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________________ ६२, वर्ष २३ कि. २ अनेकान्त ने देवगढ़ के सभी जन स्मारको और मूर्ति-अवशेषो का बराबर ध्यान रखा है । इस क्षेत्र का प्रागितिहास काल से उसी स्थान पर जाकर अध्ययन किया है । उसने देवगढ़ आधुनिक काल तक का इतिहास सक्षेप में लिखा गया है। के समीपवर्ती क्षेत्र का सर्वेक्षण किया है और दश के इस सम्बन्ध मे मन्दिर स्थापत्य के विकास का इतिहास विभिन्न संग्रहालयों में प्राचीन भारतीय कलागृहो का अपने आप आ गया है और उसी पृष्ठभूमि पर जैन मन्दिर अध्ययन किया है। "शोधप्रबन्ध नौ अध्याओं और पाच लिये गये है। इस विद्वान् ने बहत से उलझे हुए विषयों परिशिष्टों में विभाजित है। प्राचीन मन्दिरो की रेखा को स्पष्टता से सुलझाया है। प्रभावपूर्ण जैन केन्द्र मे जति दर्शाने वाला एक नक्शा, और विभिन्न इमारतों तथा हिन्दू मूर्तियों का पाया जाना स्वभावत: जिज्ञासा बढाता जातियों को चित्रित करने के लिए १२० फोटो प्रादि दी है और इस सबन्ध में यह ध्यान देना होगा कि हिन्दू धर्म गयी है। शोधप्रबन्ध के अन्त में सदर्भ ग्रन्थो की एक और जैन धर्म के बीच हमेशा सौहार्दपूर्ण संबन्ध रहे है, विस्तृत सूची भी है। बौद्ध धर्म और खासकर उसकी महायान शाखा की तरह “यह देवगढ की जैन कला का प्रथम, व्यापक और नही कि जिसमे ऐसी अनेक मतियाँ बनायी गयी जिनमें समीक्षात्मक अध्ययन है। मन्दिरो तथा अन्य अवशेषो का हिन्दू देवों और देवियों को इरादतन हीन स्थिति में दिखाया विवरण सविस्तार है। इन स्मारको पर अाधारित सभी गया है । जैसा कि एक श्रेष्ठ विद्वान् ने उल्लेख किया है. कला सम्बन्धी मुद्दे भलीभांति रखे गये है। जैन पूजा से यही वह सच्चाई है जिसने जैन धर्म को अनेक असगतियों से सम्बद्ध विभिन्न समस्यामो, धार्मिक प्रतीकवाद, भट्टारक के बावजूद उसकी जन्म-भूमि में बने रहने मे मदद की. सस्था का उद्भव और विकास तथा कुछ मूर्तियो के समी- जबकि विरोधी दिशा पकड़ने से बौद्धधर्म को अपने जन्मकरण आदि पर वैज्ञानिक ढग से विचार किया गया है। स्थान से निर्वासित होना पड़ा। इस स्थान (देवगढ़) के साहित्यिक प्रस्तुतीकरण यथोचित है। धार्मिक जीवन पर लिखा गया अध्याय निस्सन्देह प्रेरणा"यह रचना प्राचीन भारतीय इतिहास और सस्कृति दायक और सूचनापूर्ण बन पड़ा है। संघों के गिर्द केन्द्रित के लिए एक मौलिक योगदान है। श्री भागचन्द्र जैन के सामाजिक जीवन भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है। यह स्थान लिए सागर विश्वविद्यालय की पी-एच० डी० की उपाधि इतिहास के स्रोतों से समृद्ध है जिसका महत्त्व मडिकल से समर्पित किये जाने की संस्तुति करते हुए मुझे प्रसन्नता कम किया जा सकता है। का अनुभव होता है।" __ "लेखक ने विपुल सामग्री एकत्र की है और उसे प्रो. सधाकर चटोपाध्याय, विश्वभारती, शान्ति- वैज्ञानिक ढग से सजोया है। शोधप्रबन्ध पर परिश्रम निकेतन : और मौलिक चिन्तन की छाप है और उस अध्ययन का ने श्री भागचन्द्र जैन द्वारा सागर विश्वविद्या- प्रमाण है जिसे लेखक ने किया है। लय की पीएच० डी० उपाधि के लिए प्रस्तुत 'दवगढ़ की “यह संस्तुति करने मे मुझे प्रसन्नता है कि श्री जैनकला का सांस्कृतिक अध्ययन' शीर्षक शोधप्रबन्ध का भागचन्द्र जैन को सागर विश्वविद्यालय की पीएच. डी. परीक्षण किया है। यह शोधप्रबन्ध नौ अध्यायो और पाधि सीकत की जा ।" पांच परिशिष्टो में विभाजित है जो उसी स्थान पर जाकर (३) श्री सतीशचन्द्र काला, निर्देशक, इलाहाबाद किए गए अध्ययन पर आधारित है जो (अध्ययन) संकेतो संग्रहालय, इलाहाबाद, उ० प्र० : और व्याख्यानो से समृद्ध अगणित विवरणो से परिपूर्ण "मैने श्री भागचन्द्र जैन के शोधप्रबन्ध 'देवगढ की जैन है । जिन्होने विभिन्न दृष्टिकोणो से (देवगढ़ का) अध्ययन कला का सास्कृतिक अध्ययन' की परीक्षा की और उसे किया है उन पूर्ववर्ती लेखकों का और अब तक लिखी उच्चकोटि का शोध कार्य पाया। गयी उसी (देवगढ़) सबन्धी उन संक्षिप्त पुस्तकों का जिन्हे "श्री भागचन्द्र जैन डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की अन्य विद्वान् लेखकों ने लिखा, लेखक (भागचन्द्र जैन) ने उपाधि पाने के योग्य व्यक्ति है।"
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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