने अनुभवों की कहानियां क्रमशः के लिए जाया करती थी और प्रा दिन व रात्रि वही सुनाई। प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी कहानी के अन्त में कहा, व्यतीत करती थी, तन्तु पुरुषो को वहा जाने की प्राज्ञा यह घटना मेरे प्रत्यक्ष अनुभव की है, इमने मुझे प्रत्यन्त नही थी-उन्हें नगर के भीतर ही रहना होता था। प्रभावित किया है और फलस्वरूप मेरी धर्म में रुचि-प्रतीति मयोग से यही दिन कातिको अष्टान्हि का पर्व का अन्तिम एवं श्रद्धा हई है, मेरा सम्यक्त्व दृढ हुन है। सब ही दिन था और उस वर्ष सेठ ने सपत्नीक अठ ई व्रत किया भीतरी और बाहरी श्रोताओं ने जमकी प्रशंसा व अनुमो. पा। उसने राजा से विशेषाज्ञा लेकर अपनी पतियों दना की किन्तु सबसे छोटी से ठ-पत्नी कुन्दलता ने प्रत्येक को वनयात्रा से रोक लिया। दिन भर सबने नगर के बार यही कहा 'यह सब झूठ है, मैं इम पर विश्वास नही जिनालयों में दर्शन पूजन किया और अन्त मे अपने गृह- करती, अतः इसी के कारण मेरी धर्म में रुचि या प्रतीति चैत्यालय मे रात्रि जागरण किया। पारात्रिक पूजन-भजन भी नही होती है। उसके ऐसे उत्तरों की उमके पति तथा कीर्तन प्रादि मे प्राधी रात बीत गई तो सेठ-पत्नियों ने सपत्नियो पर तो विशेष प्रतिक्रिया नहीं होती थी, किन्तु प्रस्ताव किया कि क्यो न हममे से प्रत्येक उसे जिस घटना तीनों बाहरी श्रोता, राजा मंत्री व चोर उसे उद्दण्ड एव या अनुभव के कारण धर्म मे श्रद्धा दृढ हुई है, वह मुनाए। दुष्टा समझते और उस पर कुपित होते। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुा । और सर्वप्रथम सेठ इतने में सबेरा हो जाता है। सेठ का परिवार मे ही अपना अनुभव बताने के लिए अनुरोध किया गया। निविघ्न-सानन्द पर्वोत्सव के समापन से हपित है कि राजा
इसी बीच स्वयं राजा का चित्त अकेले मे उचाट हो व मत्री पधारते है। अन्य अनेक व्यक्ति सेठ को बधाई रहा था और स्वयं अपनी निषेधाज्ञा का उलंघन करके भी देने पाते हैं। भीड हो जाती है और उसमें वह चोर भी वह अपनी रानी के पास उद्यान में जाने के लिए पातुर हो है। राजा ने रात्रि में कही गई कहानियों की चर्चा की उठा । इस पर मंत्री ने उसे समझाया और उस अनुचित और कुन्दलता की अजीब प्रतिक्रिया पर पाश्चर्य व्यक्त विकल्प से विरत रखने का प्रयत्न किया। उसने राजा को किया तथा उसे दण्डित किए जाने का प्रस्ताव किया। यमदंड कोतवाल की कहानी सुनाई जिसमें सात रोचक सेठ ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि स्वयं अभियुक्ता एवं शिक्षाप्रद अन्त कथाए कही । अन्ततः राजा ने अपना से ही उसकी वैसी प्रतिक्रिया का कारण पूछा जाय । विचार छोड़ दिया और यह प्रस्ताव रखा कि नगर का कुन्दलता बलाई गई और उससे उसके उक्त प्रनोखे व्यवही भ्रमण किया जाय और देखा जाय कि अन्य लोम क्या हार का कारण पूछा गया । उस तेजस्वी नारी ने ससंभ्रम कर रहे हैं। प्रतः राजा और मत्री चल दिए । प्रायः उसी कहा 'राजन्, वह दुष्टा मैं ही हूं । इन सबने जो कुछ कहा समय सुवर्णखर चोर भी अपने चोरकम के लिए निकला है और जिनधर्म एवं उसके व्रतादि पर जो इनका निश्चय था। संयोग से तीनो ही सेठ के चैत्यालय के पास पहुच है उस पर मैं वास्तव मे न तो श्रद्धान ही करती हूं, न उसे गए जहां से भक्तिपूर्ण मधुर गीत-वाद्य नुत्यादि की स्वर- चाहती हैं और न उसमे मेरी कोई रुचि है।' राजा ने लहरी गंज रही थी। चोर एक खिड़की के बाहर छुपकर साश्चर्य पूछा कि इसका क्या कारण है तो कुन्दलता ने