SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर : प्राचरण के शक्ति पुंज डा० महेन्द्र सागर प्रचंडिया, अलीगढ़ परिनिर्वाण काल मे महावीर के विषय में बहुविधि समता ने सचार किया। व्यक्ति उदय से वर्गोदय और विचार विवेचना हुई है। जहां तक मुझे लगा-महावीर अन्ततोगत्वा सर्वोदय मुखरित हुआ। समुदाय और समाज को उपासना का प्रादर्श मानकर उनके उपासको द्वारा को समझ कर महावीर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि---- जिस प्रास्था की स्थापना हई, उसने उन्हे मात्र देवालय कोहो पोई पणासेई माणो विणय नासणो। तक सीमित कर दिया, फलस्वरूप व्यक्ति और वस्तु-बोध माया मिताणि नासई लोहो सम्वविणासगो।। में बाधा उत्पन्न हुई है। मेरी धारणा बनी है कि महावीर _ अर्थात् क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का मात्र उपासना के नही, अपितू माचरण की प्रतिशय शाक्ति नाश करने वाला है, माया मंत्री का विनाश करती है और थे। उन्होंने जो कहा उसे हम अाज तक गाते-वृक्षगते है। लोभ सब (प्रीति, विनय पोर मैत्री) का नाश करने उन्होंने जो किया, अथवा उनके द्वारा जो हुग्रा, उससे हम वाला है। प्रस्तु, उन्ह प्रायः अपरिचित मोर उपेक्षित रहे है । वस्तुतः उन्होने जो सत्य, प्रचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह –को स्थान दिया । किया, हमारे लिए वही प्रादर्श के रूप में अधिकतर उप- व्रत-व्यवहार से जीवन जागृत होता है। जीवन व्यापी योगी रहेगा। संकीर्णता के समूल समापन के लिए उन्होंने स्यावाद की महावीर ने धर्म को संकीर्ण नही बनाया। उसकी शैली और अनेकान्त जमे सफल सिद्धात की उपयोगिता माकीर्णता उन्हे सर्वथा प्रियकर रही है। उन्होने प्रावश्यक का सम्यक उद्घाटन कर दिया। समझा कि धर्म की अभिव्यक्ति लोकभाषा मे होनी चाहिए, प्राज भ० महावीर का चरित्र हमारे जीवनोत्कर्ष के ताकि उसके समझने के लिए समय-परिधि में न बंधना लिए परमोपयोगी है। उन बातो को मात्र गाने दुहगने पड़े । धर्म तो हमारी जीवन-चर्या का स्वभाव होता है, की अावश्यकता नहीं है अपितु उन सभी बातो को हमारी प्रतः उसका जीवत होना अत्यन्त प्रावश्यक है। जीवन-चर्या से चरितार्थ होना चाहिए, तभी हम स्वय पौर धर्म का स्वभाव है कि उसे समझ कर व्यक्ति उठे, दूसरों को जीवन जीने देने का निमित्त जुटा पायेंगे। [] व्यक्ति-उठान समुदाय और समाज को उठाती है। महा मानद-सचालक, जैनशोध अकादमी वीर काल मे व्यक्ति विकास हमा। विषमता के स्थान पर आगरा रोड, अलीगढ़ (उ. प्र.) (पृष्ठ ६५ का शेषांश) प्रतिमा हेय है, प्रवन्दनीय है। स्वकीय शासन में भी उत्कृष्ट घन कर सकते है। प्रतिमा वन्दनीय है, अनुत्कृष्ट नहीं। उत्कृष्ट और अनु___ यह निश्चित है कि जहाँ निन बिम्ब व जिन मन्दिर त्कृष्ट प्रतिमा क्या है ? पच जनाभासों के द्वारा प्रतिष्ठित होते है वहाँ के गहस्थ पूना, अभिषेक प्रादि धर्म कार्य आदि धम काय अजलिका रहित तथा नग्न भी मूर्ति वंदनीय नहीं है । जैनाकरके सदा धर्मोत्सव करते रहते है जिस | उनका पुण्य बघ भासो से रहित साक्षात् प्रात् संघों के द्वारा प्रतिष्ठित होता रहता है और अशुभ कर्म नष्ट होते रहते है । परन्तु ट हात रहत है । परन्तु तथा चक्ष व स्तन प्रादि विकारोंसे रहित प्रतिमा ही वंदनीय जहां जिनबिम्ब व जिन मन्दिर नहीं है वहाँ के गृहस्थ है। इन्द्रनन्दि भट्रारक कहते है कि नन्दिसंघ, सेनसंघ, त रहते है। इसलिए वहाँ न देवसंघ पौर सिंहसंघ इन चार संघो के द्वारा प्रतिष्ठित तो धर्म का उद्योत होता है और न वे पुण्य-बंध कर सकते है, न अशुभ कर्म नष्ट कर सकते है। प्रस्तु, धर्म की स्थिति जिनबिम्ब ही नमस्कार किए जाने योग्य हैं, दूसरे संघों के म जिनविम्ब व जिन मन्दिर भी मख्य कारण है। प्रतः द्वारा प्रतिष्ठित नहीं, क्योंकि वे न्याय व नियम के विरुद्ध हैं। धार्मिक पुरुषों को जिनबिम्ब, जिनमन्दिर अवश्य बनवाना अन्त में, यही कहा जा सकता है कि जिनेन्द्र प्रतिमा चाहिए। इसकाल में ये ही कल्याण करने वाले है तथा ये श्रमण संस्कृति के लिए गौरव की वस्तु है। वह प्रत्येक ही धर्मवृद्धि के मुख्य कारण है। जैन-प्रजैन साधक के लिए पूज्य है, महान है और है जिनेन्द्र प्रतिमा में दिगम्बर प्रतिमा ही पूज्य है, अर्थात् कल्याणकारी। पीली कोठी, मागरा रोड, स्वकीय शासन की प्रतिमा ही उपादेय है धौर परकीय अलीगढ़-२०२००१ १. सागार धर्मामृत, श्लोक संख्या ३६, पृ० १११, प्रथमा- २. सागार धर्मामृत, लोक संख्या ३७, पृ० ११३, वृत्ति, वी० सं० २४४१, मूलचन्द किशनदास काप. प्रथमावृत्ति, वी० सं० २४४१, मूलचन्द किशनदास हिया, सूरत। कापड़िया, सूरत।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy