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________________ छुनकलाल कृत नेमि-ब्याह प्रिसिपल श्री कुन्दनलाल जैन, दिल्ली सुविसाल। नेमिनाथ और राजुल जैन साहित्य में ऐसे तपः पूत की छवि । (४) पद । (५) लावनी। (६) विवाहएवं उदात्त चरित-नायक नायिका है कि विश्व के किसी विधि । इस गुटके की लम्बाई १७ से० मी० और चौड़ाई भी साहित्य में ऐसे पात्र नही दिखाई देते हैं। यथार्थ मे १३ से. मी. है। लिपिकार ने इसमें पत्र संख्या नहीं इनका जीवन इतना श्रेष्ठ और प्रादर्शमय रहा है कि प्राज डाली है पर स्वयं गणना करने पर तीस पत्र प्राप्त होते हजारों वर्ष बाद भी लोग उनका पुण्य स्मरण करते है। हैं। हर पत्र पर पंक्तिया है तथा हर पक्ति में २५-२५ नैमि प्रभु और राजुल इतिहास-प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण की प्रक्षर है। लिपि अति सुवाच्य और सुन्दर है । लाल और ऐतिहासिकता के साथ नेमि प्रभु का भी सम्बन्ध जुड़ा काली स्याही का प्रयोग किया गया है। जहाँ लिपि सुन्दर है हुआ है। वहाँ लेखन की अशुद्धियाँ बहुलता से पाई जाती है। इसमें नेमि प्रभु के गौरवपूर्ण चरित्र एवं जीवन दर्शन ने ही लिपि-काल नहीं है। लेखकों, कवियों एव कलाकारों को उनके विषय में प्रात्मा श्री छुनकलाल जी ने प्रस्तुत कृति की रचना मगसिर भिव्यक्ति के लिए बाध्य किया, मैं समझता हूं कि नेमि नदी १४१ में की थी जैसा कि निम्न छन्द से प्रभु और राजल के विषय में जितना साहित्य रचा गया स्पष्ट ज्ञात होता है :है, उतना राम और कृष्ण को छोड़ कर किसी के विषय में कृष्ण पच्छि सप्तमी दिन जानो सोमवार मारग सर न रचा गया होगा। लोक-कवियो ने तो लोक नायक के रूप में नेमि प्रभु के जीवन के विभिन्न पक्षों पर बड़े विशद चिनिचारि वसुचंद अंक सव संवत् के जाने हलसार ॥ और विशाल साहित्य की सृष्टि कर भारतीय वाङ्मय को गौरवान्वित किया है। नेमि प्रभु सम्बन्धी विभिन्न कवि महोदय ने रचना के अंतिम दस छन्दों में रचनाएं जहा भारत की विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध प्रात्म-परिचय भी दिया है जो बहुत ही संक्षिप्त है । कृपालु होती है, वहां हिन्दी मे भी रासो, धूलि, घोडी, व्याहलों, पाठक उसे पढ़ें और जानें। बन्ना आदि विभिन्न विधाओं में नेमि प्रभु संबधी साहित्य प्रस्तुत रचना को पढ़कर ऐसा लगता है कि कवि को प्राप्त होता है। भाषा पर तो अधिकार था ही, साहित्यिक विधियों एवं नाम प्रभु संबंधी बहुत सा साहित्य अप्राप्य एवं अप्र- छन्द अलंकार आदि का भी ज्ञान बड़े विशाल स्तर पर काशित है, यहां हम एक ऐसी ही छोटी सी रचना जो था। मनुप्रास अलंकार की छटा का द्योतक निम्न छन्द बड़ी सरस और मधुर है, कृपालु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत निश्चय ही पठनीय एवं अत्यधिक रोचक है। कर रहे है। यह सर्वथा अप्राप्य और अप्रकाशित है। चंचलि बकसा सी चन्द्र कला सी' इसके लिए हम करेरा के सेठ मिश्रीलाल जी के प्रति कृतज्ञ चलि चकला-सी चलति चले। हैं जिनकी कृपा से यह कृति हमें प्राप्त हो सकी। चंचलता भासी बलि चपला सी, यह कृति एक तीस पत्रीय छोटे से गुटके में संग्रहीत चलि चपला सो चलति हर्म है। इसमें निम्न रचनाए संकलित है। (१) क्रिया कोष चंचल गति जो है, चलति जु मोहै, का अन्तिम भाग। (२) नेमिनाथ व्याहलो। (३) ऐरावत चंचल सोहै, धमकि चले।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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