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________________ बंशाली-गणतन्त्र (धम्म) का वर्णन किया अनुष्ठानों की अवमानना न करेंगे; १. अभिण्ड मनिपाता सन्निपाता बहुला भविस्संति। ७. बज्जीन अरहतेसु धम्मिका रक्खावरण- गुत्ति सुसं हे मानन्द ! जब तक बज्जि पूर्ण रूप से निरन्तर विहिता भवि सति । परिषदो क प्रायोजन करते रहेगे! ___ जब तक वज्जियों द्वारा प्ररहन्तो को रक्षा, सुरक्षा २. समग्गा सन्निपातिस्सति समग्गा वटु हिस्संति एव समर्थन प्रदान किया जायेगा; तब तक वज्जियो का समगा सघकरणीयानि करिस्सति । पतन नहीं होगा, अपितु उत्थान होता रहेगा।" जब तक वज्जि मंगठित होकर मिलते रहेग, सगठित प्रानन्द को इस प्रकार बताने के बाद बुद्ध ने वस्सहोकर उन्नति करते रहेंगे तथा समठित होकर कर्तव्य कर्म कार से कहा, "मैने ये कल्याणकारी सात धर्म वज्जियों को करते रहेगे: वैशाली मे बताये थे।" इस पर वम्सकार ने बुद्ध से ३. अप्पअंत न पज्जापेस्संति, पञ्चतं न समुच्छिन्दि- कहा, 'हे गौतम ! इस प्रकार मगधराज वज्यिो को युद्ध स्संति यथा, पञतंषु सिक्खापदेसु समादाय व तस्सति । में तब तक नहीं जीत सकते, जब तक कि वह कुटनीति जब तक वे अप्रज्ञप्त (अस्थापित) विधानो को स्था- द्वारा उनके संगठन को न तोड़ दें।" बुद्ध ने उत्तर दिया, पित न करेंगे स्थापित विधानों का उल्लंघन न करेंगे तथा "तुम्हारा विचार ठीक है।" इसके बाद वह मंत्री चला पूर्व काल में स्थापित प्राचीन वज्जि-विधानों का अनुसरण गया । करते रहेगे; वस्सकार के जाने पर बुद्ध ने प्रानन्द से कहा४. ये त मपितरो संघपरिणायका ते सक्करिस्संति "राजगृह के निकट रहने वाले सब भिक्षनो को इकट्ठा गरु करिस्संति मानेस्संति पूजेस्संति तेसञ्च सोतन्नं मनि. करो।" तब उन्होंने भिक्षु सघ के लिए निम्नलिखित सात म्मति । धर्मों का विधान कियाजब तक वे जिज-पूर्वजो तथा नायको का सत्कार, १.हे भिक्षुओं ! जब तक भिक्षु-गण पूर्ण रूप से मम्मान, पूजा नथा ममर्थन करते रहेगे तथा उनके वचनो निरन्तर परिषदो मे मिलते रहेंगे: को ध्यान से सुन कर मानते रहेगे; २. जब तक वे संगठित होकर मिलन रहेंगे, उन्नति ५. य ते धज्जीनं वज्जिमहल्लका ते सक्करिस्संति, करते रहेगे तथा संघ के कर्तव्यो का पालन करते रसँग: गुरु करिस्सन्ति मानस्संति, पूजेस्सति, या ता कुलिस्थियो ३. जब तक वे किसी ऐसे विधान को स्थापित नही कुलकुपारियो तान पाकस्स पसह्य वास्सेन्ति । करंगे जिसकी स्थापना पहले न हुई हो, स्थापित विधानो जब तक व वज्जि-कुल की महिलाओं का सम्मान का उल्लंघन नही करेंगे तथा मत्र के विधानो का अनगकरते रहेगे और कोई भी कुलस्त्री या कुल-कुमारी उनके रण करेंगे। सारा बल पूर्वक अपहत या निरुद्ध नहीं की जायेंगी; ४. जब तक वे संघ के अनुभवी गुरुनों, पिता नया ६. वज्जि चेतियानि इन्मतरानि चेव बाहिरानि च नायको का सम्मान तथा समर्थन करते रहेगे तथा उनके तानि सक्करिस्संति, गरु करिस्संति, मानेस्सति, पूजेस्संति, वचनों को ध्यान से सुन कर मानते रहेगे: तसञ्च दिन्नपुब्बं कतपुब्वं धाम्मिकं बलि नो परिहास्सति ५. जब तक वे उस लोभ के वशीभत न होगा जो परिवारसति । उममे उत्पन्न होकर दुःख का कारण बनता है। जब तक देनगर या नगर से बाहर स्थित स्याँ६. जब तक वे सयमित जीवन में प्रानन्द का अनाव (पूजा-स्थानी) का अादर एवं सम्मान करते रहेगे और करेंग: पहले दी गई धार्मिक बलि तथा पहले किए गए धार्मिक ७. जब तक वे अपने मन का इस प्रकार मयमित १५. पालि-पाठ राधाकुमुद मुखर्जी के ग्रन्थ 'हिन्दू सभ्यता' (अनुवादक-डा. वासुदेव शरण अग्रवाल) द्वितीय मस्करण १९५८- पृष्ठ १६६-२०० से उबुन । नियम संख्या मैन दी है। १६. वही-पृष्ठ ६७.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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