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अनेकान्त
की यह मूर्ति कई दृष्टियों से उल्लेखनीय है। श्रीवत्स वर्ष पूर्व स्थापित विशाल बाहुबली-मूर्ति प्रौर सागर न होने से यह उत्तर और दक्षिण को श्रृंखला जोड़ती प्र. के वर्णी भवन में स्थापित मूर्ति उल्लेखनीय है ।
स्तिक भोर कमलाकृति प्रभामण्डल है जो उत्तर भारत के प्रश्य मन्दिरों में भी बोन्ज मोर पीतल अन्य बाहुबलि-मूर्तियों में प्राय अप्राप्य है। कटि को की भनेक बाहुवली मूर्तिया विराजमान हैं। विवालि ने समूची मूर्ति के अनुपात को सन्तुलित किया है। कतिपय त्रिमूर्तियाँ:
बादामी तालुके में ही एक गाँव है ऐहोल, जिसके बाहुबली को भरत चक्रवर्ती के साथ ऋषभनाथ की पास गुफाएं हैं। गुफामों में पूर्व की पोर मेघटी नामक परिकर-मूर्तियों के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। बारा जैन मन्दिर है। इसके पास की गुफा में बाहुबली की ७ लता-वेष्टित बाहुबली की पोर दाएं नव-निधि से प्रभि फुट ऊंची मूर्ति उत्कीर्ण है।
ज्ञात भरत की मूति से समन्वित ऋषभनाथ की जटादक्षिण में ही दौलताबाद से लगभग १६ मील दूर मण्डित मूर्तियां भव्य बन पड़ी है। ऐसे अनेक मयंकन एलोरा की गुफाएं हैं। इन में पाच जैन-गुफाए है। इनमे देखे गये है। एक इनासभा नामक दोतल्ला मभागह है। इनकी बाहरी जबलपुर जिले में बिलहरी ग्राम के बाहर स्थित कल. दक्षिणी दीवार पर बाहबली की एक मूर्ति उत्कीर्ण है। चुरिकालीन, लगभग नौवी शती, जैन मन्दिर के प्रवेश उत्तर भारत की विशिष्ट वाहुबली मूर्तिया
द्वार के सिरदल पर इस प्रकार का सम्भवत: प्राचीनतम
मयंकन है। बहुत समय तक कला-विवेचकों में यह धारणा प्रच
उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले मे स्थित देवगढ़ के मित थी कि बाहवली की मूर्तिया दक्षिण भारत में ही
पर्वत पर एक मन्दिर मे जो ऐसा मृत्यंकन है वह कला की प्रचलित हैं। उत्तर भारत में इनक उदाहरण अत्यन्त
दृष्टि से सुन्दरतम है और उसका निर्माण देवगढ़ की बिरल है। किन्तु शोष-खोज के उपरान्त उत्तर भारत में
अधिकांश कलाकृतियो के साथ लगभग दसवी शती में उल्लेखनीय भनेक बाहुबली-मूर्तियो के अस्तित्व का पता
हुमा होगा। लगा है जिनका विवरण निम्न प्रकार है
खजराहो के केन्द्रीय संग्रहालय मे एक सिरदल (क्रमाक जमागढ़ संग्राहलय मे प्रदर्शित नौवी शताब्दी की
१७२४) है। उस पर विभिन्न तीर्थंकरों के साथ भरत मूर्ति जो प्रभासपाटन से प्राप्त हुई है।
पोर बाहुबली के मूयंकन भी है। यह दशवी शती की खजुराहों में पाश्र्वनाथ मन्दिर की बाहरी दक्षिणो दीवार पर उत्कीर्ण दशवी शताब्दी की मूर्ति ।
चन्देल कृति है। __ लखनऊ संग्रहालय को दशवी शताब्दी को बाहुबली
भरत पोर बाहुबली के साथ ऋषभनाथ की विशामूर्ति जिसका मस्तक भोर चरण खडित है।
लतम मूर्ति तोमर काल, पन्द्रहवी शती मे ग्वालियर की वगढ़ में प्राप्त मूर्ति, दशवी शताब्दीकी नाभी गुफापो में उत्कीर्ण की गयी। वहीं के 'साहू जैन संग्रहालय' मे प्रदर्शित है। इस मूर्ति
__इस प्रकार को एक पीतल की मति नई दिल्ली के का चित्र जर्मन पुरातत्ववेत्ता क्लोस ब्रून ने अपनी पुस्तक
राष्ट्रीय संग्रहालय में है। इसमे ऋषभनाथ सिंहासन पर में दिया है । देवगढ़ मे बाहुबली को ६ मूर्तिया प्राप्त है ।
प्रासीन है और उनकी एक मोर भरत तथा दूसरी पोर
बाहुबली कायोत्म गस्थ हैं। यह सम्भवत: चौदहवी शती बिमहारी, जिला जबलपुर, मध्यप्रदेश से एक शिला.
को पश्चिम भारतीय कृति है। पट प्राप्त हुमा है जिस पर बाहुबली की प्रतिमा उत्कीर्ण
इन पांचों के अतिरिक्त और भी कई मतियो पर बीसवीं शताम्मी की नयी मूर्तियो मे, जिन्हें ऊँचे माप ऋषभनाथ के साथ भरत पोर बाहुबली की प्रस्तुति होने पर बनाया गया है, पारा (बिहार) के जैन बालाश्रम मे का संकेत मिलता है । उड़ीसा के बालासोर जिले में भद्रक स्थापित मूति, उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद नगर में कुछ रेलवे स्टेशन के समीप चरम्पा नामक ग्राम प्राप्त और