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________________ ५८, वर्ष २३ कि०२ अनेकान्त दृष्टान्त मे समन्तभद्र के दिए नाम ही दिए है, पर कोई भी लेखक या ग्रन्थकार इस प्रकार नामों का उल्लेख जिनेन्द्रभक्त के स्थान मे उसने जिनभक्त नाम दिया है। कभी नही कर सकता है जब तक कि उसे मौखिक परम्परा इसके सिवा उसने इन व्यक्तियों के नगरों के नाम भी दे से या लिखित उल्लेखो से उनकी कथानों का पूरा-पूरा दिए हैं (गाथा ५२-५)। वसुनन्दि ने सात व्यसनों के परिचय प्राप्त न हो। कुछ कथाएं उनके विवरण सहित बुरे परिणामों के छाप पटकने के लिए नीचे लिखी अनेक जो खोज ली गई है, यही बात समर्थन करती है कि इन कथानों की ओर ध्यान प्राकृष्ट किया है : द्यूत के कारण नामों का सम्बन्ध सुप्रख्यात कथानों के साथ बैठाने के राजा युधिष्ठिर ने न केवल राज्य ही खोया अपितु १२ लिए और भी गहन अध्ययन प्रावश्यक है। वर्ष तक वनवास भी भोगा था; उद्यान मे क्रीड़ा करते इ. उत्तरकालीन प्रवृत्तियों और नमूने हुए प्यास लगने पर गन्दी मदिरा पीकर यादव नष्ट ही प्राचीन जैन साहित्य के वर्णात्मक तत्त्वों का सरसरा हो गये थे; एकचक्र का राक्षस बक, मास लोलुपी होने के सर्वेक्षण कर लेने के पश्चात्, इन प्राचीन बीजों से ही कारण ही राज्यभ्रष्ट हुआ और मरने पर नरक में गया अंकुरित और पल्लवित पीछे के जैन कथा-साहित्यों के था; चतुर चारुदत्त वेश्याशक्ति के कारण ही दरिद्र हमा खास-खास नमूनो का विचार करना अब प्रावश्यक है। और विदेशों मे दुःख पाया था; चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त पाखेट प्रत्येक के विवरण के खोज की अपेक्षा, उनकी स्थूल धारा के व्यसन के कारण ही नरक में गया था; श्रीभूति निक्षेप एव नमूनो का विचार करना ही हमारे लिए अधिक का अस्वीकार कर हड़प जाने के कारण ही संसार के उपयोगी होगा। अनेक चक्र करता रहा था; लंकापति रावण, प्रतिवासुदेव वेसठ शलाका पुरुषों की जीवनी की सामग्री [२४ और विद्याधरों का अधिपति होने पर भी, परदारा-हरण तीर्थकर, १२ चक्र कर्ती, ६ वासुदेव, ६ प्रतिवासुदेव, और के पाप के कारण नरक में गया और अनेक भवभ्रमण ६ बलदेव ] अंशतः कल्पसूत्र में पाई जाती है और प्राधारकिये थे (गाथा १२५-३३)। भूत तत्वों मे तिलोयपण्णत्ति एवं विशेषावश्यक-भाष्य में, मूल पाठ इन व्यक्तियों के विषय में स्वतः कुछ भी जैसा कि पहले ही देखा जा चुका है, भी मिलती है। इन नही कहते है, परन्तु टीकाकार ही इनके कथानको की जीवनियो को एक विशिष्ट रूप ही प्राप्त हो गया है पूर्ति करते है। प्रभाचन्द्र ने रत्नकरण्ड के उल्लेखों को हालांकि ब्यौरे और विवरण प्रत्येक लेखक के एक दूसरे हालाकि हर स्पष्ट करने के लिए ही कथानक दिये है। कितने ही से कुछ-कुछ भिन्न है। ऐसा मालूम पड़ता है कि कुछ कथानक तो, यह स्पष्ट है कि, धर्मोपदेशिक ही हैं । कुछ प्राचान प्राचीन ग्रन्थ, जैसे कि कवि परमेश्वर का, हम तक नहीं' कथानक उत्तरकालीन कथाकोषों में ही पाये जाते है और पहुंच पाए। परन्तु जिनसेन, गुणभद्र और हेमचन्द्र के कथानो के नायक-नायिका का भाग्य पाठक के मानस पर सस् र संस्कृत ग्रंथ, शीलाचार्य और भद्रेश्वर के प्राकृतिक ग्रन्थ, एक स्पष्ट छाप छोड़ देता है। यदि वे अपने दुष्कृत्यों या पु पुष्पदन्त का अपभ्रंश ग्रंथ, चामुण्डराय का कन्नड ग्रंथ पापों से दुख पाते है तो पाठक को उन दुष्कृत्यों या पापों और तमिल के किसी अज्ञात लेखक का श्री पुराण में, से बचते ही रहना चाहिए, और यदि वे अपने सुकृत्यों, पाशाघर, हस्तिमल्ल आदि के छोटे-छोटे ग्रन्थों के साथधर्मकृत्यों से सुख पाते हैं तो पाठक इनकी सार्थकता का साथ ही, प्राप्त है। इनके विश्वभौगोलिक एवं सैद्धान्तिक पूर्ण विश्वासी हो जाता है। विवरणों के बीच-बीच मे दी गयी कथानों और धर्म विशाल जैन कथानक या वर्णनात्मक साहित्य का देशनाओं के कारण इन्हें प्रधान पुराणों में पूजनीय स्थान पूर्ण अध्ययन ही हमें कहानियों के पहचानने और प्राचीन प्राप्त हो गया है और ये बड़े प्रामाणिक माने जाते हैं। जैन साहित्य के विशाल क्षेत्र में प्रसंगवश उल्लिखित दूसरे नमूनों मे वैयक्तिक तीर्थकरों की और उनके के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने में बहुत सहा- समय के अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों की जीवनियाँ है । पर यता कर सकता है। यह बिलकुल निश्चित बात है कि हम देख पाए हैं कि निर्वाणकाण्ड में अनेक सुप्रतिष्ठित
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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