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. अनेकान्त
देवदेव, प० अाशाधर ने) अपने ग्रन्थों में अपनाया है । इन ने सच कहा है। जो माली कोदों बोता है वह शाली कहाँ सब प्रमाणों से ज्ञात होता है कि कवि धनपाल दिगम्बर से प्राप्त कर सकता है। सम्प्रदाय के विद्वान थे।
इन सुभाषितों और लोकोक्तियों से ग्रन्थ और भी भविष्यदत्त कथा -
सरस बन गया है। प्रस्तृत कथा अपभ्रंश भाषा की रचना है। प्रस्तुत
ग्रन्थ का कथा भाग तीन भागों में बांटा जा सकता कृति में ३४४ कडवक है। जिनमें श्रत पंचमी के वनका हैं। यथामाहात्म्य बतलाते हए उसके अनुष्ठान करने का निर्देश किया १- व्यापारी पुत्र भविष्यदस की संपत्ति का वर्णन. भविष्य गया है। साथ ही भविष्यदत्त और कमयश्री के चरित्र
दत्त अपने सौतेले भाई बन्धुदत्त से दो बार धोखा चित्रण द्वारा उसे और भी स्पष्ट किया गया है। ग्रन्थ का
खाकर अनेक कष्ट सहता है, किन्तु अन्त में उसे सफकथा भाग तीन भागों में बाँटा जा सकता है । चरित्र घटना
लता मिलती है। बाहुल्य होते हुए भी कथानक सुन्दर बन पडे है। उनमें १-कुरुराज और तक्षशिला मरेशो में युद्ध होता है, साधु-प्रसाधु जीवन वाले व्यक्ति का परिचय स्वाभाविक भविष्यदत उसमे प्रमुख भाग लेता है और उसमें बन पड़ा है। कथानक मे अलौकिक घटनाओं का समो.
विजयी होता है। करण हुप्रा है, परन्तु वस्तु वर्णन मे कवि के हदय ने माथ ३---भविष्यदत्त तथा उसके साथियों का पूर्वजन्म वर्णन । दिया है। प्रतएव नगर, देशादिक और प्राकृतिक वर्णन कथा का संक्षिप्त सार : सरस हो सके है। ग्रन्थ में रस और अलङ्कारों के पुट ने भरत क्षेत्र के कुरु जांगल देश में गजपुर नाम का एक उसे सु-दर और सरस बना दिया है। ग्रन्थ मे जहाँ शृङ्गार सुन्दर और समृद्ध नगर था। उस नगर का शासक भूपाल वीर और शान्त रस का वर्णन है वहाँ उपमा, उत्प्रेक्षा, नाम का राजा था। उसी नगर में धनपाल नाम का नगर स्वाभावाक्ति पीर विरोधाभास प्रल ड्रारों का प्रयोग भी सेठ रहता था। वह अपने गुणों के कारण लोक में प्रसिद्ध दिखाई देता है। भाषा मे लोकोक्तियाँ और वाग्धारामोका था। उसका विवाह हरिबल नाम के सेठ की सुन्दर पूत्री प्रयोग भी मिलता है।
कमलश्री से हुपा था। वह प्रत्यन्त रूपवती और गुणवती __ यथा---कि घिउ होइ विरोलिए पागिए-पानी थी। बहुत दिनों तक उसके कोई सन्तान न हुई प्रतएव के बिलौने से क्या घो हो मकता है?
वह चिन्तित रहती थी । एक दिन उसने अपनी चिन्ता का अग इच्छियड होति जिय दुक्खइं सहसा परि. कारण मुनिवर से निवेदन किया। मुनिवर ने उत्तर में सावनि तिह सोक्खइं। जैसे यच्छया दुख पाते हैं, कहा, तेरे कुछ दिनो मे विनयो, पराक्रमी और गुणवान् वैसे ही सहसा सुख भी प्रते हैं।
पुत्र होगा , और कुछ समय बाद उसके भविष्यदत्त नाम जोवरण वियार रसवस पसरि सो सरउ सो परियउ। का पुत्र हुमा। वह पड़ मिचकर सब कलापो में निष्णात चल मम्मरण ज्याला वहि जो परतिहि खंडियउ॥ हो गया।
(३-१५-६) पनपाम सुरूपा नाम की पुत्री से अपना दूसरा विवाह वही शूरवीर है, वही पण्डित है, जो यौवन के विषय कर लेता है । उसके बन्धुदस नाम का पुत्र हुमा । जब वह विकारो के बढ़ने पर परस्त्रियो के चञ्चल कामोद्दीपक वचनो युचा हुमा, तब बहुत उत्पात मचाने लगा। नगर के मेठों से प्रभा मत नहीं होता।
ने मिलकर विचार किया कि वह युवतियो से छेरखामी बहा जेरण बत्तं तहा तेण यत्तं इमं सुधए सिड लोएण युत्त। करता है, प्रत उसे कंचनपुर जाने के लिये तैगर रहमा सुपायन्नवा कोदवा मत्त माली कह सोमरो पावए तत्य चाहिए। मत्रीजन व्यवसाय के निमित्त बन्धुदत्त को भेजने
सासी । (पृष्ठ ४) के लिये तैयार हो गये। पोर बन्धुदत्त को अपने माथियों ओ जैसा देता है, वैसा ही पाता है, यह शिष्ट लोगो के साथ कचन द्वीप जाते हुए देखकर भविष्यदत्त भी अपनी