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________________ रामगुप्त और जैन धर्म D० सोहन कृष्ण पुरोहित, जोधपुर गुप्तवंशी नरेशों के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि रामगुप्त की मुद्राएँ विदिशा, एरिकिणप्रदेश (पूर्वीसमुद्रगप्त का उत्तराधिकारी उसका द्वितीय पुत्र द्वितीय मालवा) से प्राप्त हुई है। डा० के० डी० वाजपेयी ने चन्द्रगुप्त बना'। परन्तु विशव दत्त द्वारा रचित 'देवी इन मद्रामो को चार प्रकारों में विभाजित किया है, जो चन्द्रगुप्तम्" नाटक के उपलब्ध अंशो, बाण के 'हर्षचरित" इस प्रकार हैं-- सिंह, गरुड़, गरुडध्वज मोर बार्डर राजशेखर की 'काव्यमीमांसा" तथा एक मम्लिम कृति लिजेण्ड । इन मुद्रामो पर गरुड़ध्वज का अंकन उसे मजमल-उत तवारीख' प्रादि साहित्यिक साधनो एव राष्ट्र गुप्तवंशीय नरेश प्रमाणित करता है। उसके अभिलेख कटों के सजन', केम्बे तथा मांगली दानपत्रो के मम्मिलित विदिशा के निकट दुर्जनपुर ग्राम से प्राप्त हुए है। ये जन साक्ष्यो से संकेतित है कि ममुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् मूर्ति प्रभिलेख हैं, जिनकी स्थापना रामगुप्त ने करवाई उसका ज्येष्ठ पुत्र गगगुप्त उत्तराधिकारी बना, जिसके थी। प्रथम एवं तृतीय अभिलेख के अनुसार, रामगुप्त ने चेसूक्षमण नामक प्राचार्य के उपदेशानमार चन्द्रप्रभ नामक अनुज द्वितीय चन्द्रगुप्त ने उसे मारकर मिहामन पर ग्रहंत की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। द्वितीय लेख" के अधिकार कर लिया था। उपयंत माक्ष्यानुमार गमगुप्त अनुमार, उसने पुष्पदन्त नामक ग्रहंत की मूर्ति का निर्माण एक कायर एव कुल के लिा कलक तुल्य था । शक नरेश कगया था। द्वारा घेर लिए जाने पर उसने अपनी पत्नी ध्रव देवी का हमार मान्यता है कि गुप्तवशीय नरेश होने के कारण शकाधिपति को देना स्वीकार कर लिया था। लेकिन उमन मुद्रामो पर गरुड का अंकन जारी रखा। लेकिन द्वितीय चन्द्रगुप्त ने शकाधिपति को धोखे से मारकर वास्तव मे रामगुप्त का झुकाव जैन धर्म की पोर था सम्राज्ञी और माम्राज्य का सम्मान बढ़ाया। बाद मे जिमका प्रमण उसके जैन प्रतिमालेख है। विशाग्वदत्त अवसर पाकर रामगुप्त की भी हत्या करके मिहामन पर उसे कायर कह कर पुकारता है। लेकिन हम विशादत्त के अधिकार और ध्रव देवी से विवाह कर लिया। ये घट विचारो से सहमत नही है। हमारी धारणा है कि शकाधिनाएं ऐतिहासिक है अथवा नहीं, इस विषय पर करीब इस विषय पर करीब पति ने जब रामगुप्त पर प्राक्रमण किया, उस समय उसने पिछले पचास वर्षों से बड़ा विवाद चला जा रहा (रामगुप्त ने) कायरता के कारण ध्रुवदेवी को देना स्वीकार परन्तु पिछले कुछ वर्षों में गमगुप्त को मद्राएं और अभि किया था। अपितु रामगुप्त एक कट्टर जैन धर्मावलम्बी लेख प्रकाश मे मा जान से उगकी ऐतिहामिकता प्रमाणित कट्टर नरेश था। इसलिए उसने सोचा कि यदि शकाधिपति हो गई है। से युद्ध किया जायेगा तो युद्ध मे सैकड़ों व्यक्ति मारे जायेगे। १. भीतरी स्तम्भ लेख । चतुर्थ पक्ति--सर्पसेनलक्ष्मण शिष्यस्य गोलक्या२. गुप्त, परमेश्वरीलाल-गुप्त साम्राज्य, पृ० १२३-१३० त्यासत्पुत्रस्य चेलुक्षमणस्येति । ३. वही, प० १३८ । ४. वही। १०. प्रथम पक्ति-भगवतोऽहंतः (चन्द्रप्रभ) स्य प्रति मेय ५ इलियट, डा उसन-हिस्टरी प्राफ इण्डिया एज टोल्ड कारिता महा (राजा) धिराराज - बाइ इट्स प्रोन हिस्टोरियम, १, प० ११० । द्वितीय पक्ति-श्री (रामगुप्ते)म उ(पदेशात) ६. ए० इ० ४, पृ० २५७, ए० इ० १७, पृ० २४८ । (पा) णि (पात्रि)... ७ ज० न्यू० सो० इ० १२, पृ० १०३, १३, पृ० १२८ ८. जनल आफ इण्डियन हिस्टी, ४२, पृ० ३८६। ११. (१) भगवतोऽहंतः । पुष्परम्तस्य प्रतिमेयं कारिता । ६. प्रथम पक्ति - भगवतोऽहंत.। चन्द्रप्रभस्य प्रतिमेय (२) महाराजाधिराज श्री रामगुप्ते उपदेशात् कारिता। पाणिपात्रिक । द्वितीय पंक्ति-महागजाधिराज, श्री रामगुप्तेन, (३) चन्द्रक्षम (णा) चार्य-(क्षमण)-श्रमण प्रशि उपदेशात पाणिया (व्यस्य) ततीय पक्ति-त्रिक चन्द्रक्षमाचार्य क्षमण श्रमणप्रशिष्याचार्य १२. ज. न्यू० सो० इ० २३, पृ० ३३१.४३ । । पक्ति- णि ( प वित
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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