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- अनेकान्त
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को भी खाने के लिए बेचता था जीवहिंसा के इस महान् पाप के फल स्वरूप वह नरक में गया और वहाँ से निकलने पर वह भद्रा के घर में सगड़ नाम से पुत्र रूप जम्मा इस भद्रा के जितनी भी संताने होती थी, मर जाती थीं। परन्तु सगड़ नहीं मरा, परन्तु उसके जन्म के बाद परिवार के बुरे दिन भा गये। सगड़ बहुत बड धौर व्यभिचारी हो गया। वह मंत्री की वेश्या सुदर्शना से जा फंसा । फल स्वरूप वह राजा के समक्ष पेश किया गया और राजा ने उसे तप्त लोह नारी-पुतले के पालन कराने का मृत्युदण्ड दे दिया। महावीर ने भविष्यवाणी की कि सगड और सुदर्शना अगले जन्म में भाई-बहन के जोड़े रूप से पैदा होंगे और यथाकाल वे पति-पत्नी की भाँति ही जीवन विताएगे फल स्वरूप वे मर कर दोनों ही नरक में जाएंगे और ससार में खूब ही जन्म-जन्मांतर तक भ्रमण करेंगे । सार्थवाह के जन्म में यह सगड़ भिक्षु बन जाएगा और यथाकाल मोक्ष भी प्राप्त करेगा । पांचवीं कथा राजगुरु महसरदत्त की है जो नरमेध यज्ञ किया करता था। ताकि राजा के वैरियों का नाश हो जाए। इस पाप से वह मर कर नरक मे गया और वहाँ से निकल कर बृहस्पतिदस नामक राजगुरु रूप से फिर जन्म पाया | राजगुरु होने से वह रनिवास में बे रोकटोक जाता था। रानी के साथ व्यवभिचार करने के दोष में पकड़े जाने पर राजा ने उसे सबके देखते सूली पर चढ़ा देने का दण्ड दे दिया । महावीर ने उसका भविष्य कहा कि वह अनेक नीच योनियों मे जन्म लेता हुआ एकदा मनुष्य भव पाएगा और तब वह भिक्षु वैरागी हो जाएगा। यथाकाल वह मुक्त होगा। छठी कथा दुज्जोहन नामक फौजदार की है जो क्रूर था और बन्दियों पर सदा घोर तम जुलुम ढाया करता था। फलतः वह नरक में गया और फिर किसी भव में नन्दिवर्धन नामक राजकुमार हुआ । तब उसमे अपने पिता राजा सिरिदास की हत्या एक नापित द्वारा कराने की चेष्टा की, ' परन्तु पकड़ लिया गया और उसे तत्काल मृत्यु का दण्ड सुना दिया गया । महावीर ने इसका भविष्य कहते हुए कहा कि वह उ यय की तरह भवोभव करते हुए भन्त में मोक्ष लाभ करेगा। सातवी कथा बंध धनवन्तरी की है जो स्वयं
मांसाहारी था और रोगियों को भी मांस भोर मांस से बनी औषधियाँ और पथ्य दिलाया करता था। इस हिंसा पाप के कारण उसका जीव नरक में गया। वहाँ से निकल कर वह उम्बरदत्त नामक धनी सार्थवाह रूप से जन्मा । परन्तु वह अपने कुल का कलंक हुधा धौर रोगों से भरा शरीर लिए नगर में घूमता रहता था। उसके विषय मे महावीर ने भविष्य कहा कि उसके मियापुत्र के समान ही भव-भवन्तर होंगे । प्राठवीं कथा पाचक (रसोइया ) सिरीय की है जो व्याधों, चिड़ीमारों, मछुमों आदि को राज-रसोडे के लिए पशु-पक्षी मत्स्य आदि लाने के लिए नियुक्त करता था । वह स्वयं मांस खाता और दूसरो को भी मांस पकवान खाने के लिए बेचता था । मृत्यु पर वह सोरियदत्त नामक मछुम्रा रूप से जन्मा । तब उसने लोगों को खाने के लिए न केवल खूब मत्स्य ही बेचे, परन्तु स्वयं भी खूब खाए । एकदा मत्स्य का एक कांटा गले में अटक जाने से उसने घोर यंत्रणा पाई और मर गया । महावीर ने उसका भविष्य कहा कि वह भी मियापुत्र के से भवभवान्तर करेगा । नौवी कथा राजा सिंहसेन की है जिसने अपनी ४६६ रानियो एवं उनकी माताओ को इसलिए जीवित जला दिया कि उनने उसकी मनीता रानी सामा की हत्या का षडयंत्र रचा था। इस घोर पाप के कारण वह मर कर नरक में गया और वहाँ से निकल कर उसने परम सुन्दरी कुमारी देवदत्ता रूप से जन्म पाया । उसका विवाह श्री पुष्पनन्दी के साथ हुआ जो कि अपनी माता का बड़ा भक्त था । उसकी देवदत्ता को यह नही रुचा । इसलिए उसने लोह-वालाकाए गरम कर अपनी सास की हत्या कर दी। राजा ने देवदत्ता को इस हत्या के दण्ड मे सूली दिला दी। उसके भव भवान्तर भी मियापुत्र के से ही होंगे । दसवीं कथा गणिका पुढ़विसिरी की है कि जो गरीब-अमीर सभी प्रकार के अनेक लोगों को अपने प्रति प्रासक्त किया करती थी। यह वेश्या-जीवन समाप्त कर नरक में गई जहाँ से निकल कर वह अज्जू नाम सुन्दरी रूप से जन्मी वह राजा की रानी हो गई, परन्तु असा पोनि पीड़ा से वह सदा ही दुखी रही इस रोग का कोई इलाज ही नहीं लगा। महावीर ने इसके भव भवान्तर भी देवदत्ता के से ही बताए हैं। विवायसूयम् के