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________________ (२८, वर्ष २८, कि.१ अनेकान्त भारत का ही स्वर्णयुग नहीं था प्रत्युत जिस काल में महा- रहा पर उसका निवास झोंपड़ी था। समर्थ रामदास, वीर और बद्ध भारत का नेतृत्व कर रहे थे, विश्व का शिवाजी और हिन्दू राष्ट्र के पथ प्रदर्शक थे पर स्वयं एक नेतत्व भी कही ईसा तो कहीं मोहम्मद साहब सम्भाले लंगोटी मे सन्तुष्ट थे। ऋपि और मनि कूटियो में रहते हुए थे। यह सब हो रहा था सापेक्षता के प्राधार पर। थे, सम्राटों के राज्य मंचालन के केन्द्र-बिन्दु थे। वर्तमान महाबीर माज भी विद्यमान है, इसलिए कि जैन भारत के स्वातन्त्र्य यज्ञ के अधिष्ठाता महात्मा गांधी भी विद्यमान है। और अब जैन है तो वे बिना नेता के नही संत ही थे। क्या वे वैभव का जीवन बिताने में असमर्थ हो सकते । संसार कहीं भी बिना नेतत्व के कभी खडा थे? नही, किन्तु यह समर्थता धारण करना उनकी प्रात्मनहीं हमा। नेतृत्व ने जब चाहा भयानक नर संहार की स्वीकृति के बाहर था। नेतृत्व सदैव उदार, निस्पृह, घोषणा कर दी, विसंगतियों को पनपने की छट दे दी। निस्वार्थ एवं अपरिग्रही होता है; तभी नेतृत्व सफल होता नेतत्व ने चाहा तो प्रानन्द की वर्षा होने लसी, स्वर्ण और है। महावीर ऐसे ही नेता थे। सब को सब कुछ दिया रत्न बरसने लगे। निष्काम होकर । उन्होने जन-जन को समृद्ध किया जड़ता हमारा देश स्वतन्त्र हो चुका है। महावीर का जन- रहित विवेक से सम-प्रभ्युदय के लिए, सम-विकास के राहत विवक स सम-प्रभ्युदय के लिए, तन्त्र, प्रजातन्त्र के रूप में पुनः स्थापित हुमा है, तो दीर्घ- लि कालीन तमित्रापूर्ण रात्रि का यह अन्तिम प्रहर है। प्रजातन्त्र का अर्थ भी यही है। प्रजा का तन्त्र केवल प्रभ्युदय निकट है। प्राची से प्रकाश की भोर कदम रखता' समानता है। एक ओर पूजी और दूसरी ओर दरिद्रता, अशुमालि पुनः प्रकट हो रहा है। हमे जीवन की ओर यह प्रजातन्त्र की घोषणा के विपरीत है। इसलिए जनअग्रसर होना है। हमें सही पथ प्रदर्शन चाहिए । महावीर तन्त्र में जन्मे महावीर ससत्व की घोषणा करते है से अनुप्राणित ही सही नेतृत्व दे सकता है गन्तव्य की प्रजा के यथार्थ तन्त्र की व्यवस्था के लिए । प्रजातन्त्र का प्राप्ति के लिए। तो हमें नेता की ओर दष्टिपात करना अर्थ है जातीयता का भाव । महावीर ने जातीयता को होगा। महावीर पर एक दृष्टि डालें तो वे मग्न दिखाई मजातीयता में बदल दिया। प्रजातन्त्र का अर्थ है एकता । देते हैं। यह नग्नता स्वय की मोर जितनी अर्थपूर्ण है. महावीर ने अनेकान्त से एकता की स्थापना की। भिन्नउतनी ही समष्टि की भोर भी। महावीर प्रस्तुत है सब भिन्न दृप्टियाँ भेद का कारण बनती है, महावीर ने इस त्याग कर परमार्थ की मोर । पर होगा तो घर के प्राग्रह। विज्ञान को लान लेने की बात कही जिसे जान लेने के उपरान्त भेद की दीवारे गिर जाती है, एकता का घरातल होंगे, वस्त्र होंगे तो शरीर के भाग्रह होंगे। उनकी, समग्र निर्मित हो जाता है । प्रजातन्त्र का अर्थ है पूर्ण विकास । को कल्याण भावना भटक न जाये, महावीर पूर्ण प्रपरिग्रही हो जाते हैं। जेसे ही जनका व्यक्तिगत घर छूटता है इसके लिए महावीर ने सम्यकत्व प्रतिपादित किया, जह' तो वे बराबर के निकट हो जाते हैं। एक और दृष्टि केवल समानता होगी, कलह नहीं होगा, घृणा नहीं होगी और तब होगी केवल समृद्धि, जो आज खीचातानी मे टूट महावीर को सोचने की। महावीर को दीन, दुखी और रही है। प्रजातन्त्र का अर्थ है चरित्र की उज्ज्वलता। दरिद्र के भी निकट जाना था तो वे वैभव को त्याग कर महावीर ने सम्यक् चारित्र की घोषणा की, ब्रह्मचर्य को ही सामीप्य प्राप्त कर सकते थे। वे उनके कष्टों को प्रतिष्ठित किया। यह प्रावरण जीवन के प्रोज, पुरुषार्थ जीवन में अनुभव करके जानना चाहते थे और उन्होंने का प्राचरण होगा। यहां जमाखोरी नही होगी, भ्रष्टाचार जाना, और उनसे तादात्म्य स्थापित किया। नही होगा, तस्करी नही होगी, व्यभिचार नहीं होगा, जिन्होंने भी सही नेतृत्व किया है, इसी स्थिति में समाज 'उण्ड नहीं होगा, विद्यार्थी समाचरण के होगे, ठहरे है। नेता मादेश नहीं देता, मादर्श उपस्थित करता रंजन विज्ञ एव प्रादर्श होगे, व्यापारी अर्थाचारी नही है । प्रादेशों की अवज्ञा होती है, प्रादर्शों का प्रमुकरण' होगा, अधिकारी स्वेच्छाचारी नही होगे, कर्मचारी और सम्मान | चाणक्य पूरे गुप्त साम्राज्य का संचालक ममाचारी नहीं होगे। यह है नेतृत्व की भादर्शवादिता।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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