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________________ सुगन्दि के नाम से प्राकृत का एक संग्रहान् सत्यविचार प्रोषधोपवास, प्रतिथिसंविभाग और मरणान्त में सहमेखना' । जबकि वसुनंदि श्रावकाचार का कथन इससे भिन्न है । उसमें दिग्विरति, देशविरति घोर अनर्थदण्डविरति को गुणव्रत' तथा भोगविरति, परभोगनिवृत्ति, प्रतिथिसंविभाग और सल्लेखना इन चार को शिक्षावत कहा गया है'। और 'तत्वविचार' में दो गाथाएं भावसग्रह की भी प्राप्त होती है। अतः इसे मौलिक ग्रन्थ न होकर, सग्रह ग्रंथ होना चाहिए। श्री मुख्तार सा० की इस सूचना के कारण 'तत्वविचार को वसुनन्दि का ही परवर्ती ग्रंथ मानने में मुझे भी हिचक हुई। श्री नाहटा जी से विचार-विमर्श करने पर भी इसके संग्रह ग्रन्थ होने की पुष्टि हुई मतः मैं इसके सदर्भ खोजने में जुट गया । परिणामस्वरूप जो तथ्य सामने आये उनसे यह भलीभांति प्रमाणित हो गया कि तत्वविचार' में न केवल वसुनन्दि के धावकाचार और भावसंग्रह से गाथाएँ उड़त की गई है, बल्कि लगभग २०-२५ प्राचीन ग्रंथों की गाथाएँ इसमें संग्रहीत है कुछ गयाएँ पवेताम्बर ग्रन्थों की भी हैं, जिनके कारण इसमें न केवल विभिन्न गाथाओं का सग्रह है, अपितु विभिन्न विचारों का भी समावेश है। यथा- 'तत्वविचार' की एक गाया मे 'णमोकारमन्त्र' के एक लाख जाप से निःसन्देह तीर्थंकर गोत्र का बन्ध होना बतलाया है' जो श्वेताम्बर परम्परा का प्रभाव हैं । 'तत्वविचार' की प्रस्तुत २९१ गाथाओं में से अपिकाश गाथाओं के सन्दर्भ निम्नलिखित ग्रंथों में खोजे जा सके हैं, जो इसके संग्रह ग्रथ होने के लिए पर्याप्त है । यथा ५. देवे थुवइ तिदाले पव्वे पव्वे य पोसहोवासं । प्रतिहीण संविभाम्रो मरणते कुणइ सल्लिङ्ग ॥। १५८।। ६. वसु. श्रा. गाथा २१४, १५, १६ । ७. वही, गा० २१७-२० । ८. जो गुणइ लक्खमेणं प्रथविही जिन गमोपकारं । तित्ययरनामगोत सो बंध णत्थि सदेही ।। १-१५।। C. 'लघुनवकारफलं' श्वेताम्बर ग्रन्थ की गाथा नं० १२ । · ग्रन्थ का नाम १. वसुनन्दि श्रावकाचार २. भावसंग्रह ३. लघुनवकार फलं ४. जीवदया प्रकरण ५. कार्तिकेयानुप्रेक्षा ६. मोक्खपाहुड ७. मूलाचार भगवती श्राराधना से " 31 " " ४१ उद्धृत गाया संख्या ६० गाथाएँ ७५ २३ १७ ८. ६. वृद्धनवकारफल १०. प्रायणाणतिलय, ११. धारषनासार, १२. कल्याणालोयणा, १३. छेदसत्व, १४. नियमसार, १५. तिलोयपण्णत्त १६. दंसण पाहुड, १७. धम्मरसायण १८. वारस अणुवेक्खा, १६. पचत्पिपाहुड २०. पंचसंग्रह, २१. रिट्ठसमुच्चय २१. सीलपाइड इन ग्रंथों में से १-१ यथा " ܕܐ ६ ३ २ "1 19 :::: " 11 १३ २४५ कुल शेष लगभग ५० गाथाओं में से अधिकांश तीसरे एकोनत्रिशत्प्रकरण एवं तेरहवें दान प्रकरण की गाथाएं है, जिनके संदर्भ नहीं खोजे जा सके। सम्भवतः इस नाम के प्रकरण जिन ग्रन्थों में हों उन्ही से ये गवाएं ली गयीं होंगी। अथवा संग्रहकर्ता ने शायद इतनी गाथाएँ मौलिक रूप से लिली होंगी। इसका निर्णय धागेके अध्ययन से हो सकेगा। 'तत्वविचार' सग्रह प्रमाणित हो जाने के बाद प्रश्न उपस्थित करता है, उतने उसके मौलिक ग्रंथ होने मे न उठते । कुछ प्रमुख प्रश्न विचारणीय हैं । यथा - १. 'तत्वविचार का संग्रहकर्ता कौन ? २. उसका पाण्डित्य एवं समय ? ३. संग्रह ग्रथ निर्माण का प्रयोजन ? ४. ग्रन्थ के रचयिता मे वसुनन्दिसूरि के नाम देने का रहस्य ? ५. दिगम्बर व श्वेताम्बर परम्परा के विचारों के समन्वय का उद्देश्य ? भादि । इस सब पर प्रामाणिक रूप से विचार करना समय सापेक्ष है। श्रमसाध्य भी । विद्वानों से अनुरोध है, इस सम्बन्ध में कोई जानकारी हो या भागे प्राप्त हो तो कृपया सूचित करेंगे ।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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