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________________ क्र० विषय-सूची | अनेकान्त के लिए स्थायी ग्राहकों और पृ० विशेष सहायक सदस्यों की आवश्यकता १ अर्हत्परमेष्ठी स्तवन-मुनि श्री पद्मनन्दि अनेकान्त जैन सस्कृति की प्रतिष्ठित एव प्रामाणिक २ जैन समाज की कुछ उपजातियां पत्रिका है। इतना होने पर भी जैन समाज का ध्यान इस परमानन्द शास्त्री पत्रिका की अोर नही है। तो भी पत्रिका घाटा उठाकर ३ एक प्रतीकांकित द्वार-गोपीलाल अमर एम. ए. ६० भी सस्कृति के प्रचार और प्रसार में संलग्न रहती है। ४ अंतरीक्ष पार्श्वनाथ विनंति अनेकान्त द्वारा जो खोज की गई है, वे महत्वपूर्ण है । अतः नेमचन्द धन्नूसा जैन हम अनेकान्त के संरक्षको विशेष सहायको और स्थायी सदस्यो तथा विद्वानों से प्रेरणा करते है कि वे अनेकान्त ५ प्रात्म सम्बोधन-परमानन्द शास्त्री की ग्राहक सख्या बढ़ाने मे हमे सहयोग प्रदान करे । मह. ६ ग्वालियर के कुछ काप्टासबधी भट्टारक गाई होने पर भी अनेकान्त का वही ६) रु० मूल्य है। परमानन्द शास्त्री जब कि सब पत्रों का मूल्य बढ़ गया है तब भी अनेकान्त का ७ शहडोल जिले में जैन सस्कृति का एक अज्ञात मल्य नहीं बढ़ाया गया। केन्द्र-प्रो० भागचन्द जैन 'भागेन्दु' अनेकान्त के लिए २५१) प्रदान करने वाले ५० विशेष ८ युक्त्यनुशासन : एक अध्ययन सहायक सदस्यो, और १०१) प्रदान करने वाले सौ स्थायी डा० दरबारी लाल जैन कोठिया सदस्यों की आवश्यकता है। कुछ ऐसे धर्मात्मा सज्जनो ६ भगवान ऋषभदेव-परमानन्द शास्त्री को भी अावश्यकता है जो अपनी ओर से अनेकान्त पत्रिका कालेजो, पुस्तकालयों और विश्वविद्यालयों को अपनी ओर १० हृदय की कठोरता-मुनि कन्हैयालाल , से भिजवा सके । साथ ही विवाहो, पर्वो और उत्सबो पर ११ मगध सम्राट् राजा बिम्बसार का जनधर्म निकाले जाने वाले दान मे से अनेकान्त को भी प्राथिक परिग्रहण-परमानन्द शास्त्री सहयोग प्राप्त हो। १२ अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व शान्ति किस प्रकार कुछ दानी महानुभाव अपनी ओर से जैन संस्थानो प्राप्त हो सकती है पुस्तकालयो मे अनेकान्त भिजवाएं। व्यवस्थापक शान्तीलाल वनमाली शेठ 'अनेकान्त' १३ लश्कर में मेरे पांच दिन-परमानन्द शास्त्री ६१ / अनेकान्त के पाठकों से १४ साहित्य-समीक्षा-परमानन्द शास्त्री तथा बालचन्द सिद्धान्त शास्त्री अनेकान्त प्रेमी पाठको से निवेदन है कि उनका वार्षिक मूल्य समाप्त हो चुका है। नए २२वे वर्ष का मूल्य ६) रुपया मनीआर्डर द्वारा भिजवा कर अनुगृहीत करे । सम्पादक-मण्डल अन्यथा अगला अक वी. पी. से भेजा जायगा। जिससे डा० प्रा० ने० उपाध्ये आपको १) एक रुपया अधिक खर्च देना पड़ेगा। डा०प्रेमसागर जन व्यवस्थापक : 'अनेकान्त' श्री यशपाल जैन 'वीरसेवामन्दिर' २१ दरियागंज, दिल्ली परमानन्द शास्त्री अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया माल उत्तरदायी नहीं हैं। -व्यवस्थापक मनेकान्त एक किरण का मल्य १ रुपया २५ पंसा MMA
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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