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________________ सम्पादकीय स्वनामधन्य स्व० साह शान्तिप्रसाद जैन वर्तमान युगीन जैन जगत की अप्रतिम विभूति थे। सन् १९११ मे नजीबाबाद (जिला बिजनौर, उत्तर प्रदेश) के साहू घराने मे, प्रसिद्ध साहू सलेखचन्द्र जी के पौत्र और साहू दीवानसिंह के कनिष्ठ पुत्र के रूप मे माता मूतिदेवी को कुक्षि से इउ महाभाग का जन्म हुमा था। लगभग २३-२४ वर्ष की मायु मे विद्यार्थी जीवन समाप्त करके मोर सेठ रामकृष्ण डालमिया की सुपुत्री स्व. रमारानी के साथ विवाहित होकर वह कर्मक्षेत्र मे उतरे। पुण्य और पुरुषार्थ का कुछ ऐसा सुखद सयोग हुमा कि वह लौकिक प्रभ्युदय मे द्रुतवेग से उत्तरोत्तर वृद्धि करते गये, यहां तक कि दो दशको के भीतर ही वह चोटी के भारतीय उद्योगपतियो मे परिगणित होने लगे। साथ ही, धर्म, संस्कृति, समाज एव भारतीय जन सामान्य की सेवा को ऐसी विलक्षण लगन थी कि इन क्षेत्रो मे उन्होने अनगिनत श्रेष्ठ उपलब्धिया प्राप्त की, जो उनके जीवनोपरान्त भी उनकी स्मृति को सजीव बनाये हुए है और बनाये रक्खेगी। स्वभावतः उन्हे यश, मान और प्रतिष्ठा भी प्रभूत मिले; सत्कार्यो के करने मे जो प्रानन्द और प्रात्मसन्तोष मिलता है, वह तो मिला ही। लगभग ६६ वर्ष की प्रायु में दिनाक २७ अक्तूबर, १९७७ को कालकवलित होने तक, लगभग चार दशक साह शान्तिप्रसाद जैन, जैन समाज के तो सर्वमान्य सर्वोपरि नेता एवं प्रायः एकच्छत्र सम्राट बने रहे। निश्चय ही उनका शील, सौजन्य, उदाराशयता, दानशीलता, सामाजिक चेतना, उत्साह और लगन इस मान-प्रतिष्ठा के कारण थे । अनेक धर्म एव सम्प्रदाय-निरपेक्ष लोकहितकारी प्रवत्तियो के अतिरिक्त प्रायः सभी जैन तीर्थों को, अनगिनत जैन सस्थानों, संगठनो एव प्रवृत्तियों को तथा दर्जनों सास्कृतिक एवं शिक्षा संस्थानो को उनसे उदार सरक्षण एवं पोषण प्राप्त हुआ। मखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद तो उनके जीवनकाल मे प्रायः उन्ही के अवलम्बन पर जीवित रही। कम से कम पूरे दिगम्बर जैन समाज में एकता, एकसूत्रता स्थापित करने के उद्देश्यो से, अपने निधन से कुछ ही पूर्व उन्होने दिगम्बर जैन महासमिति की स्थापना के लिए सफल प्रेरणा दी। स्व०प० जुगलकिशोर जी मुख्तार के साहूजी प्रारम्भ से ही बड़े प्रशंसक थे। प्रतः वह मुख्तार साहब द्वारा सस्थापित वीर-सेवा-मन्दिर और 'अनेकान्त' पत्रिका को सदैव सरक्षण प्रदान करते रहे। मुख्तार साहब द्वारा चलाये गये 'वीर-शासन-जयन्ती' अभियान को साहजी का पूरा समर्थन प्राप्त हुमा, और उनके तथा स्व. बाबू छोटेलाल जी के सत्प्रयत्नो एव सहयोग से ही सन् १९४४ को श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के प्रातःकाल राजगह के विपुलाचल पर वीरशासन का २५००वी जयन्ती ससमारोह मनाई गई। भगवान के उक्त पुनीत प्रथम देशना स्थल पर शिलालेखाकित स्मारक स्थापित किया गया और 'वीरशासन सघ' के नाम से दस लाख रुपये का एक विशाल योजना बनी। कतिपय कारणो से वह योजना सफल न हो सकी, जिसका साहजी भोर छोटेलाल जी, उसके उक्त दोनो ही कर्णधारोको दुःख हमा।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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