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ऊन (पावागिरी) के निर्माता राजा बल्लाल वार को हुई थी।
उल्लेख मूति लेख एवं प्रशस्ति दोनों में उपलब्ध है। २. अग्रवाल कुलोत्पन्न मुद्गलगोत्रीय साहू कमलसिंह ६. मूर्ति लेख के अनुसार कमलसिंह की द्वितीय पल्ली संघवी इसके निर्मापक थे तथा महाकवि रइधू इसके प्रति का नाम ईसरा था जिससे चन्द्रपाल नामक पुत्र उत्पन्न ष्ठाचार्य थे।
हुमा । किन्तु प्रशस्ति के अनुसार उसका नाम मल्लिदास ३. भट्टारक गुणकीर्ति के छोटे भाई एवं शिष्य भट्टा
था। हो सकता है कि उसके ये दोनों ही नाम रहे हैं । रक यशःकीति थे जो गोपाचल के काष्ठासघ माथुरगच्छ
एक नाम छुटपन का हो और दूसरा नाम बड़प्पन का। एवं पुष्करगण शाखा के अत्यन्त प्रभावशाली भट्टारक थे
प्रशस्ति के अनुसार कमलसिंह के भाई भोजराज की तथा उन्होंने रइध को शिष्य मानकर उन्हें हर दृष्टि से देवकी नाम की पत्नी से दो पूत्र उत्पन्न हुए चन्द्रसेन एवं प्रशिक्षित कर योग्य बनाया।
पूर्णपाल । जबकि मूर्ति लेख के अनुसार भोजराज का एक ४. मति लेख में भोपा साह के पांच पुत्रों के नामो- ही पुत्र था पूर्णपाल। ल्लेख हैं किन्तु रइधू प्रशस्ति मे चार पुत्रों के ही उल्लेख उक्त अन्तर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मूर्ति हैं। उसमें चतुर्थ पुत्र धनपाल का नामोल्लेख नहीं है। लेख के प्राथमिक वाचन में काफी भ्रम हमा है। वस्तुतः यह प्रतीत होता है कि प्रशस्ति के अकन के समय तक उसके पुनर्वाचन की आवश्यकता है। उससे बहुत सम्भव धनपाल की मृत्यु हो गई थी इसलिए कवि ने उसके नाम है कि हम सत्य के अधिक निकट पहुँच सके। का अंकन नही किया।
जैन मूतिलेखों एवं शिलालेखों के मध्ययन में इस ५. प्रशस्ति में णिउरादेवी का ज्येष्ठ पुत्र कमलसिंह प्रकार की कई गल्तियाँ हुई हैं और एक वार जो गल्ती बताया गया है, किन्तु मूर्ति लेख मे भधायिपति कौल होती है उसका सुधार बड़ी कठिनाई से हो पाता है। अंकित है। वस्तुतः यहाँ कौल नही 'कमलसिंह होना पूर्वापेक्षया अाज हम अधिक साधन-सम्पन्न है, ऐसी स्थिति चाहिए और 'भधायि' (या भद्रा) सम्भवत: उसकी प्रथम मे क्या ही अच्छा हो कि उनका पुनर्वाचन कर उनका पत्नी का नाम रहा होगा । रइधू ने इस पत्नी का उल्लेख प्रशस्तियों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करें मोर जननही किया । हाँ, कमलसिंह की द्वितीय पत्नी सरस्वती का इतिहास के विवाद ग्रस्त प्रशों का सशोधन करें।
ऊन (पावागिरी) के निर्माता राजा बल्लाल
पं० नेमचन्द धन्नूसा जैन
यह दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र मध्यप्रदेश के निमाड ६६६) हो सकता है ऊन नाम की सार्थकता सिद्ध करने जिले में है। यह ब्राह्मण गांव से २७ मील तथा खरगौन के लिए ही यह पाख्यान गढ़ा हो। किन्तु उसमे कुछ से १० मील है। इस क्षेत्र के इतिहास के बारे मे प्रो० ऐतिहासिकता हो तो, बल्लाल नरेश होयसल वंश के वीर हीरालालजी जैन लिखते है, "यह क्षेत्र रेवा नदी के किनारे बल्लाल द्वि०) हो सकते हैं, जिनके गुरु एक जैन मुनि है तथा गाँव के आसपास अनेक खण्डहर दिखाई देते है। थे।" (भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान-पृष्ठ जनश्रुति है कि यहाँ बल्लाल नामक नरेश ने व्याधि से ३३२) । मुक्त होकर सो मन्दिर बनवाने का संकल्प किया था। इन्दौर गजेटीयर में बताया है कि-एक समय बल्लाल किंतु अपने जीवन में वह ९९ ही बनवा पाया । इस राजा किसी दुर्घर व्याधि से ग्रस्त हो गया था। इसलिए प्रकार एक मन्दिर कम रह जाने से यह स्थान 'ऊन' नाम राज्य का कारभार छोड़कर वह गंगा की यात्रार्थ निकला। से प्रसिद्ध हुआ। (इन्दौर स्टेट गझेटीयर, भाग १, पृष्ठ किसी समय वह राजा रानी के साथ इस क्षेत्र में मुक्काम को