SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद्मावतो प्रकाशचन्द्र सिंघई एम. ए., बो. टो. प्रत्येक धर्म में देवी-देवतामों की उपासना की जाती उल्लेख है।' जांगुली के सिर पर पंच फर्णी छत्र , बायें है और उन देवियों का महत्वपूर्ण स्थान रहता है। कुछ हाथ मे सर्प पकड़े हुए, दायें हाथ मे वज और कुंडली देवियां जैन, शंव, हिन्दू और बौद्ध धर्म में एक-सी समानता मारे सर्प पर प्रासीन है।' रखती है। उनमे पदमावती एक देवी है जिसका विवरण अमोघ सिद्धि, जो चौथी तथा नेपाली बौद्धों के चारों धर्मों में एक सा मिलता है। इन देवी-देवताओं के अनुसार पांचवी ध्यानी बुद्ध है, का वाहन गरुण है। कुछ विशिष्ट चिह्न होते है और चिह्नों के आधार पर पुराणो के अनुसार गरुड और सर्प एक दूसरे के शत्रु होते उन देवियों को जान सकते हैं जैसे लक्ष्मी का चिह्न कमल है। इससे साधनमाला मे सप्त फणी सर्प के समान छत्र है जिसे घन देवी कहा गया है ।। को धारण किये-बताया गया है। जैन धर्म में पद्मावती को सर्प की देवी कहा गया है हिन्दू धर्म में सर्प को धारण किये बलराम जी की और सर्प की देवी बौद्ध, शव तथा हिन्दू धर्म मे भी मिलती मूर्ति मिलती है। बिष्णु को तो शेष शय्या पर दिखाया है। पद्म पुराण में पद्मावती को हर की पुत्री कहा गया गया है तथा विष्णु के मिर पर पच फणी सर्प छत्र है। भष्म पुराण मे "देवी पद्म महेशम् समघर वदनं दिखाया जाता है। ...." पद्मावती स्तोत्र मे महा भैरवी कहा गया है । सर्पो (नागों) के विषय में जान लेना भी प्रावश्यक शैव सप्रदाय में 'भैरव' शिव को कहा गया है । 'हर' प्रतीत होता है। प्रमुख नाग पाठ प्रकार अद्भुत पद्मावती (महादेव) सर्प डाले हुए दिखाये जाते है, इसमे 'हर' की कल्प' रघुनदन तिथि तत्व तथा मल्लिषेण के भैरव पुत्री पद्मावती की समानता, पार्श्वनाथ की यक्षिणी ३ तारात्वं सुगमागमे, भगवती गोरीति शैवागमे । पद्मावती जिसके सिर पर सप्त फणी सर्पो का छत्र है, वजा कौलिकशासने जिनमते पद्मावती विश्रुता ॥ से की जाती है। गायत्री श्रुतिशालिनी प्रकृति रित्युक्लासि साख्यागमे । जांगुली जो प्रक्षोभ्या से दूसरी ध्यानी बुद्ध है, सर्प मातभरति ! कि प्रभूत भाषिर्तव्याप्त समस्त स्वया। देवी मानी गई है। साधन माला की सगीति के अनुसार श्लोक २०॥ यह बुद्ध से भी पहले की है क्योकि बुद्ध ने अपने शिष्य पद्मावती स्तोत्र, भैरव पद्मावती कल्प परिशिष्ट ५ पृ. मानंद को इसकी पूजन का मत्र बताया था और यही ४ पिक्चर गैलरी: बड़ोदा स्टेट म्यूजियम, बड़ौदा। साधनामाला मे 'तारा' के नाम से जानी जाती है।' भय ५ बी. भट्टाचार्य : इन्डियन बुद्धिस्ट प्राइकोनोग्राफी पाठ प्रकार के माने गये हैं। सर्प भय भी एक है पर पृ. ५, फनक ८ (सी)। 'तारा' का नाम लेते ही सब भय दूर हो जाते हैं । इसी ६ वदोह ग्वालियर में बलराम की मूर्ति फलक xviii, ए प्रकार जैन धर्म में पद्वती देवी है जिसका नाम लेते ही गाइड टू दी मार्कालाजीकल म्युजियम, ग्वालियर । सब भय दूर हो जाते हैं जैसा कि पद्मावती स्तोत्र में __७ अनंत, वासुकी, तक्षक, कारवीटक, पद्म, महापद्म, १ पद्मपुराण, पृ. २ शंख पाल कुलिक । अद्भुत पद्मावती कल्प चतुर्थ ४६% २ बी. भट्टाचार्य : इन्डियन बुद्धिस्ट माइकोनोग्राफी, इन्डियन बुद्धिस्ट माइकोनोग्राफी; पृ. ५६ ।। पृ. १८५ ८ तिथित्तत्व पृ. १७ संपादित मधुरानाथ शर्मा।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy