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________________ हस्तिमल्ल के विक्रान्तकौरव में प्रादि तीर्थंकर ऋषभदेव श्री बापूमाल प्रांजना, उदयपुर १३ वी शती मे जन कवियों ने संस्कृत नाट्य-साहित्य प्रस्तुत की गई है । जयकुमार एव सुलोचना का विस्तृत का पर्याप्त सवर्घन किया है। उनमे महाकवि हस्तिमल्ल जीवन चरित जिनसेन के महापुराण में उपलब्ध है। ये का नाम अग्रणी है। उनके लिखे चार रूपक विक्रान्त जयकुमार दिग्विजय के समय ऋषभदेव के पुत्र भरत चक. कौरव', मैथिलिकल्याण, प्रजनापवनञ्जय और सुभद्राना- वर्ती के सेनापति रहे है। इन्होने जीवन की प्रतिम टिका है। हस्तिमल्ल को पाण्ड्यमहीश्वर का समाश्रय अवस्था मे विरक्त होकर मुनि-दीक्षा धारण को थी, भोर प्राप्त था। ये पाण्ड्यमहीश्वर अपने भुजबल से कर्नाटक ये ऋषभदेव के ८४ गणधरो में हुए। प्रदेश पर शासन करते थे ।' डा० ए० एन० उपाध्ये ने यद्यपि हस्तिमल्ल ने 'विकान्तकौरव' नाटक मे जयअजनापवन जय की दो प्रतियो में 'श्रीमत्पाण्यमहीश्वरे' कुमार एव सुलोचना के स्वयंवर का कथानक निबद्ध किया इनोक मैं 'मततगमे' समे'-पाठ में से 'संततगमें' है, तथापि प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के प्रति पाठ को उचित बतलाया है। सभवत हस्तिमल्ल 'सततगम, प्रगाघ भक्तिभावना के दर्शन हमे इस नाटक में प्राप्त में ही कुटुम्नसहित निवास कर रहे थे, और यही पाण्ड- होते है। घमहीश्वर को राजधानी भी थी । कर्नाटकविरचित के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के पूर्व भरतक्षेत्र में कर्ता पार नरसिंहाचार्य ने हस्तिमल्ल का ममय १३४७ भोगभूमि की रचना थी । कल्पवृक्षो से ही लोगों का सारावि० सं० निश्चित किया है ।' डा. रामजी उपाध्याय का कार्य चलता था । उनके समय भोगभूमि नष्ट होकर कमभी यही मत है कि कवि ने अपनी कुछ रचनाएं ई०१३ भूमि का प्रारम्भ हुअा था। भगवान ऋषभदेव ने प्रसि, वीश के अन्तिम भाग में और कुछ १४वी श०के मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और विद्या इन ६ कर्मों का प्रारम्भ मे लिखी होंगी। उपदेश देकर सबको प्राजीविका की शिक्षा दी। उन्होने हस्तिमल्ल के उपलब्ध चार रूपको' मे से तीन का नगर प्रामादि का विभाग कराया, वर्णव्यवस्था को मौर कथानक जैन पुराणों पर प्राधारित है। विक्रान्तकौरव की राज्यवशो की स्थापना की। सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव कथावस्तु का प्राधार जिनसेन का महापुराण है। विका- ने भरतक्षेत्र के चार राजामों का अभिषेक किया था, न्तकौरव मे जयकुमार व सुलोचना के स्वयवर की कथा वागणसी के राजा प्रकम्पन और हस्तिनापुर के गजा १. विक्रान्तकौरव का अपर नाम सुलोचना है। ३. श्रीमत्पाण्डपमहीश्वरे निजभुत्रदण्डावलम्बी कृतम -- २ सभवत कवि ने उदयनराज, भरतराज, अर्जुनराज माणि कचन्द्र जं. ग्रं. मा० से प्रकाशित प्रजनापवन और मेघेश्वर मादि चार नाटक भी लिखे थे। मि० जय की भूमिका, पृ० ६६. प्राफेरव के केटेलागस् केटलानोरम्' (सन् १८६१ ४. प्रथपरीक्षा, तृतीय भाग, पृ०८ लिपजिग) में इन सब नाटकों का उल्लेख प्रापर्ट २ मध्यकालीन संस्कृत नाटक, पृ० २२८. साहब की लिस्ट प्राफ मंस्कृत मेनु० इन सदर्न इण्डिया' ६ ये चारों रूपक माणि कचन्द्र जैन प्रथमाला, बंबई से (जिल्द १.२, सन् १८८०.८५) के प्राधार से किया मूलरूप में प्रकाशित हुए है। गया है। सभवतः दक्षिण के भण्डारो में विद्यमान हो, ७. पन्नालाल जैन सं० 'विक्रान्तकौरव' की भूमिका, भरतराज सुभद्रा का ही प्रपर नाम जान पड़ा है। पृ० ११ व १२.
SR No.538029
Book TitleAnekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1976
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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