________________
महिंसा के मायान: महावीर और गांधी
२२॥
है । उसी का अनुसरण करके वह स्वयं सुखी रह सकता लिए उन्होंने धार्मिक ही नहीं, सामाजिक, पार्थिक, राजहै, दूसरों को सुखी रख सकता है।
नैतिक तथा अन्य सभी क्षेत्रो में महिंसा के पालन का प्राग्रह इस दिशा में हम ईसा के योगदान को भी नहीं भूल किया। उन्होने कहा : सकते हैं। उन्होंने हिसा का निषेध किया और यहां तक "हम लोगों के दिल में इस झठी मान्यता ने घर कर कहा कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर तमाचा मारे तो
लिया है कि अहिंसा व्यक्तिगत रूप से ही विकसित की दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो। उन्होने यह भी
जा सकती है और वह व्यक्ति तक ही मर्यादित है । वास्तव कहा कि तुम अपने को जितना प्रेम करते हो, उतना ही
मे बात ऐसी नहीं है । अहिसा सामाजिक धर्म है और वह अपने पड़ोसी को भी करो।
सामाजिक धर्म के रूप में विकसित की जा सकती है, यह अहिंसा का व्यापक प्रचार :
मनवाने का मेरा प्रयत्न और प्रयोग है।" इतना ही नहीं, इसके पश्चात् अहिंसा के प्रचार के बहुत से उदाहरण उन्हान यहा तक कहा : मिलते हैं। कलिंग-युद्ध में एक लाख व्यक्तियो के मारे "अगर अहिंमा व्यक्तिगत गुण है तो वह मेरे लिए जाने से सम्राट अशोक का मन किस प्रकार अहिंसा की त्याज्य वस्तु है । मेरी अहिंसा की कल्पना व्यापक है। यह ओर आकृष्ट हुमा, यह सर्वविदित है। अपने शिला-लेखो करोडों की है । मैं तो उनका सेवक ह। जो चीज करोडों में अशोक ने धर्म की जो शिक्षा दी, उससे अहिंसा को सब की नही हो सकती है, वह मेरे लिए त्याज्य है और मेरे से ऊंचा स्थान मिला। तेरहवी-चौदहवी सदी में वैष्णव धर्म साथियों के लिए त्याज्य होनी चाहिए। हम तो यह सिद्ध की लहर उठी। उसने अहिसा के स्वर को देश के एक करने के लिए पैदा हुए है कि सत्य और अहिंसा व्यक्तिछोर से दूसरे छोर तक पहुंचा दिया। महाराष्ट्र में यार- गत प्राचार के ही नियम नहीं है, वे समुदाय, जाति और करी सम्प्रदाय ने भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। राष्ट्र की नीति हो सकते है। मेरा यह विश्वास है कि और भी बहुत से सम्प्रदायों ने हिंसा को रोकने के लिए अहिंसा हमेशा के लिए है, वह प्रात्मा का गुण है, इसलिए प्रयत्न किये। सन्तों की वाणी ने लाखों-करोडो नर-नारियों वह व्यापक है, क्योंकि प्रात्मा तो सभी के होती है। को प्रभावित किया।
अहिसा सबके लिए है, सब जगहों के लिए है, सब समय परिणाम यह हुआ कि जो अहिंसा किसी समय केवल के लिए है। अगर वह वास्तव में प्रात्मा का गुण है तो तपश्चरण की वस्तु मानी जाती थी, उसकी उपयोगिता हमारे लिए यह सहज हो जाना चाहिए।" जीवन तथा समाज में व्याप्त हुई। उसके लिए जहां कोई लोगों ने कहा, "सत्य और अहिंसा व्यापार में नहीं सामूहिक प्रयास नहीं होता था, वहाँ अब बहुत से लोग चल सकते । राजनीति में उनकी जगह नहीं हो सकती।" मिलजुल कर काम करने लगे। इन प्रयासों का प्रत्यक्ष परि- ऐसे व्यक्तियों को उत्तर देते हुए गांधी जी ने कहा । णाम दृष्टिगोचर होने लगा। जिन मनुष्यों और जातियों
"माज कहा जाता है कि सत्य व्यापार में नहीं चलता, ने हिंसा का त्याग कर दिया, वे सभ्य कहलाने लगीं, उन्हे
राजकारण में नहीं चलता, तो फिर कहाँ चलता है ? प्रमर समाज में अधिक सम्मान मिलने लगा।
सत्य जीवन के सभी क्षेत्रों में और सभी व्यवहारों में नहीं अहिंसा की सामाजिकता और गांधी :
चल सकता तो वह कौड़ी कीमत की चीज नही है। जीवन लेकिन अहिंसा के विकास की यह मन्तिम सीमा नहीं में उसका उपयोग ही क्या रहा? सत्य और अहिंसा कोई थी । वर्तमान अवस्था तक पाने में उसे कुछ मौर सीढ़ियां प्राकाश-पुष्प नहीं हैं। उन्हें हमारे प्रत्येक शब्द, व्यापार चढ़नी थीं। वह अवसर उसे युग-पुरुष गांधी ने दिया। और कर्म में प्रकट होना चाहिए।" उन्होंने देखा कि निजी जीवन में महिंसा और बाह्य क्षेत्र गांधीजी ने यह सब कहा ही नहीं, इस पर अमल कर में हिंसा, ये बोनों चीजें साथ-साथ नहीं चल सकतीं, इस- के भी दिखाया। उन्होंने प्राचीनकाल से चली मा रही