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________________ छोहल की एक दुर्लभ प्रबन्ध इति १२५ प्रगाढ़ प्रेम देखकर यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। वहाँ को बुलवाया। राजा ने वेश्या-प्रेम की भसारता बतलाते दोनों ने प्रेमालाप किया तथा दोहा, गाहा, समस्या प्रादि हए माधव से कहा कि मेरे नगर में कामकंदला के समान कहते हुए रति-सुख प्राप्त किया। भनेक सुन्दरियां हैं, तुम अपनी रुचि के अनुसार उनका प्रभात होने पर माधव विदेश-गमन के लिए प्रस्तुत वरण कर लो। यह सुनकर माधव ने कहा कि मेरे हृदय हो गया। कामकंदला से उसकी विदाई न देखी गई। वह में कामकंदला का ही निवास है, उसे छोड़कर मैं किसी अत्यन्त दुःखी होकर मूर्छित हो गई। मूर्छा दूर होने पर को वरण नहीं कर सकतामाधव के विरह में क्रंदन करने लगी। यहाँ कवि ने उसकी बोल माषव संभाल राई, प्रवर तीरी मोहिन सुहाह। विरहावस्था का बड़ा ही भावपूर्ण वर्णन किया है। विरही जिहि रेणी हीर पुण्या प्रसंस, क्यों छालर रति मान हंस । माधव भी कामकंदला की स्मृति को संजोए भटकता हुआ जाण सरद संपूर्ण चंद, कमल उघारि पोयो मकरं। उज्जैन पहंचा । क्या करे? अपना दुःख किससे कहे ! देखने, रस भायो केतको समीर, सो मनकर किम रमै करीर ।। सुनने वाला भी कोई नहीं, प्रतः जब विरह की पीड़ा धनी हो गई तो शिवमन्दिर की दीवार पर ही निम्नलिखित यह सुनकर राजा प्रसन्न होकर बोला-मैं तुम्हें काम पंक्तियाँ अंकित कर दी कंदला से अवश्य मिलाऊँगा। राजा प्रतिज्ञा करके उज्जन कहा कर कहै दुष तास, सुहन केण देख्यो चौह पास । से चलकर कामावती माया मोर गुप्त रूप से कामकंदला से सोय वीयोग दुख देख्या भारी, सोई व राम नही संसारी। मिलने गया। विरहिणी कामकन्दला सो रही थी। राजा विरला तप करि कष्ट देह, विरला प्रारति भंजन हेह। ने उसके हृदय पर अपने पैरों का स्पर्श किया जिससे विरला कर सिघ सौ नेह, परदुख विरला भंजन ऐह॥ कामकन्दला की निद्रा भग्न हो गई और वह माधव-माषव कहकर बिलखने लगी। राजा ने उससे कहा कि ए वेश्या! प्रातः काल होने पर राजा विक्रम शिवमन्दिर में तू नहीं जानती कि मैं कौन हूँ ? कामकन्दला बोली-मेरे पाराधना करने के लिए पाया तो उसने दीवार पर उक्त हृदय में केवल माधव का ही निवास है, अन्य कोई इस पक्तियों को पढ़ा और पाश्चर्यचकित होकर विचार करने हृदय में विश्राम नही कर सकता। मेरे हृदय को घर से लगा कि मेरी इस नगरी में कौन ऐसा दु.खी व विरही स्पर्श करने का अर्थ है ब्राह्मण का अनादर करना। प्रतः व्यक्ति है, जिसका पता मुझे नही। उसने नगर में यह रे राजन को मारो । राजा ने माघोषणा करवा दी-'इस नगरी में एक विरही व्यक्ति है। माधव ? क्या वह ब्राह्मण तो नहीं जो कि एक स्त्री के उसका पता यदि कोई बतायेगा तो मनवांछित फल वियोग में उज्जैन में मर गया। इतनी बात सुनते ही पायेगा'। यह घोषणा सुनकर भनेक गुप्तचर तथा गणिकाए कामकन्दला ने माह भरी और वह मर गई। राजा दुःखी विरही को ढढ़ने के लिए प्रयत्नशील हो गई। विरही की होकर वहां से बापस भाया और यह दु:खद समाचार खोज मे सध्या हो गई, लेकिन कुछ परिणाम न निकला। माधव को विया जिसे सुनते ही माधव की मृत्यु हो गई। अत में रात्रिबेला मे एक गणिका ने एक ब्राह्मण को सोते यह देखकर राजा पोर अधिक संतप्त हुमा। उसे बगा हुए देखा जो निद्रा में भी दुःखी निश्वास छोड़ रहा था। उसने ही इन दोनों की हत्या की है। प्रायश्चित्त-स्वरूप गणिका ने उसके हृदय पर अपना चरण रखा। यह व्यक्ति वह खड़ग लेकर अपना वलिदान करने के लिए प्रस्तुत हो माधव ही था जो गणिका को कामकंद ला ही समझकर गया। जब वह खड़ग से अपना मस्तक काटने वाला प उसे कामकंदला कहकर पुकारने लगा। गणिका समझ तभी महाबली बेताल ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। गई कि यही विरही व्यक्ति है, जिसकी राजा को तलाश उसने कहा-हे राजा! वर माग, मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं। है। वह तुरंत राजा के पास गई और सारी बातें बताई। राजा ने कहा, 'जै सन्तुष्ट हो तु भाई। तोरी बंभण देही राजा ने उसे बहन-मा द्रव्य देकर विदा किया पोर माधव जीबाई। उसी समय वह वीर पाताल गया और वहा से
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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