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बाहुबली की कहानी उनकी हो जुबानी
नहीं है। मेरे स्कंध सोधे हैं, उनसे दो विशाल भुजायें अपने स्वाभाविक ढंग से लंबित है। हाथ की उँगलियां सीधी एवं अंगूठा ऊर्ध्व को उठा था उंगलियों से विलग है । घुंघराले केश-गुच्छों का अंकन सुस्पष्ट है ।
मेरी इस विशालकाय प्रतिमा का निर्माण बेलगोला के इन्द्रगिरि के कठोर हल्के भूरे पाषाण से किया गया है। लोगों का ऐसा अनुभव है कि मेरा वजन लगभग २१७४ मन होगा। मेरे निर्माण काल के विषय में भी कला-ममंजों एव ऐतिहासिकों को मेरी तिथि ६८० ई० अथवा ६८२ ६० निश्चित की है ।
मेरी विश्व की सर्वोच्च ५७ फुट लंबी इस प्रतिमा के अंगों के विन्यास से आप विशालता का स्वतः ही धनुमान लगा सकते हैं
चरण से कर्ण के अधोभाग तक - ५० फुट कर्ण के अधोभाग से मस्तक तक- ६ फुट ६ इंच
चरण की लंबाई - ६ फुट
चरण के प्रभाग की बोड़ाई ४ फुट ६ इंच
( पृ० ११०
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हैं। उनके बाहुबली केवल प्राध्यात्मिक पुरुष नहीं हैं बल्कि मानवी मूल्यों और अधिकारों के संघर्ष करने वाले लौकिक व्यक्ति भी है इसके लिए वे अपने बड़े भाई से भी लोहा लेने मे नहीं चूके छल कपट को राजनीति में उनकी व्यवस्था नही थी उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जीत के उन्माद में वह अपना विवेक नहीं खोते दूसरे घर की फूट को राष्ट्र की फूट नहीं बनने देते, दुनिया के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब कोई जोती हुई बाजी छोड़ दे जीत कर भी क्षमा मांगें, वे धयुद्ध पुरुष नहीं थे राय के खिलाफ युद्ध न करना उन्हें मान्य नहीं पश्चाताप के क्षणों में वे अपने भाई से जो कुछ कहते हैं वह महज घोपचारिकता नहीं बल्कि भारम-मंचन से उपजी व्यथा से लिखा गया, मनुष्य के सम्मान जीने धीर मुक्त होने का अत्यन्त धनुभूतिभय शब्द लेख है। चामुण्डराय के प्रादेश पर शिल्पियों द्वारा निर्मित बाहुबली की प्रस्तरमूर्ति भोर पुष्पदन्त द्वारा रचित शब्द मूर्ति को कलात्मक अभिव्यक्तियां है उनकी तुलना का न आाधार है और न प्रश्न एक विराट है तो दुसरी गहन, एक दूषय
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चरण का गूठा फुट ९ इंच पांव की उंगली - २३ फुट मध्य की उंगली फुट एडी की ऊंचाई - २१ फुट
कर्म का पारि ५३ फुट कटि - १० फुट ।
अवणबेलगोला की मेरी यह प्रतिमा जनमत में अधिक पूजित है प्रतिवर्ष लाखों यात्री दर्शन कर अपना ब्रहोभाग्य मानते हैं । मेरे विषय में प्राचार्य विमलसूरि ने 'उसभस्स वीयपुत्तो बाहुबली नाम प्रति चिवखाद्यो' उल्लेख किया है। मैं अपने पिता एवं भ्राताओं से उन्नत शरीर
प्रत: मुझे गोम्मटेश भी कहा जाने लगा । जैन परंपरा में मुझे अनेक स्थानों पर 'पौदनेश' शब्द से भी संबोधित किया गया है ।
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प्राध्यापक, प्राचीन भारतीय इतिहास, शासकीय गृहविज्ञान महाविद्यालय, होशंगाबाद ( म०प्र०)
000 का शेषांश)
है दूसरी पाठ्य, एक खिलती है दूसरी के साक्षात्कार के लिए। कवि को सृजन प्रक्रिया में से गुजरना पड़ा है। यह सृजन ही वह श्राइना है जिसमें बाहुबली का करोड़ों वर्षों पुराना संवेदनशील व्यक्तित्व सभायकालीन चेतना के संदर्भ में मनुष्य की समस्त गरिमा के साथ उभर कर भाता है। चामुण्डराय द्वारा प्रतिष्ठापित मूर्तिशिल्प की स्थापना सहस्राब्दि धूमधाम से मनाई जाए यह प्रसन्नता का विषय है परन्तु उस कोलाहल पूर्ण समारोह में भरत पुष्पदन्त और उनके महापुराण का कहीं उल्लेख न हो, यह जरूर पीड़ाजनक है। एक पुष्पदन्त जिन्होंने लगातार १३ वर्षों तक भरत के शुभ तुङ्ग भवन में रहते हुए उपभ्रंश जैसी लोकभाषा मे महापुराण की रचना कर मानव मूल्यों की धरोहर के रूप में हमें सौंपा, मोर हम है उसकी याद में मंगलकलशों के अभिषेक जल की एक बूंद भी देने को तैयार नहीं है क्या इससे यह जाहिर नहीं होता कि सृजन के प्रति हम कितने उदासीन हैं ।
शान्ति निवास, १४ उषा नगर, इन्दौर- ४५२००२