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मानधातु नगर मडेश्वर प्रशस्ति का मंत्री वस्तुपाल से कोई सम्बन्ध नहीं
ही पढ़ रहा था तो उसमें अन्तिम प्रशस्ति के अन्त में पाल की है या नहीं, शंका उपस्थित होना स्वाभाविक ही लिखी हई पंक्ति पढ़कर मुझे पंक्ति मोर इस प्रशस्ति है। संभव है कि शिलालेख पर से परम्परा से नकल सम्बन्धी पुण्यविजय जी का विवरण पढ़ कर मुझे अपने करते हुए मूल प्रशस्ति का कुछ भाग लेखको के दोष से संग्रह-श्री अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेर की इस प्रशस्ति भुलाए जाने से लप्त हो गया हो, पर जिस प्रति मे वाली प्राचीन प्रति का स्मरण हो पाया। हमारे संग्रह वस्तुपाल की ही प्रशस्तियों का संग्रह है उसी प्रति में की प्रति नं. ५२३४ में खण्ड प्रशस्ति नामक दशावतार उनके साथ ही लिखी हुई यह प्रशस्ति वस्तुपाल की ही सम्बन्धी १.२ श्लोकों के काव्य लिखे जाने के बाद होनी चाहिए, ऐसा माना जा सकता है। इसके उपरांत मान्धात नगर मडेश्वर प्रशस्ति काव्यानि के पांच श्लोक वस्तुपाल ने शिवालयों के पुनरुद्धार और इसी तरह शिव लिम्बे हुए है। ६ पत्रों की यह प्रति संवत् १४६१ ज्येष्ठ की पूजा-दर्शन करने के उल्लेख तो उनके समय की ही वदी १४ को लिखी हुई हैं। अर्थात् मुनि पुण्यविजय जी रचनाओं में मिलता है। इससे प्रस्तुत प्रशस्ति वस्तुपाल को वस्तुपाल की प्रशस्तियों वाली जो प्रति प्राप्त हुई की नहीं है, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। यदि उमके समकालीन ५४० वर्ष पुरानी यह प्रति है। यह प्रतिपादन सत्य हो तो वस्तुपाल की पत्नी सोखुना
पूज्य पुण्यविजय जी को प्राप्त प्रति मे वस्तुपान की नाभ को सुसंस्कृत करके कदाचित शिला के नाम से यहां ७ प्रशस्तिया तो ४ श्लोक से ५४ श्लोको तक की है। निर्दिष्ट किया गया हो ऐसा अनुमान होता है। स्वी प्रशस्ति पं० जगसिह रचित एक श्लोक की है पोर पर वास्तव में इस प्रशस्ति का वस्तुपाल से कोई नवो प्रशस्ति ३ श्लोक की है। इसके बाद मान्धाटनगर सम्बन्ध नही है । शीलेति शब्द की जगह हमारी प्रति में मडेश्वर प्रशस्ति के पाँच श्लोक लिम्बे हुए है। अतः पूज्य
शीतेति पाठ लिखा हुआ है। यह प्रशस्ति मान्धात नगर पुण्यविजय जी की यह सहज धारणा हो गई जब पहले
के महेश्वर शिवालय की ही है जो पांच श्लोकों में ही की ६ प्रशस्तियां वस्तुपाल सम्बन्धी है तो १०वी मान्धातृ
पूर्ण है और जैसा मुनि श्री ने अनुमान किया है । इसके नगर मडेश्वर प्रशस्ति भी वस्तुपाल सम्बन्धी ही होनी
तीन श्लोक वस्तुपाल सम्बन्धी नही है न उनकी पत्नी का चाहिए । इस प्रशस्ति का परिचय देते हुए उन्होंने लिखा
संस्कृत नामातर शीला ही इसमें किया गया है। है कि इस प्रशस्ति मे उसके रचयिता का नाम नही दिया गया है। अन्त की पुष्पिका लेख से मालूम होता है कि मान्धातृ नगर यह नाम भी मूल प्रसिद्ध नाम का मान्धात नगर के मडेश्वर नामक शिलालेख की यह प्रशस्ति सस्कृतिकरण है। मान्धाता नाम का जो पौराणिक राजा है। इसके प्रथम दो पद्य शंकर की पूजा भक्ति के रूप में हुप्रा है उसके नाम से या उसकी स्मृति में जो नगर है। इन श्लोकों में वस्तुपाल का नाम नहीं है । इसी तरह बसाया गया उसका नाम यहा मान्धातृ नगर समझना अन्तिम पाचवें पद्य में प्रशस्ति के मुख्य नायक के पली चाहिए। यह नगर कौन सा है इसपर विचार करना का नाम शीला बतलाया गया है इसमे यह प्रशस्ति वस्तु- चाहिये ।