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________________ उपर्युक्त देवंतगिरि रास इस प्रकार हैं: रेवंतगिरि रास नागेन्द्र गच्छीय विजयसेन सूरिकृत (सं० १२८७) प्रथम कड़वम् वासंती वोरिणि विरह वंसियालि वण वंग ॥ १७ ॥ परमेसर तित्थे सरह पय पंकय पणमेवि । सीसमि सिवलि सिरस सभि सिंध वारि सिरखंड। भणि सुरासु रेवत गिरे अंबिक दिवि सुमरेवि ॥६॥ सरल सार साहार सय सागुसिगु (?) सिणवड ॥ १८ ॥ गामागर पुरवण गहण सरि सरवरि सुपएसु।। पल्लव फुल्ल फलुल्लसिय रेहइ ताहि (?) वणराइ। देवभूमि दिसि पच्छिमह मणहरु सोरठ देसु ॥ २॥ हिउज्जिल तलि धम्मियह उलटु अंग न माइ॥ १६ ॥ जिणु (जणु) तहि मंडल मंडणउ मरगय मउड महंतु । बोलाबी संघहतणीय कालमेघन्तर पंथि (?)। निम्मल सामल सिहर भरे रेहइ गिरि रेवंतु ॥३ मेल्हविय (?) तहि दिधणीय वस्तुपाल वरमंति ॥ २०॥ तसुसिरि सामिउ सामलउ सोहग सुन्दर साह । द्वितीयम् कडवम् जाइय निम्मल कुल तिलउ निवसइ नेमि कुमार ॥४॥ दुहविहि गुज्जर देसे रिउराय विहंडणु ॥ तसु मुह वसण दए दिसि विदेस देसंतह संघ ॥५॥ कुमारपाल भूपाल जिण सासण मंडणु । मावह अब रसाल भण, उट्टलि (?) रंग तरग । तेण मंठाविमोसुरठ दंडाहियो अंब प्रोसिरे सिरिमाल पोरपाड कुल मडणउ नंदणु आसाराय । कुल संभवो। वस्तुपाल वरमंति तहि तेजपाल दुइ भाय ॥ ६ ॥ पाज सुविसाल तिणि नठिय अंतरे धवल पुणुपरव मराविय ॥ गुरजरधर धुरि धवलकि वीरधवलदेव राजि । धनु सुषवलह भीड जिणि पाग पयासिय । विहु वंधवि अवयारिऊ सुरायु दूसम माझि ॥ ७॥ वार विसोतर बरसे जसु जसिदिसि वासिय ।। नायल गच्छह मडणउ विजय सेण सूरिराऊ । जिम जिम चढ़इ तडि कडणि गिरनारह । उवएसिहि विहुनर पवरे धम्मि धरिउ विटु भावु ॥ ॥ तिम तिम ऊडइ जण भवण सतारह ।। तेजपाल गिरनार तले तेजलपुरु नियनाभि । जिम जिम से उजलु अग्गि पालाट एं। कारिउ गढ़ गढपव पवरु मणहरु धरि पारामि । तिम तिम कलिमलु सयल प्रोट्टह ए। तहि पुरि सोहिउ पास जिणु प्रासाराय विहारु ।। ६॥ जिम जिम वायह वाऊं तहि निझर सीयलु । निम्मिउ नामिहि निज जणणि कुमर सरोवर कार ।। १०॥ तिम तिम भव दुह दाहो तरकणि तुट्टइ निच्चलु ।। तहि नयरह पूरब दिसिहि उग्रसेण गढ़ दुग्ग। कोइल कलयलो मोर केकाखो सुमए महयरु महरु गुंजाखो। मादि जिणंसर पमुह जिण मदिरि भरिउ समग्गु ॥११॥ पाजचंडतह सावयालोयणी लाखाराम (?) दिसि दोसए वाहिरिगढ़ दाहिण दिसिहि चउरिउ वेहि विसालु । वाहिणी। लाडकलह (?) हिय पोरडिय तडि पसुठाइ (?) करालु। जलव जाल बंबाले नीझरणिरमाउलु । तहि नयरह उत्तर विसिहि साल थंभ संभार ॥ १२॥ रेहइ उज्जिल सिहरु अलि कज्जल सामल ।। मंडण माहि मंडल सयल मंडप बसह उसार ॥ १३॥ बहल बुद्धधातु रस भेडणी जत्थ उल दलह सोवन्नमह मेडणी जोइउ जोइउ भविय यण, पेमि गिरिहि दुयारि। जत्थ दिप्पंति दिवोसही सुंदरा गहिरवर गरुय गंभीर दामोदर हरि पचमउ सुवन्नरेह नई पारि ॥ १४ ॥ गिरि कंवरा॥ प्रगुण अंजण विलीय प्रवाउय अंकुल्लु । जाइ कु, विहसन्तो जं कुसुमिहि संकुल । उंबरु अंबरु प्रामलीय प्रगरु प्रसोय अहल्ल । १५॥ दोसई बसदिसि दिवसो किरि तारा मंडल ।। करवर करपट करुणतर करवंदी करवीर। मिलिय नवलवलि दल कुसुम झलहालिया । कुडा कडाह कयंब कड करव कदल कंपोर ॥ १६ ॥ ललिय सुरमहिवलय चलण कल तालिया। वयल वंजलु बडल बड़ो वेडस वरण विडंग। गलिय थल कमल मयरंद जल कोला ।
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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