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२२८, वर्ष २८,कि.१
गिरि और गोपाचल (ग्वालियर) की यात्रा की थी और पुत्री जिनमती विस्सही कारापिता प्रणमति श्रेयाम् । मंडपगढ़ के सुलतान ग्यासदीन की सभा में सम्मान प्राप्त
-दानवीर माणिकचन्द पृ०४३ किया था ।' यह मालवे का सुलतान था, इसका राज्य- भट्टारक मल्लि भूषण की अन्य-सूचियों पर से तीन काल सन् १४६६ से १५००ई० तक रहा है। इसकी रचनामों का पता चला है। पंच कल्याण पूजा (ईडर) राजधानी मण्डप दुर्ग थी।
धन्यकुमार चरित पत्र संख्या २०,दि. जैन पावर्वनाथ
मन्दिर चौगान बूंदी (राजस्थान) जैन ग्रन्थ सूची भान मल्लिभषण ने प्राचार्य अमरकीर्ति को पंचास्तिकाय प्र० ३३६), दशलक्षष व्रतोद्यापन पूजा पत्र १४ (ग्रंथ. की प्रति प्रदान की थी और सं० १५४४ में एक निषषी सबी भाग ४१०४९ इनके अतिरिक्त इनकी और भी का निर्माण कराया था। जैसा कि निम्न लेख से स्पष्ट
कृतियाँ होंगी, खास कर ईडर और सूरत के भण्डारी
आदि में अन्वेषण करने पर प्राप्त हो सकती हैं। सं० १५४४ वर्षे वैसाख सुदी ३ सोमे श्री मूलसंधे- मल्लि भूषण गुरु के शिष्य ब्रह्म नेमिदत्त थे। उन्होंने सरस्वति गच्छे बलात्कार गणे भ० विद्यानन्दि देवः तत्प? इनका अपनी कृतियों में स्मरण किया है। इनका समय ल्लिभूषण, श्री स्तम्भतीर्थ हुवड ज्ञातीय श्रेष्ठी विक्रम की १६वी शताब्दी है।
00 . चांपामार्यारूपिणी तत्पुत्री श्री अजिका रत्नसिरि झुल्लिका
एफ ६२, जवाहर पार्क, जिनमती, श्री विद्यानन्द दीक्षिता माथिका कल्याणसिरि, वेस्ट लक्ष्मीनगर, तत्वल्लभी अग्रोतकाशातीय साह देवा भार्या नारंगदेव- दिल्ली-५१
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मेरक वाणी धर्मः सुखस्य हेतुर्हेतुर्न विराधकः स्वकार्यस्य ।
तस्मात्सुखभङ्गभिया माभूर्षमस्य विमुखस्त्वम् । अर्थ-धर्म सुख का कारण है । कारण कभी भी अपने कार्य का विरोषी नहीं होता; प्रतः 'धर्म के प्राचरण से सुख नष्ट हो जाएगा ऐसा समझ कर तू धर्म से विमुख मत हो।
सदृष्टिज्ञानवृत्तानि धर्म धर्मेश्वराः विदुः ।
यदीये प्रत्यनीकानि भवन्ति भवपद्धतिः ।। अर्थ-प्राचार्यों ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को धर्म कहा है। इनके विपरीत-मिण्यावर्शन, मिथ्याज्ञान और मिण्याचारित्र-संसार-परम्परा को बढ़ाने वाले होते हैं।
-प्राचार्य सुषमा 000
६. तत्पट्टोद्याचल बाल भास्कर प्रवर परवादि गज यूथ
केसरि मण्डपगिरिषाद समस्या प्रचन्द्र पूर्ण विकटवादि गोपाचल दुर्ग मेषाकर्षक भविक जन-सस्यामत बापियर्णण-सुरेन्द्र नागेन्द्र ऋगेन्द्रादि सेवित परणार
विंदाना म्वासदीन समामध्य प्राप्त सनमान-पखावत्युपस्तकानां श्री महिलभूषण भट्टारक वर्षणाम् ।
जैन सि.भा. भा. १७ पृ५१