SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ वर्ष २९, कि० १ स्वशरीर के मासदान के लिए तत्पर राजा की गनी के द्वारा विरत किए जाने पर उसने कहा अनेकान्त यायावरेण किमनेन शरीरकेण स्वेच्छान्नपानपरिपोषपीवरेण । सर्वाशुचिप्रणयिन कृतनाशनेन कार्य परोपकृतये न हि कल्प्यते यत् ॥ करुणावयुद्ध मे धर्मप्रचार प्रधान उद्देश्य है, और वह भी वैदिक धर्म की निन्दापूर्वक | कबूतर श्येन आदि पक्षियों को पात्र बनाना यह भी इस कृति की अपनी ही विशेषता है'। ग्रञ्जनापवनञ्जय - हस्तिमल्ल के ७ अंको के इस नाटक की कथावस्तु विमलसूरि के पउमचरिउ से ली गई है। इसमे दिव्यपात्रो का क्रियाकलाप है । अञ्जना स्वयंवर मे पवनञ्जय का वरण करती है। कुछ समय बाद अञ्जना ने हनुमत को जन्म दिया। पवनञ्जय का मादित्यपुर मे अभिषेक किया गया। सुभद्रा नाटिका हस्तिमल्ल की चार प्रको की इस नाटिका में विद्याधर राजा नमि की भगिनी मोर कच्छराज की कन्या सुभद्रा का तीर्थकर नृपम के पुत्र भरत से विवाह का कथानक निवद्ध किया गया है । हस्तिमल्ल के इस रूपक मे व कुछ अन्य रूपको मे स्वयंवर विवाह की चर्चा है। ऐसा प्रतीत होता है कि कविवर विवाह का पक्ष पानी था । विक्रान्त कौरव हस्तिमल्ल के इस रूपक में काशीनरेश कम्पन की कन्या सुलोचना स्वयंवर मे कुरुराज कुमार का वरण करतो है। प्रकीति व जयकुमार के युद्ध मे जयकुमार कीति को परास्त करता है । तब सुलोचना व जयकुमार का विवाह धूमधाम से होता है। भरत चक्रवर्ती व तीथकर ऋषभदेव भी प्रकाशन्तर १९ मध्यकालीन संस्कृत नाटक, पृ० २७७ से २७६ T ३ विभारतको १.१ १.५५ ४.१७ ५.१५: ६ ५२ व ६.५४ । ४. ६० नाथूराम प्रेमी कुछ जैन साहित्य और इतिहास से वर्णित है । इसमे कई स्थलों पर आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की वन्दना की गयी है' । ज्योतिः प्रभाकल्याण - ब्रह्मसूरि ने ( १४वी व १५वी शताब्दी के अधिकाल मे ) ज्योति: प्रभाकल्याण नाटक की रचना की थी । ब्रह्मसूरि नाट्याचार्य हस्तिमल्ल के वंशज है । इसका प्रथम अभिनय शांतिनाथ के जन्मोत्सव पर हुआ था। इसमें शातिनाथ का पूर्वभव सम्बन्धी प्रमिततेज विद्याधर और ज्योति प्रभा का कथानक है गुणभद्र का उत्तरपुराण इसकी कथावस्तु का आधार है । नाटक मे यत्र-तत्र जैन जीवनदर्शन की झलक प्रस्तुत की गई हैकायक्लान्तिः काम केलौ कलास्वम्यसनाश्रमः । सांसारिक सुख सर्व विधमेवावभासते ।। इस युग मे जैन विचारवारा में कुछ परिवर्तन आया। पहले तक जैन मे गृहस्थाश्रम के प्रति उदासीनता घोर उपेक्षा का भाव था, इस युग मे मनुस्मृति मे विश्लेपित श्राश्रमव्यवस्था मानो स्वीकार कर ली गई । कवि की उक्ति है धर्मोऽयं कामो मोक्ष इति पुरुषार्थचतुष्टय क्रमवेदी किमपि न त्यजति । प्राधारो गृहाश्रमी सर्वाश्रमिणामाहारादिदानविधानात् न चेदनगाराणां कथं कार्यस्थितः । । शामामृत' नेमिनाथ के शामामृत मे ( १२वी नदी) में नेमिनाथ को विरक्ति की कथा है। नेमिनाथ का विवाह उग्रसेन की कन्या राजमती से होने वाला था। उनके विवाहोत्सव मे भोज बनने के लिए मारे जाने वाले असख्य पशु से रहे है। पशुमो के रोदन को सुनकर नेमिनाथ ने मार से कहापशूनां रुधिरैः सिक्तो यो धत्ते दुर्गतिफलम् । विवाहविषवृक्षेण कार्य मे नाना ।। - इतर नाटक - कुछ जैन नाटककारों ने संस्कृत नाटक परंपरा से प्रभावित होकर अपने नाटको की रचना की पृ. ४६६ । बगलोर से प्रकाशित काव्याम्बुधि, मासिक पत्रिका प्रथम प्रक में इसके प्रथम द्वितीय व तृतीय बक के तीन पृष्ठ प्रकाशित हुए है। ५. ज्योति प्रभाकस्याण १.२४ । ६. मुनिधर्म विजय द्वारा संपादित, भावनगर से प्रकाशित ।
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy