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साहित्य-समीक्षा
पावितीर्थ प्रयोध्या---लेखक : डा. ज्योतिप्रसाद जैन । प्रकाशक : उत्तर प्रदेश दि० जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, लखनऊ। प्रथमावृत्ति १९७६%सचित्र, पृ० सं० ११४; मूल्य ३/- रु०।
विद्वान् लेखक प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता, इतिहासकार पौर अनेक गवेषणापूर्ण ग्रन्थो के रचयिता हैं। प्रस्तुत पुस्तक को १२ परिच्छेदो में विभक्त किया गया है जिनमे क्रमश. जैनधर्म और तोर्थ 'अयोध्या' स्थिति, नाम इतिहास, पुरातत्व, अयोध्या का मास्कृतिक महत्व, साहित्यगत वर्णन, तीर्थकरी की जन्मभूमि, महावीरोत्तर इतिहास, धर्मायतन
और दर्शनीय स्थल, विकास और व्यवस्था, अयोध्या तीर्थ, पूजन एव माहात्म्य, अयोध्या जिन स्तवन, दिगम्बरत्व तथा जन परम्परा की प्रधानता प्रादि विषयों पर सप्रमाण प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। प्रादि तीर्थ अयोध्या के विषय मे यह प्राय: सर्वांगपूर्ण कृति है जो स्वविषय पर सभी दष्टियो से प्रकाश डालती है।
चेतना का अर्वारोहण-लेखक मुनि श्री नथमल। प्रकाशक प्रादर्श साहित्य संघ, चुरू (राजस्थान); पृष्ठ १९७; १९७८; मूल्य १३/- रुपये।
मुनिवर श्री नथमल जी की यह कृति चेतना के विकास पर एक प्रामाणिक और साद्यन्त पठनीय कृति है। समीक्ष्य कृति का १९७१ मे एक लघु संस्करण भी प्रकाशित हुपा था।
प्रस्तुत ग्रंथ में चेतना के ऊवारोहण की प्रक्रिया, उसे जानने के उपायों भौर विधियों, उसके व्यवहार्य स्वरूप आदि पर प्रकाश डाला गया है। इसके दो खण्ड हैचेतना का ऊर्ध्वारोहण तथा चेतना और कर्म । यह ग्रथ १७ अध्यायों में समाप्त हुआ है तथा इसका १०वां मोर ११वां अध्याय विशेष पठनीय है। इन अध्यायों में कर्म की रासायनिक प्रक्रिया पर विश्लेषणात्मक दृष्टि से विचार किया गया है।
यह मनीषियो, शोधाथियो एवं जन विधानों के मननशील अध्येतानो के लिए समान रूप से सर्वथा उपयोगी एव उपादेय है।
यह कृति अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है। मनोज्ञ सज्जा, प्राधुनिक प्रस्तुति, निर्दोष छपाई और उचित मूल्य के कारण इसकी उपयोगिता और उपादेयता बढ़ गई है।
मिथ्यात्वीका प्राध्यात्मिक विकास-लेखक : श्रीचन्द डा. ज्योतिप्रपाद जैन :कृतित्व परिचय-सम्पादक :
चौरडिया । प्रकाशक : जैन-दर्शन-समिति. कलकत्ता। श्री रमाकान्त जैन। प्रकाशक-ज्ञानदीप प्रकाशन, ज्योति
पृष्ठ ३६०; मूल्य : बीस रुपए मात्र । निकुंज, चारबाग, लखनऊ; १९७६; पृष्ठ १४७ ।
जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक भव्य-मात्मा में परमात्मप्रस्तुत कृति जैन इतिहाम, पुरातत्व एवं इतर जैन पद पाने की शक्ति विद्यमान है। जीव का संसार उसकी विधानों के उद्भट विद्वान् डा० ज्योति प्रसाद जैन की मिथ्यात्व-दशा पर्यन्त है। जब यह अपने पुरुषार्थ द्वारा विविध कृतियो की परिचायिका है। इसमे डा० साहब की प्रपना माध्यात्मिक-विकास कर लेता है तब मोक्ष कृतियो, समीक्षाओं, अभिमतादि, वर्गीकृत लेखसूची तथा भी प्राप्त कर सकता है। प्रस्तुत कृति मे जीव सांस्कृतिक सामाजिक प्रवृत्तियों का परिचय दिया गया है। के विकासको प्रक्रिया पर मिथ्यात्वी के स्वरूप, पुस्तक प्रत्यन्त उपयोगी एवं सर्वथा उपादेय है।
क्रिया, ज्ञान-दर्शन, व्रत, पाराधना-विराधना मादि