SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण-संस्कृति : इतिहास और पुरातत्त्व के संदर्भ में अणुव्रत-परामर्शक मुनि श्री नगराज जो मार्यों का प्रागमन : जीवन-व्यवहार गा प्रमुख अंग थी। मेक्समूलर तथा अन्य पाश्चात्य विद्वानों की गवेष- भौतिक विकास की दिशा मे भी वे लोग प्रगति के णाओं ने यह तो सर्व-सम्मत रूप से प्रमाणित कर दिया है शिखर पर थे। उनके आवास, उनके ग्राम और उनके कि किसी युग मे उत्तरी क्षेत्रों से वहत बड़ी संख्या में नगर बहुत व्यवस्थित थे और हाथी व घोड़ों की सवारी आर्य लोग भारतवर्ष में पाए। उन लोगों की एक व्यव. भी वे करते थे। उनके पास गमनागमन के यान भी थे, स्थित सभ्यता थी। यहां के आदिवासी लोगों को उन्होने यहां तक कि उनमें भक्ति और पुनर्जन्म के विचारों का सामाजिक, राजनैतिक आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में भी विकास था।' परास्त किया और उत्तर से दक्षिण तक समग्र देश में त्रिमल मति : अपनी संस्कृति का प्रभाव बढाया। यह वही सभ्यता मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खदाई से मिलने वाले है, जिसे लोग वैदिक सभ्यता के नाम से अभिहित पुरातत्त्वावशेष उपरोक्त धाराओं के आधार बनते हैं। करते है। इन अवशेषों में एक योगासन स्थित त्रिमुख योगी की प्राग-प्रार्य सभ्यता: प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है । उस मूर्ति के सम्मुख हाथी, इस गवेषणा के साथ अब तक यह तथ्य भी जडा व्याघ्र, महिष और मृग प्रादि पशु स्थित है। इस मूर्ति हमा था कि पार्यों के आगमन से पूर्व इस भारतवर्ष में के विषय में विद्वानों द्वारा नाना कल्पनाएं की गई है। कोई समुन्नत, सभ्यता या संस्कृति नही थी। जैन और बहुतों का कथन है—यह पशुपति शिव की मूर्ति है।' बौद्ध परम्पराएं भी इसी संस्कृति की उत्क्रान्तिया-मात्र यह भी सोचा गया है कि योगसूत्र - 'अहिंसा प्रतिष्ठायां हैं । इन दिनों में जिस प्रकार इतिहास करवट ले रहा है, तत् सन्निधो वैरत्याग, के सूचक किसी पहचे हए योगी की उससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि पार्यों के आगमन मूति है। से पूर्व यहां एक समुन्नत संस्कृति और सभ्यता विद्यमान शिव या शान्ति जिन ? थी। वह संस्कृति अहिंसा, सत्य और त्याग पर आधारित त्रिमुख मूर्ति के अवलोकन से अर्हत-अतिशयों से थी। यहां तक कि उस संस्कृति मे पले-पुसे लोग अपने अभिज्ञ व्यक्ति के मन में यह कल्पना भी सहज रूप से सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक हितों के संरक्षण के होती है कि समवसरण-स्थित चतुर्मख तीर्थकर का ही वह लिए भी युद्ध करना पसन्द नहीं करते थे । अहिंसा उनके कोई शिल्प-चित्रण है। उसकी बनावट के साथ एक मुख 1. Ancient India (An Ancient History of By majumdar, Ray Chaudhary and K. C. India-PartI) Dutta P. 21) By Majumdar, Roy Chaudhary and K. C. Datta, P. 23. S. Mohan-jo-dro and the Indur civilization 2. The Religion of Ahinsa, By Prof. A. (1931) vol. 1, P.P. 32-3. Chakaravarti, M. A. P. 17. 6. mohan-jo dro and the Indus civilization 3. Mohan-Jo-dro and the Indus civilization (1931) Vol. 1, P.P. 52-3. (1931) Vol 1 P.P.93-5. 4. Ancient Indla (An Ancient History of 7. ADIDSa in indian culture, by Dr. Nathmal India Part 1) Tantia m.A., D. Litt.
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy