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________________ साहित्य-समीक्षा १. साम्प्रदायिकता से ऊपर उठो - प० उदय जैन । प्रकाशक - श्री जैन शिक्षण संघ, कानोड ( उदयपुर ) राजस्थान | पृष्ठ संख्या: २४४, प्रकाशन वर्ष १९७६ ; मूल्य : पाच रुपया । · इस ग्रन्थ में जानेमाने समाजसेवी, अनुभवी अध्यापक एवं प्रबुद्ध विचारक पं० उदय जैन के धर्म समाज एवं शिक्षा से सम्बन्धित चालीस लेखों का उत्कृष्ट संकलन है । उनके इस संचयनगत प्रायः सभी लेख विभिन्न जैन पत्रिकाधों में प्रकाशित हो चुके है। इन लेखों में गिन पर म्परा एवं चिन्तन के प्रति विद्रोह, सम्प्रदायातीत समाज की स्थापना एवं प्राग्रह और रूढिमुक्त मंगलकारी समाज का स्वप्न निहित है । इन लेखो में एक ओर तो जनों की परस्पर मंत्री, उनके सामाजिक और वैयक्तिक चरित्रस्थान तथा सुधारोन्मय चेतना के स्वर विद्यमान है वहा ऐसे तेस भी निबद्ध है जिनका चिरनन और महत्व है, और स्वी रचनाकार की बहु प्रतिभा के परिचायक है। भागो नही पड़ोस् मुक्ति एक पदार्थ निर्वाण शताब्दी वर्ष की इतिथी साम्प्रदायिकता से ऊपर उठो, जैसे लेख निश्चय ही पं. उदय जैन की काति पर्मिता के योतक है। भ पा सरल प्रवाहमय एवं प्रभावोत्पादक है । पुस्तक का मूल्य उचित है। -- गोकुल प्रसाद जैन, सम्पादक २. नेमिनाथ महाकाव्यम् (हिन्दी अनुवाद सहित ) - मूल रचनाकार खरतरगच्छाचार्य श्री कीर्तिरत्न सूरि सम्पादक- अनुवादक- डा० सत्यव्रत; प्रकाशक श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर एवं नाहटा बदमे ४ जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता -- 3, पृष्ठ २४६; प्रकाशन वर्ष १६७५; मूल्य दस रुपया १५वी पाली में रचित यह महाकाव्य १२ स में विभक्त है। इससे पूर्व भी यह विजय की सरलार्थ प्रकाशिका टीका के साथ विजय घनचन्द्र सूरि ग्रन्थ माना से तथा यणो विजय जैन ग्रन्थ माला से प्रकाशित हो चुका है, किन्तु अब ये प्रकाशन अप्राप्य है । इस दृष्टि से भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर प्रकाशित यह ग्रन्थ इस प्रकाशन के प्रभाव की पूर्ति करता है । यह महाकाव्य कविवर कीतिरत्न सूरि के लोकानुभव की दापकता और पूर्व साहित्यिक प्रतिभा का परि चायक है तथा इसमें कविवर के जीवन काल की सवत् १५०२ मे ति महिमा भक्ति ज्ञान भण्डार, बीकानेर की प्रति के श्राधार पर, प्रामाणिक सशोधित पाठ दिया गया है। साथ ही पुस्तक के अन्त में, मर्ग क्रम से हिन्दी अनुवाद भी दे दिया गया है। इसके अतिरिक्त पुस्तक के आरम्भ में डा० सत्यव्रत ने इस महाकाव्य का व्यापक ३८ पृष्ठों में विश् वमीक्षात्मक विश्लेषण भी दिया है, तथा सुप्रसिद्ध मनीषी श्री अमरचन्द नाहटा ने आचार्य रत्न का जीवन परिचय धौर उनकी रचनाथों के नमूने दिए है। इसी प्रकार, पुस्तक के अन्त में इस महाकाव्य गत सुभाषितसंग्रह और प्रकाशदिक्रम में पानुकमणिका दी गई है। इस सब सामग्री के कारण इस ग्रन्थ की उपयोगिता एव उपादेयता में प्रतीव वृद्धि हुई है । गोकुल प्रसाद जैन, सम्पादक महौषधि दान ऋग्वेद में शिव को भेषज एवं श्रौषधिदाता वहा गया है। वृषभ को जैन शास्त्र-पुराणकारां में जन्म-जरा-मृत्यु आदि सांसारिक व्याधियों से पीड़ित जीवों को धर्मरूपी श्रौषधि प्रदान करने वाला कहा गया है। यहां तक कि महापुराण के अनुसार, जब उनका निर्वाण हुआ तब यह अनुभव किया गया कि एक महौषधि का वृक्ष मनुष्यों के जन्मादि रोगों को नष्ट कर पुनः स्वर्ग में चला गया। - डा० हीरालाल जैन (जेनिज्म थ्रू एजेज)
SR No.538030
Book TitleAnekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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