________________
ग्रन्थ- समीक्षा
१. सचित्र भक्तामर रहस्य - पं० शास्त्री एवं माशुकवि फूलचन्द पुष्पेन्दु सेन रतनलाल जैन कालका वाले, दिल्ली- ११०००६ मूल्य १५ रुपये
आकार; १६७७ ।
स्तोत्र का यह इनमे से प्रथम
प्राचार्य मानतुंग विरचित भक्तामर बृहत् संस्करण पांच खण्डों में विभक्त है। खण्ड मे भक्तामर सार्थक चित्रालोक, द्वितीय खण्ड में तत्सम्बन्धी सत्य कथाएं, तृतीय खण्ड में दिव्य मंत्र तथा चतुर्थ खण्ड में दिव्य यन्त्र समाविष्ट है । पचम खण्ड का विषय भक्तामर सरस अर्चनालोक है। सत्यकथालोक के अन्तर्गत पौराणिक कथायों को नवीन पन्यासिकी में प्रस्तुत किया गया है। इसमे ४८ प्रामाणिक यात्राकृतियां, श्री सोमसेनाचार्यकृत भक्तामर मंडल विधान, भक्तामर महिमा श्रादि यथास्थान निबद्ध हैं ।
कमलकुमार जैन प्रकाशक: भीकम १२८६, वकील पुरा, पृष्ठ ४४७ डिमाई
यह ग्रन्थ भक्तामर स्तोत्र पर अब तक समय-समय पर रचित शताधिक व्याख्या-ग्रन्थों में सर्वाधिक व्यापक और सर्वागीण है।
इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में डा० ज्योतिप्रसाद जैन
विराङ्गः।
प्राचीन भारतीय साहित्य में अनेक कोशकारो, या करण एवं साहित्यकारो ने 'भ्रमण' के पर्यायवाची श दिये है जो अपने-अपने युग मे जैनवाची रहे हैं एवं जैनवाची शब्दों की सुव्यापक एवं प्रविरल परम्परा के द्योतक है। ये पर्यायवाची शब्द इस प्रकार है - ऋग्वेद-१०-०५-२) - नि: वातरशन:
वैदिक
श्रमण (जैन) के पर्यायवाची शब्द
-
ने जैन मक्ति, जैन स्तोत्र साहित्य, भक्तामर और उसके रचयिता आचार्य मानतुंग, भक्ति परक साहित्य यादि का संक्षिप्त विवेचन किया है। यह ग्रन्थ सर्वोपयोगी स्वाध्येय एवं संग्रहणीय है । गोकुलप्रसाद जैन, सम्पादक २. प्राराधना सुमन - सम्पादक : प० हीरालाल जी जैन 'कौशल' संकलनकर्ता एवं प्रकाशक : श्री श्रीकृष्ण जैन, मंत्री श्री शास्त्र-स्वाध्याय वाला श्री पार्श्वनाथ दि० जैन मन्दिर, बाबा जी की बगीची (बचाने के पीछे, सब्जी मंडी. दिल्ली - ६; पृष्ठ संख्या १६२; मूल्य २ रु० ५० पैसे १९७७ ।
प्रस्तुत ग्रंथ में जैन भजनों, स्तुतियों, भावनाओंों, भारतियो चालीसा, जाप्यमंत्रों, उपयोगी विचारों पादि का सुन्दर संकलन है जो श्राध्यात्मिकता के प्रति प्रेरित करते है । ये विविध प्रवसरों एवं विविध प्रसगो के लिए उद्दिष्ट है। पुस्तक को सर्वोपयोगी बनाने के लिए ही इस मे विविध प्रकार की सामग्री संकलित की गई है जिसके लिए सकलनकर्ता एवं सम्पादक दोनों साधुवाद के पात्र है । पुस्तक सर्वथा उपयोगी एवं उपादेय है। - गोकुलप्रसाद जैन. सम्पादक
भग्नाट, दिगम्बरः, श्राजीव:, मलघारी, जीवकः, जैन:, धमर्णय: बेलुकः (रुद्रसंहिता पार्वतीखण्ड-२४/३१)मधुव्रतः । (पञ्चतन्त्र १।१३) पाणिपात्र: । (पद्मपुराण - १३।३३ ) - योगी, मुण्डः, बहिपिच्छधरः, द्विजः । ( जिनदत्तसूरि : ) - लुञ्चितः, पिच्छिकाहस्तः । ( काव्यजिला- १४०) मारनिजी केशविकः (जिन सहस्रनाम ) - निष्किञ्चनः निराशंसः, ज्ञानचक्षुः, श्रमो मुहः । (मेदिनीकोश 'न' १३ ) - नग्नः, विवासा । (स्कप्राकृत (स्थाना]यूब - ३) समणो (पाइयलच्छीपुरा-२६-३२-३६) मुण्डी, मयूरपिच्छवारी, महानाममाला, ३२ ) - जइणो, तदस्सिणो, तावसा, रिसी, व्रतः । (हर्षचरित) - नग्नाटक, शिखिपिच्छलाञ्छनः । भिक्खुणो, मणी, समणा । (परमात्मप्रकाश - ११८२ ) (अपणक), सेवड (प) बन्द (बन्दकः) । (राज सिंह विदित-चरित ५० तथा ३६८) सवणु (भ्रमण), श्रमण (भ्रमण) ।
अपभ्रश
खवण उ
पालि (दीपनिकाय-३) पचेरनोपलको (तविक, किमनिकाय, महासिंहनाद सुत्त) नमो (प्रगुत्तर- चतुक्कनिपात ४।५ ) – निग्गठो ।
—
संस्कृत -- ( श्रीमद् भागवत - ११.६.४७ ) - वातरशन:, ऋषि. मी (जिनसेन का महापुराण) - दिग्वास निर्ग्रन्थेशः, निरम्बरः । ( शाङ्करभाष्य ) - परिव्राट् व श्रमण का स्त्रीलिङ्ग (प्राकृत मे कल्पसूत्र ) ( निघण्टु ) - वातवसनः । (सूत्राथमुक्तावलिः - ५१-५२ ) समणी । सस्कृत मे - वाल्मीकि रामायण - ३.७४.७ तथा - ब्राह्मण, भिक्षु (महाभारत- पौष्यपर्व ३।१२६) अत्रचूडामणि ११.१६ ) श्रमणी श्रमणा । । - ( प्रभिधानक्षपणकः । ( शाश्वत कोष ) -क्षपगः, निष्परिच्छदः । ( कोष कल्पतरुः - ५२-५३ ) -- सर्वार्थसिद्ध, साद्यन्तः, भदन्तः,
-
३.१६६) घवना, भिक्षुकी मुण्डा श्रमणा कुमारी साध्वी श्रमणी - सुहागन स्त्री साध्वी ।
-
3
हिन्दी - ( मलिक मोहम्मद जायसी - पद्मावत सि० द्वीपवन पृ० ३२ ) सेवरा ( क्षपणकः)।
-