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________________ वैशाली-गणतन्त्र में निहित नहीं थी। फिर भी इन राज्यो को हम गण- उन्होंने अपने संदेश भेजने के लिए दूत नियुक्त किए (वेशाराज्य कह सकते हैं। पार्टी म, गेम, मध्य-युगीन लिकाना लिच्छिविनां वचनेन) वेनिम, संयुक्त नीदरलण्ड और पोनर को गणराज्य' कहा न्याय व्यवस्था-न्याय-व्यवस्था प्रष्ट कुल सभा के जाता है; यद्यपि उन में किगी मे पूर्ण लोकतन्त्र नही हाथ मे थी। श्री जायसवाल ने 'हिन्दू राजशास्त्र' (पृष्ठथा । इग मद्धान्तिक प्रचमि नया तिहागिक माक्ष्य ४३.४७) मे इनको न्याय प्रक्रिया का निम्नलिखित वर्णन के आधार पर निश्चय ही प्राचीन भारतीय गणराज्यों किया है -"विभिन्न प्रकरणो (पवे-पटुकान) पर गणको उ ही अर्थों में गणराज्य कहा जा सकता है जिस अर्थ । राजा के निर्णयो का विवरण सावधानी पूर्वक रखा जाता मे यूनान तथा रोम के प्राचीन राज्यों को गणराज्य कहा था जिनम अपराधी नागरिका क अपराधा था जिनमे अपराधी नागरिको के अपराधो तथा उनके जाता है। इन राज्यों में सार्वभौम मना विमी एक व्यक्ति दिए गए दण्डो का विवरण अकित होता था । विनिश्चय या अल्पसंख्यक वर्ग को न मिल कर बह-सम्यक वर्ग को महामात्र (न्यायालयो) द्वारा प्रारम्भिक जांच की जाती प्राप्त थी।"५१. थी । (ये साधारण अपराधो तथा दीवानी प्रकरणों के महाभारत में भी 'प्रत्येक घर मे राजा' होने का वर्णन लिए नियमित न्यायालय थे) । अपोल-न्यायालयों के है।" उपर्युक्त विद्वान के मतानुसार, "इम वर्णन मे छोटे अध्यक्ष थे -- वोहारिक (व्यवहारिक) । उच्च न्यायालय गणराज्यों की तथा उन क्षत्रिय कुलो की चर्चा है जिन्होने के न्यायाधीश गधार' कहलाते है। अन्तिम अपील के उपनिवेश स्थापित करके राजपद प्राप्त किया था। मयुक्त लिए प्रप्ट-कलक' होते थे। इनमें से किसी भी न्यायालय गज्य अमरीका में मूल उपनिवेश स्थापको को नवागन्तुको द्वारा नागरिक को निरपराध घोषित कर के मुक्त किया की अपेक्षा कुछ विशेषाधिकार प्राप्त किए। जा सकता था। यदि सभी न्यायालय किसी को अपराधी 'मलाबार गजटियर' के आधार पर श्री अम्बिका- राते तो मन्त्रिमण्डल का निर्णय अन्तिम होता था। प्रसाद वाजपेयी ने 'नय्यरो के एक राघ' की ओर ध्यान विधायिका प्राकर्षित किया है जिसमें ६०००, प्रतिनिधि थे । वे केरल लिच्छवियो के ससदीय विचार-विमर्श का कोई प्रत्यक्ष की मसद के समान थे।". बोद्ध-साहित्य से ज्ञात होता प्रमाण प्राप्त नही होता, परन्तु विद्वानो ने चुल्लवग एवं है कि राजा विम्बिमार श्रेणिक के अम्मी हनगर गामिक विनय पिटक के विवरणो से इस विषय में अनमान लगाए (ग्रामिक) थे। इमी गाश्य पर अनुमान किया जा सका है। जब कोगन ने शाक्य- राजधानी पर अाक्रमण किया है कि ७७०७, राजा विभिन्न क्षेत्रों (या निवाचन-क्षेत्रा) और उनमे ग्रात्म समर्पण के लिए कहा तो शाक्यो द्वारा के उसी रूप मे स्वतन्त्र सचालक थे जिस प्रकार देशी इस विषय पर मन-दान किया गया । मन-पत्र को 'छन्दम्' रिय सतो के जागीरदार राजा के प्राधीन होकर भी अपनी एव कोरम को 'गण-पूरक' तथा प्रासनी के व्यवस्थापक निजी पुलिग यी तथा अन्य व्यवस्थाएँ करते थे। वो 'ग्रामन-प्रजापक' कहा जाता था। गण-पूरक के प्रभाव वैदेशिक सम्बन्ध-लिच्छवियों के वैदेशिक सम्बन्धो में अधिवेशन अनियमित ममभा जाता था। विचारार्थ का नियन्त्रण नो गदस्यो की परिषद द्वाग होना था । प्रस्ताव की प्रस्तुति को 'जप्ति' क । जाता था। मंघ से इनका वर्णन बौद्ध एव जैन साहित्य मे 'नव लिच्छवि' के तीन-चार बार पूछा जाना था i क्या संघ प्रस्ताव से रूप मे किया गया है । प्रजात गत्र के ग्राऋगण के मुका- महमत है । मघके मौन का अर्थ सहारिया स्वीकृति गमझा बले के लिए एक पडोसी राज्यां नवमल नथा अप्टाया जाना था । बहमत द्वारा रवीकृत निर्णय को 'ये भय्यसिकाशी-काल के माथ मिल कर महासघ बनाना पडा । कम' (बहमत की इच्छानगार) कहा जाता था। मत२१. डा एम अलकर ---प्राचीन भारत में राज्य एव २४. "तेन रो पन ममयेन राम मागधो गनियो बिम्ब शासन (१९५८) पृठ ११२-११३ मागे प्रतीनिया नाम सहमप इसराधिगच्च गज २२. गृहे-गहे तु राजान, - महाभारत २।१५।२. करोनि ।" २३. वाजपेयी, अम्बिका प्रमाद, हिन्दू राज्यशास्त्र-पृष्ठ- श्री भरतसिंह उपाध्याय द्वारा उद्धृत- वही--पृष्ठ१०४. १६६.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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