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________________ वेदों में जैन संस्कृति के गूंजते स्वर कुछ समय पूर्व कुछ ग्रालोचको ने जैन धर्म की प्राचीनता के बारे मे अनेक भ्रान्तिया फैला रखी थी । कोई इसे हिन्दू धर्म की शाखा मानता था तो कोई बुद्ध धर्म की। कोई इसे भगवान महावीर द्वारा प्रवर्तित मानता था तो कोई भगवान पार्श्वनाथ द्वारा, परन्तु जैसे- जैसे सांस्कृतिक शोधकार्य श्रागे बढ़ता गया और तथ्य प्रकाश मे आते गए, यह सिद्ध हो गया कि जैन धर्म वेदों से भी प्राचीन धर्म है । इस अवसर्पिणी काल मे भगवान ऋषभदेव इसके प्रवर्तक थे। मैने अन्यत्र सनातन धर्मी पुराणो से जैन धर्म पर प्रकाश डालने वाले कुछ तथ्य प्रस्तुत किये थे। यहां वेदों, उपनिषदों यादि से कुछ ऐसे तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूं जो जैन धर्म की प्राचीनता के स्वतः सिद्ध प्रमाण है । महंता मे सुदानवो नरो असो मिसा स प्रयज्ञं यज्ञिभ्यो दिवो प्रर्चा मरुद्द्भ्यः । - ऋग्वेद, श्र० ४ श्र० ३ वर्ग ८ | इस मन्त्र में अरिहन्तों का स्पष्ट उल्लेख विद्यमान है दीर्घत्वायुर्बलायुर्वा शुभ जातायुः, । ॐ रक्ष रक्ष श्ररिष्टनेमिः स्वाहा । इस मन्त्र मे बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान श्ररिष्टनेमि जी से रक्षा की प्रार्थना की गयी है । ज्ञातारमिन्द्र ऋषभं वदन्ति, प्रतिचारमिन्द्रं तमपरिष्टनेमि भवे भत्रे । सुभवं सुपाश्र्वमिन्द्रं Tag शक्रं प्रजितं तद् वर्द्धमानं पुरुहूतमिन्द्र स्वाहा ।। प्रस्तुत मन्त्र मे भगवान् ऋषभदेव जी, द्वितीय तीर्थङ्कर श्रजित नाथ जी, तेईसवें तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ जी और चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् वर्धमान जी का स्पष्ट उल्लेख है । नमं सुवीरं दिग्वाससं ब्रह्म गर्भं सनातनम् ॥ श्री जी. सी. जैन ॐ त्रैलोक्पप्रतिष्ठितान् चतुविशति तीर्थङ्करान् ऋषभाद्यावर्द्धमानान्तान् सिद्धान् शरणं प्रपद्ये ॥ - बृहदारण्यके काम क्रोवादि शत्रुत्रों को जीतने वाले वीर, दिशाएं ही जिनके वस्त्र है, जो ज्ञान के अक्षय भण्डार ( केवल ज्ञान ) को हृदय में धारण करने वाले और सनातन पुरुष है, ऐसे अरिहन्तों को नमस्कार करता हूँ । तीनों लोकों में प्रतिष्ठाप्राप्त भगवान् ऋषभ देव से लेकर भगवान् वर्धमान तक २४ तीर्थङ्कररूप मिद्धो की शरण ग्रहण करता हूं | ऋषभ एव भगवान् ब्रह्मा भगवता ब्रह्मणा स्वयमेवाचीर्णानि ब्रह्माणि तपसा च प्राप्त परं पदम् । -- श्रारण्य के भगवान् एव द्वारा मोक्ष प्रस्तुत मन्त्र मे भी ऋषभदेव जी को ब्रह्मा बताया गया है और उन्हें स्वयं ही तप प्राप्त करने वाले कहा गया है। प्रातिथ्यरूपं मासरं महावीरस्य नग्नहु । रूपामुपास दामेत तिथो रात्री सुरा सुताः ॥ — यजुर्वेदे यजुर्वेद के प्रस्तुत मन्त्र मे भगवान महावीर का नामोल्लेख स्पष्ट है । मन्मना प्रप्पा ददि मेयवामन रोदसी इमा च विश्वा भुवनानि यूथेन निष्ठा वृषभो विराजास । - सामवेदे, ३ अ १ खंड० सामवेद के इस मन्त्र मे भी भगवान् ऋषभदेव को समस्त विश्व का ज्ञाता बताया गया है। नाहं रामो न मे वाछा, भावेषु च न मे मनः । शान्तिमास्थातुमिच्छामं स्वात्मन्येव जिनो यथा ॥ - योगवशिष्ठ मैं राम नही हूं, मुझे कोई कामना नही, पदार्थों में
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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