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अनेकान्त प्रेमियों से:
अनेकान्त पत्र का जन्म वी० नि० सं० २४५६ के मार्गशीर्ष मास में हुआ और इसने पाठकों को शोध-सम्बन्धी विविध सामग्री दी और आचार एवं व्यवहार सम्बन्धी अनेकों आयामों को प्रस्तुत किया। स्वामी समन्तभद्र जैसे उद्भट अनेको आचार्यों के साहित्य के मर्म को उजागर किया। फलतः यह सभी का स्नेहपात्र बना रहा। यद्यपि बीच के काल में इसे अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा-कभी आर्थिक संकट और कभी. लेखकों को उदासीनता । तथापि इसने समाज को जैन साहित्य और तत्त्व-ज्ञान से परिचित कराने एवं जनता के आचार को ऊँचा उठाने के उद्देश्य के ख्याल से, अपने कार्य क्षेत्र को नहीं छोड़ा। इस सहयोग में जिन सम्पादकों, लेखको और पाठकों आदि ने जो रुचि दिखाई उसके लिए हम उनके चिर-ऋणी रहेंगे।
'अनेकान्त' पत्र के उद्देश्यों में मुख्य है-'जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान विषयक, अनुसंधानात्मक लेखों का प्रकाशन व जनता के आचार-विचार को ऊँचा उठाने का सुदृढ़ प्रयत्न करना।' 'अनेकान्त' की नीति में सर्वथा एकान्तवाद को-निरपेक्षनयवाद को अथवा किसी सम्प्रदाय विशेष के अनुचित पक्षपात को स्थान नही होगा। इसकी नीति सदा उदार और भाषा-शिष्ट,' सौम्य तथा गम्भीर रहेगी।' हमारा निवेदन है कि उदार लेखक अपने लेखों, पाठक अपनी अनेकान्त-पठन रुचि और उदारमना-दाता द्रव्य द्वारा पत्र की संभाल करते रहें-पत्र सभी का स्वागत करेगा।
वर्तमान में ग्राहक संख्या नगण्य है। यदि ग्राहक संख्या में वृद्धि हो जाय, और १०१) देकर पर्याप्त संख्या में आजीवन सदस्य बन जाये तो इसेको चिन्ता सहज ही दूर हो जाय। इस महर्घता के समय में भी पत्र शल्क केवल ६) वार्षिक ही है।
आशा है लेखकगण अपने लेख और ग्राहक व दाता अपने द्रव्य द्वारा सहायता करने में उद्यमी होंगे। धन्यवाद !
सुभाष जैन महासचिव वीर सेवा मन्दिर
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विज्ञान लेखक अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र होते हैं। यह प्रावश्यक नहीं कि सम्पावन
मण्डल लेखक के विचारों से सहमत हो।