SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२, वर्ष २३ कि० १ अनेकान्त होगी? जरूर होगी। और उसी भावना से मैंने उस चैत्यालयस्याग्ने निजभुजोपार्जितवित्तबलेन श्रीकीतिस्तंभ मूर्तिलेख (स. १५४१) को प्रकाशित किया था। उक्त भारोपक साहु जीजा सुत साहु पुनसिंहस्य 'माम्नाये'... शिलालेखों से नष्ट हुयी सामग्री को अन्य जगह का संशो- आदि स्पष्ट लेख है। 'आम्नाये' इस शब्द को टालकर घन करके तथा भाटो के पास की वंशावली से प्राप्त हो संवत् १५४१ के मूर्तिलेख मे उद्धत सभी घटना को उसी सकती है। वहां के विद्वानों से इसकी उपेक्षा करना कालीन बताया त्यागी तथा सत्यशोधक ऐसे मुनि जी को अनुचित होगा। कितना उचित है, इसका वे ही विचार करे। 'खण्डहरों तथा लिखते समय समाधान होता है कि जिन का वैभव' किताब में भी ऐसी अनेक बातें उल्लिखित हैं। मूर्तिलेख से मुनि कांतिसागर ने इस कीतिस्तभ को १५- उन सबका वे स्वयं परीक्षण करेंगे और सही घटनामों १६ सदी का ठहराने की कुचेष्टा की उस मूर्तिलेखकों को पर प्रकाश डालेंगे ऐसी मैं उनसे प्रार्थना करूंगा। साथ मुझे देखने का सुअवसर मिला। और उसमे 'श्रीमत् ही साथ साहु जीजा तथा पूर्णसिंह के मूल स्थान, कार्य वृद्धसेनगण घरान्वये' न होकर' श्रीमन वृषभसेनगणाथ रा- गुरु परपरा इसके ऊपर विद्वान अधिक प्रकाश डालेंगे। न्वये'...श्रीमेदपाटदेशे चित्रकूटनगरे श्रीचंदप्रभजिनेन्द्र ऐसी शुभ कामना के साथ मैं इसको समाप्त करता हूँ। ढूंढाड़ी भाषा की जैन रचनाएँ डा० गंगाराम गर्ग राजस्थान की मारवाड़ी, ढुंढाड़ी, मेवाती, हाड़ौती न जा सका। प्रस्तुत निबध में पाच मन्दिर टोंक मे उपआदि विबिध बोलियो में प्रथम दो बोलियाँ ही साहित्यिक लल्घ दो गुटकों में विद्यमान कुछ दूढाड़ी रचनाओं का पद पर प्रतिष्ठित हो सकी हैं। मारवाडी (मरु भाषा) विवरण दिया जा रहा है :मार ढूंढाड़ी को साहित्कि गौरव प्रदान करने में क्रमशः १. नेमनाथ कल्याणक वर्णन :-इसकी रचना पोष श्वेताम्बर वोर दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वानों का बड़ा शुक्ला ११ सदत् १७५४ को ईसरदा ग्राम में हुई। प्रथ के योग है । मारवाड़ी के समान ढढाडी मे भी पिछले चार- रचयिता अनूपचन्द वरवतराम सघी के पुत्र थे । इसमे पांच सौ वर्ष तक की पर्याप्त रचनाएं गद्य और पद्य दोनों ६३ दोहे और सोरठे है। ग्रन्थ के प्रारम्भ मे तीर्थंकर ही विधाओं में उपलब्ध है किन्तु प्रसिद्ध विद्वान अगरचंद नेमिनाथ जी का गुण गान किया गया हैनाहटा द्वारा संवत् २०१० मे ही इस ओर संकेत दिये तेरे गुन समरन करे, नति प्रति मन वच काय । जाने पर भी ढूढाड़ी के साहित्य की तरफ अधिक ध्यान सोनर सूर सूख भगति के निसचे सिव सुष पाय । १-२. राजस्थानी जैन साहित्य मरुभाषा मे बर्णयो है। पचकल्याणको के वर्णन में जन्म कल्याणका के उत्सव इसमे श्वेताम्घर सम्प्रदाय के खरतर गच्छीय विद्वानों की झांकी अधिक प्राकर्षक हैद्वारा रचित साहित्य अधिक है। दिगम्बर विद्वानां अठ जोजन ऊंचो करयो, एक कलस को भेव । ढूंढाड़ी भाषा मे भी साहित निर्माण किया है। पीर समूद जल ल्यावहीं, इन्द्रादिक सब देव ।२३ राजस्थानी गद्य साहित्य : उद्भव और विकास, प्रभु के सिर पर ढारिक, करे कल्याणक सार । ५, पृ० १८९। अपनी बुधि सम बीनवै, मघवा बारंबार ।२४
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy