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________________ आगरा से जैनों का सम्बन्ध और प्राचीन जैन मन्दिर विनामणि पार्श्वनाथ" के नाम से उल्लेख किया है । नन्दराम जी ने तो यहाँ तक लिखा है कि इनके दर्शन करने से मुझे स्वरूप प्रात्मा का ज्ञान सम्यक् दर्शन हुआ है" ताजगंज के मन्दिर में एक श्रुत यत्र है जिसकी प्रशस्ति से मालुम होता है कि पं० बनारसीदाम जी व भैय्या भगवतीदास यत्र को करहल (नपुरी मे पतिष्ठा करा कर लाये थे । यहाँ के सरस्वती भण्डार मे कई प्राचीन ग्रन्थ है जिनमे 'जीव सिद्धि' और स्वर्ण अक्षरी से लिखा हुआ उर्दू लिपि मे पं० बनारसी दास का समयसार नाटक भी था। जब १९३० मे हम लोगों ने श्राचार्य श्री १०८ शान्तिसागर जी के आगमन पर नशिया पीर कल्याणी पर शास्त्र प्रदर्शिनी की थी तब उक्त दोनो ग्रन्थों को देखा था । मोती कटरा में दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनो सम्प्रदाय के विशाल एवं प्राचीन मंदिर है जिनमे ऐतिहासिक प्रतिमाएँ विराजमान है। शास्त्र भण्डार भी है। दिगम्बर जैन बड़े मन्दिर को तो प्राचीन प्रतिमा और शास्त्रो का शागार ही कहना चाहिए। प० बनारसी दास जी भी मोती कटरा मे रहते थे । यहाँ के शास्त्रों व प्रतिमाओ की प्रशस्तियाँ यदि प्रकाश में आ जावे तो जैन इतिहास को बहुत सामग्री मिलें । सुना है शीघ्र ही यहाँ यंत्र कल्याणक प्रतिष्ठा होने जा रही है। अच्छा हो यदि सयोजक गण इस उपयोगी महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य के लिए भी आयोजन करें।ा के मन्दिरों की प्रतिमा वे दि.लालेख तो सरहीत होवर प्रकाशित हो चुके है। उन्ही के अधार पर आगरे के प्रार्थन जैन इतिहास की भलक मिलती है। यदि शास्त्रों को प्रशस्तिया भी प्रकाश में आ जाती तो और अधिक जानकारी मिलती। प्रसिद्ध स्वर्गीय जती माजी में रहते थे । उनके कारण ही उसका जती कटरा नाम पडा । स्व० जती जी यंत्र, मंत्र ज्योतिष व वैद्यक प्रादि के अच्छे ज्ञाता थे और दिगम्बर श्वेताम्बर दोनो ही सम्प्रदायों में उनका प्रभाव व मान था। अनेक दिगम्बर उनके शिष्य थे मोठी कटरा जैन जोहरियो की वस्ती होने से इस का नाम मोती कटरा पड़ा जान पड़ता है । जती कटरा में भी दिगम्बर व श्वेताम्बर मंन्दिर है । जिनमे प्राचीन व मनोग्य प्रतिमाएं विराजमान हैं । । २४१ नुनिहाई व सिकंदरा भी पुरानी बस्तियां है और दिगम्बर जैन मंदिर भी हैं परन्तु प्राचीनता प्रायः नष्ट हो गर्द या श्रावको की आधुनिक एवं नवीन प्रियता के कारण लुप्त हो गई है । बादशाही जमाने मे नुनहाई व शहादरा सम्पन्न वस्तिया थी । पुराने मकानों के खडहर भागवत के योतक है। निहाई सहादरा आगरा मुगलसराय मार्ग पर स्थित होने से बादशाही काल में मुगल फोजो का पड़ाव रहता था। नुनिहाई के पास ही जमुना किनारे-किनारे बादशाही इमारतो की लाइन है जिनमें रामबाग, संवद का बाग, चौबुरजा, चीनी का रोजा, ग्यारह सिड्डी आदि व नवलखा बाग (जो आजकल नवल गज कहलाता है । ) आदि मुख्य है । इस समय वेलनगज, धूलियागज, पत्तलगली गुदड़ी, घाटिया, अाजम ला, राजा मन्डी नाई भन्डी, छीपीटोना, पोर कल्याणी आदि मोहल्लों में करीब ३० मंदिर व स्यालय दिगम्बर जैन ग्राम्नाय के और मोती कटरा व रोशन मोहल्ला के अलावा वेलनगंज मे भी व्वेताम्बर आम्नाय के मंदिर है यह प्रायः सब मंदिर १०० साल के अन्दर के बने हुए है। कोई-कोई १०-१२ वर्ष के पुराने ही है। नित्य पूजन दर्शन करना यद्यपि प्रत्येक जैन स्त्री-पुरुषबालवृद्ध के लिए वस्तु यह प्रवृत्ति घटती जा रही है खास कर पढे-लिखे याधुनिक युवा वर्ग मे शिवाय मेवों मे मनोरजनायें सम्मलित होने के मंदिर जाने की प्रवृत्ति मिटती जाती है। कभी-कभी यह सोचकर कि इतने मंदिरों की रक्षा, व व्यवस्था भविष्य में किस प्रकार होगी, खेद होता है परन्तु फिर भी नित्य नवीन मंदिर और मूर्ति निर्माण की प्रवृत्ति-समाज मे धन वृद्धि के साथ-साथ वढ रही है। यह प्राचयं और चिन्ता का विषय है । ⭑ नोट- नुनिहाई मे वार्षिक कलशाभिषेक प्राचीन काल से होते चले आये है । उत्सव के उपरान्त जनता एतमादुल्ला के बगीचे में ठहर कर भोजन करती थी। गत २ वर्षों से जैनों की उपेक्षा और कम जोरी के कारण पुरातत्व विभाग बन्द कर दिया है । इसी प्रकार सिकन्दरा व ताऊ के बगीचो मे भी उत्सव के बाद भोजन करने का अधिकार बादशाही जमाने से चला भाता है।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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