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________________ १६, वर्ष २८, कि०१ भनेकान्त पुर प्रवेश कीनं सही देखें सबही लोग ।६ बनी रिनिक झालर की जहां तहाँ ताकी झलक छंद-प्रथम जलेव दिखेह बाजे नौवति परवी सुतरी जानि। महा दुतिवान। भपति सान दुइ विसि तिन के दिग्गज-गज परचंड महान । ऐसे कमल प्रमल प्रति अनुपम ता ऊपरि है नेम सुजान । चंचल चपल तुरंगनि ऊपर लाल धुजा लहक प्रमोलन । दोहरा छंद-लाल स्याम अरु स्वेत बह हरित प्रोत जड़ित जड़ाव जीव और पाखर अंसे हयगय कोतल जान । रंग पाहि। दोहरा छंद-कति वष दोहू विसा चलति खई संसार। वरन वरन के रतन सुभ लगे सरथ के माहिं ।८।। लग सु सबको मोहनी देखत सब नर-नार ७० छन-कहुं मरकति मनि को है प्राभा कहुं प्रभावि ईद-गुल जुमुक गेंदा गुलाब तुरंग प्ररु गुल खैरा जाति । दम है लाल । गुल मखमल गुल चीनी कही ऐ गल सबो गइह प्रानि कहुं चमकि मनि पा राग को कहुं दमक बड़ो जी विसाल बखानि इन्द्रनील मानिकहि धिराज निकसिर हैं किरन को जाल । गुलमेंहदी गुलासकरि लाही और गुल नारंग सदवदी समानि सिंघनि सोभा कहं लगि बरनौ मानो मेरु सिपिर सदा गुलाब बन गुलाल इत्यादि फुलवारी जु वखानि । गिरि भाल । बोहरा छंद-रतन जटित हटिक तनौ वाजिन सहित सुमाई दोहरा छंद-तामै नेमीसुर है ऊपर चंवर ढुरंत । असे तखत सुहावनो चलत अखारिनि माहि। ही रसमि सहित मानो सही ससि दुति प्रति सोभंत ।२। छंद-नेमीसर के मस्तक ऊपर रतन जटित सो छत्र फिरत । छंद-मृदंग सुतार सितार बजे सु साज विना धुनि गर्जत है। गावत रंग कंनून तमूरे चंग उपम सो साजत है। भुक · · मुकेस की झालर तामें लगि है दुति वनंत । मुख मयंक अवलोकि प्रभू को महिमा हीय कहै इम संत । बजत खावसु प्रभ्रत कुण्डल प्ररदुत्तर छवि छाजत है। घन्नि भाग है राजमती को तिनि पायो अब ऐसो कंत । मोही चंग मराज मुरली अवाज इन आदिक बाजे बाजत है दोहरा छंद-करि करि के सिंगार बहु पहिरै बसन अनुप । दोहरा छंद-यह प्रकार बाजे बजे सुर अरु ताल मिलाइ। समद विज के प्रादि दै मुकुट बंध सब भूप ॥२४॥ नृत्य करे तहं नृत्य की षट् विधि राग सुगाय 1७४। छंद-मदमत्त गयंद सुगर्ज कर बहुगजित सोभा सोभ थए। छंद-कइक साजि संहारि कहें मुख केइक तार मिलावति है कंडक पनि संगीत सनं सुबज गति भीव बतावति है। हिननाटहिननहींन शब्द कर सुभदेव विमान सुसोभ मए। श्री नेमनाथ के संग ज सबही सोभा सहित सुहार गए । कडक तंडव नृत्य कर सुधर बहु माव सुगावति है। __ दोहरा छंद-दरवाजे गए नेमि जी जहां लगहि मरजाद । कैइक नारि करै झनकारि सुदै झुमरी धावति है। तब पसुवनि मिलि देखिकर प्रभु सौं करी फिराद ।६। बोहरा छंद-ता पार्छ अब नेमि के प्राव रथ अववात । छंद-हम दोन सुदीनानाथ बिना सुभए बहु दीन पुकारत है मन मोहन सोहन अधिक देखत नैन सिरात ७६। हमरे सिसु लाल चिकार करे सो तुम बिन कौन छड़ावत है छंद-दोय चोय पाहरे दुह विस मैं तगेमः सिलगे उनमान । ऐदीन सूर्यन सुनं जबही तब स्वारथि सौं बतरावत है। पप राग मनि कसी प्राभा अधिक विराज चन्द्र समान। दोहरा छन्द-तब स्वारथ कर जोरि कर परज करी गत ऊपर अवधार सामग्री मा महल तस ऊपर जान । सिर नाह। हाय सात सम भू तें उन्नत ऊपरि प्रमरि प्रमलान ७७ ऐघेरे इस कारन भीलादिक सब राय ।। बोहरा छंद-स्वेत बरन अति सोहने मांझ महल सुविसाल छन्द-ऐ बीन सुवैन सुवे सुन जवही तबही ततकाल झलकति झलक सुहावनी लरकत मुतियन माल ७८॥ सुबंदि छुड़ाई। छंब-रवि सम सेत बनौ माझ महल ता ऊपर है काज प्रकाज समाज सबै जहं जानि न जीम जावबराई। कमल महान । भयभीत भये भव तें जवहीं तबही प्रभु द्वादस भावना भाई प्रीत बरन रंग सुवन मह है कई रंग मन पप समान । देव ऋषीसुर माइ गए पनि धनि सुधनि कह सीसुनवाई।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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