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मरबर की मेष्ठ कलाकृति “सहस्रकूट जिनविम्ब"
यह कलाकृति पीतल, तांबा मादि कुछ धातुओं के उपर से नीचे ५, ७, ८, १०, १०, १२, १३, १५ मोर सम्मिश्रण को ढाली हुई काफी बजनदार मूर्ति है जो लग- १७ है तथा अगल-बगल के दोनों पाटों की प्रत्येक पंक्ति भग ४ या ४ फुट ऊची है। यह नो भागों में विभाजित है की प्रतिमानों का क्रम ऊपर से नीचे ५, ७, ८, ९, ११, बिन्हें जोड़कर एक शिखरबंद संपूर्ण जिनालय का स्वरूप १२, १३, १४ पौर १७ है । इस तरह ९७४२+२ दिया गया है । ये नौ भाग हिलडुल कर कहीं बिखर X२३६८ कुल प्रतिमाएं हुई। अब सबसे प्रत में प्राता न जायें इसलिए इन्हें तारों से कस कर बाँधा गया है। है नौवां भाग जिसमे चार प्रादिनाथ प्रभु की पद्मासन प्रतिसर्व प्रथम, इसमें चार इंच ऊंची चौकोर पीठिका है जिस माएं उसी प्रकार की है जिस मावार की प्रथम पारियों पर पाट खड़े किये गये है इनमें से प्रत्येक पाट दो ढाई के मध्य में स्थित है। ये चागेसपर जुड़ी हुई है और इन फुट का वर्गाकार है। ये चारों पाट परस्पर बड़ी चतुराई का मुख चारों दिशामो की भोर है। इसमें हाथी, मोर और सावधानी से कलात्मक ढग से जोड़े गए है। इन्हें तथा अन्य कलात्मक सामग्री द्वारा पूरी-पूरी सजावट की जोड़कर एक सुन्दर चौकोर कमरा-सा बन जाता है। गई है। सबसे ऊपर पतली-सी पीतल की चादर का सुंदर इनके प्रत्येक पाट पर १५३-१५३ पद्मासन प्रतिमाएं है। कलात्मक कलश भी है ।इस तरह ६१२+३८६+४= मध्य में एक बड़ी प्रतिमा है जो लगभग ८" इंच ऊची है कुल १००२ प्रतिमानों का सह स्रकूट चैत्यालय झांसी के और इस बड़ी प्रतिमा को केन्द्र मानकर इसके चारों भोर बड़े मन्दिर में विराजमान है। छोटी-छोटी १५२ प्रतिमाएं हैं जो लगभग १ या १॥ इंच
प्रथम चारों पाटों के ऊपर की कटनी पर बड़ा ऊंची हैं । विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है।
विस्तृत लेख उत्कीर्ण है जिसमें सं० १५१५ फागुन वदी १ मध्य में स्थित बड़ी प्रतिमा के ऊपर और नीचे चार- सोमवार भूलसधे सरस्वतीगच्छे बलात्कार गणे. ..." चार पंक्तियां है जिनमें प्रत्येक पंक्ति में १४,-१४ छोटी प्रति- इत्यादि पढ़ा जा सका । पयूषण पर्व के प्रारम्भ में जब माएं हैं तथा अगल-बगल में ४.४ पक्तियां हैं जिनमें ५ विशालन्हवन होता है तब इसे खोला जाता है, तभी १ छोटी प्रतिमाएं हैं। इस तरह ५६+५६+१. इसको स्पष्ट रूप से पढ़ा जा सकता है। सबसे अतिम +२०+१=१५३ कुल प्रतिमाएं एक पाट पर है चारों भाग मे, जहां चारों प्रतिमाएं जुड़ी है, वहां जो कुछ पाटों पर १५३४४६१२ प्रतिमाएं हुई ।इन चारों पाटों उत्कीर्ण है वह इस प्रकार है : "शाके १५०६ माघ सुदी के ऊपर फिर चार पाट इस कलात्मक ढ़ग से लगाये गये १५ बुधवार श्री मूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे हैं कि वे एक शिखर का रूप धारण कर लेते हैं, इनमें कुदकुंदाचायम्निाए भट्टारक श्री धर्मभूषणोपदेशात् सि. से प्रत्येक पाट में ६, ९ पंक्तियां है इनमे से मागे पीछे के पाक सा० भार्या सिं० रूपाई सुत रामा प्रणमति । सि. दोनों पाटों की प्रत्येक पंक्ति की प्रतिमानों का क्रम रामा जी केन कारापितम"