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________________ ११०, १३,किरम भनेकान्त है ? यह देख कर बाहुबली का प्राक्रोश घिन उठा है। भाग में भस्म कर दिया, देवचक तुम्हारे मागे-पीछे घूमता मात्मसंताप से अभिभूत वह सयं को विहार सा है हाय है तुम्हें चक्रमुक्त देख कर चक्रवर्ती को भी अपना चक मेरी बाहुबल ने क्या किया? मैंने अपने कुल के स्वामी अच्छा नहीं लग रहा है। सम्राट चक्रवर्ती को नीचा दिखाया किसके लिए ? क्या उस बाहुबली को गोम्मटेश्वर इसलिए कहा गया कि एक परती के लिए जो वेश्या की तरह अनेक राजामो के द्वारा तो साधना काल में लतागुल्मों के चढ़ने से उनकी देह भोगी गई है पोर यह राज्य इस पर वज गिरे किसी की गुल्मवत् हो गई थी दूसरे वह गोमत् का अर्थ है प्रकाशवान् यह उक्ति ठीक है इसके लिए पिता की हत्या की जाती है, दोनो का प्राकृत मे गोम्मट बनता है। भाइयों को जहर दिया जाता है, समाज और राष्ट्र में समय की दूरी सृजन मूल्यों को निकष : विषमता विद्वेष और घृणा के बीज राज्य ही बोता है पुष्पदंत १०वी सदी मे हुए और राष्ट्रकूटों के मंत्री राजा मन्त्री सामत सुभट शासक और शासित -यह सारा भरत के अनुरोध पर उन्हीं के शुभतेश भवन में रहते हुए वर्गविभाजित बनावटी है पराधीन बनाने की दुरभिसधि कवि ने महापुराण की रचना की, बाहुबली पाख्यान उसी है। अपने बड़े भाई और चक्रवर्ती से क्षमा मांगते हए वह का एक अंश है। इसमें संदेह नहीं कि पुष्पदंत मोर कहता है --प्रो अग्रज, यह राज्य ले, मैं दीक्षा लेकर प्रारम- बाहुबली के बीच समय को बहुत दूरी है। कल्याण करूंगा। मैंने भाज तक जो भी प्रतिकूल प्राचरण इस अन्तराल में कई मानव संस्कृतियां बनीं और किया है उसके लिए क्षमा मांगता हूं। मिटी । इतिहास मे कई उतार-चढ़ाव पाए फिर भी स्मृति भरत की प्रतिक्रिया: और कला ने उस "पुराण पुरुष" को प्रतीक रूप में जीवित लेकिन भरत यह स्वीकार करने को तैयार नहीं वह रखा उनके पावन व्यक्तित्व की याद मानव मूल्य की कहता है मुझे पराभव से दूषित राज्य नही चाहिये जिम याद है ये मूल्य प्रत्येक युग की परिस्थितियों से टकराते चक्र का मुझे गर्व था, क्या वह मेरे सम्मान को बचा है। कभी वे परिस्थितियों को नया मोड़ देते हैं और सका? हे भाई तुमने अपने क्षमा मात्र से जीत लिया तुम कभी परिस्थितियाँ उन पर हावी होती हैं खासकर सूर्य की तरह तेजस्वी और समुन्द्र की तरह गंभीर हो भारत मे ऐसा इसलिए भी होता रहा है कि इन मूल्यों को सज्जन की करुणा से सज्जन ही द्रवित होता है। प्रात्म- सामाजिक स्तर पर नहीं परखा गया, हमने परलोक के ग्लानि, विरक्ति में बदलती है, और बाहुबली राजपाट सदर्भ मे उनका महत्व समझा यह प्रजीब संयोग है। गंगवंश छोड़कर तप करने चल देते हैं। वर्ष भर, वन मे वे कायोत्सर्ग के प्रधान मन्त्री पोर सेनापति चामुण्डराय की प्रेरणा से में खड़े रहे, हिम प्रातप और वर्षासे बेपरवाह लताएं देह ६१ ईसवी में जब श्रवणबेलगोला मे गोम्मटेश्वर बाहुबली से लिपट गई। उस विशाल शरीर से वन्य प्राणी खाज की विराट मूर्ति निर्मित भोर प्रतिष्ठापित हुई उसके १५खुजलाते रहे । एक दिन सम्राट भरत सपत्नीक पाता है १६ वर्ष पहले पुष्पदत महापुराण के अन्तर्गत अपना और उनकी स्तुति मे कहता है। बाहुबली पाख्यान लिख चुके थे। उन्होंने बाहुबली के ... हे भद्र, विश्व मे तुम्ही हो जिसने कामदेव होकर राग को अपनी उन अनुमतियों के माइने में देखा जिनका को पराग से जीता, जीत कर भी क्षमाभाव का प्रदर्शन प्राचार युग की सामंतवादी पृष्ठभूमि थी। उन्होंने सत्ता किया। के लिए राजामों को लड़ते देखा था। युद्ध के खूनी दृश्य सम्राट भरत के इस कथन से तपस्वी बाहुबली के उनके सामने थे, राजनीति की घिनौनी हरकतों से चिढ़ मन का यह भ्रम टूट जाता है कि मैं दूसरे की धरती पर कर ही वह किसी दूसरे राज्य से राष्ट्रकूटों की राजधानी खड़ा हूं और वह कर्मजाल से मुक्त होते हैं। मान्यखेट में पाए थे । पुष्पदंत बाहुबली के समग्रचरित को उनकी मुक्ति के अभिनन्दन में इन्द्र ने कहा हे भद्र हम राज्य समाज, परिवार और व्यक्ति के संदर्भ में देखते तुमने राजचक को तिनका समझा कर्मचक्र ध्यान की (शेष पृष्ठ ११३ पर)
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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