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________________ २८८, वर्ष २२ कि.६ भनेकान्त नयसेन के द्वारा धर्मामत का समाप्तिकाल नदन मव. पूजित गुणचन्द्र पंडितदेव के द्वारा मुनि नरेन्द्रसेन को त्सर युक्त 'गिरिशिखिवायुमार्गशशिसख्या' शक वर्ष बत- सवात्सल्य त्रविद्यचक्रवर्ती की उपाधि दी जाने का उल्लेख लाया गया है । इस हिसाब से धर्मामृत का समाप्निकाल करते हुए नयसेन ने अपने धर्मामृत मे इन नरेन्द्रसेन को शकवर्व १०३७ सिद्ध होता है । पर इसमे एक बाधा 'महावागीश' बतलाया है। हमे नयसेन का नाम सर्वप्रथम यह है कि नंदन संवत्सर शकवर्ष १०३७ म न पाकर ई. सन् १०५३ के मुलगद के शिलालेख में ही मिलता शकवर्ष १०३४ में पाता है। शकवर्ष १०३४ का ई० सन् है। मुलगुद शिलालेख के इस १०५३ के समय में २५ १११२ होता हैं । अस्तु नयसेन ने अपने धर्मामृत मे स्वगुरु कम कर देने मे ई० सन् १०२८ होता है। ऐसी स्थिति नरेन्द्रसेन के तप और श्रुत की प्रशसा करते हुए अपने को मे मुलगुंदे का यह शिलालेख ही नरेन्द्र सेन को वादिगज समग्र तर्कशास्त्र की शिक्षा प्रदान करनेवाले बतलाया है। का समकालीन सिद्ध करता है। पूर्वोक्त सभी बातो को साथ ही साथ नयसेन ने गुरु नरेन्द्रसेन को सिद्धात मे ध्यान में रखकर बिचार करने पर 'प्रमाणप्रमेयकलिका' प्राचार्य जिनसेन से शास्त्र पाण्डित्य में पूज्यपाद से और के रचयिता यही नरेन्द्रसेन मालम होते है। प्राशा है कि षट् तर्क में समन्तभद्र से बढकर बतलाया है। मित्रवर डा० दरबारीलालजो कोठिया इस विषय पर फिर चालुक्यचक्रवर्ती भुवन कमल्ल द्वितीय सोमेश्वर से अवश्य विचार करेंगे। रामपुरा के मंत्री पाथूशाह डा० विद्याधर जोहरापुरकर मध्यप्रदेश के मन्दमौर जिले मे रामपुरा एक पुरातन दुर्गराज और चन्द्रराज की सेवा में मुख्य मंत्री के पद पर शहर है । यहाँ पाथूशाह की बावड़ी नाम का एक कुमा नियुक्त हुए थे। लेख मे दुर्गराज की विस्तृत प्रशसा है। इसकी दीवाल में लगी हुई गिला पर तथा समीप मिलती है। इन्होने कई युद्धों में विजय पाई थी, दुर्ग के स्तंभ पर दो संस्कृत शिलालेख है। भारत सरकार के सरस् तालाब खुदवाया था तथा पिगलिका नदी पर बांध पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्रकाशित ग्रन्थमाला एपिग्राफिया बनवाया था। चन्द्रराज की वीरता की भी लेख में प्रशंसा इण्डिका के भाग ३६ में पृ० १२१ से १३० तक ये लेख मिलती है। लेख का उद्देश पाथूशाह द्वारा उपर्युक्त कुएं छपे है । इन्हीं का सक्षिप्त परिचय यहाँ दे रहे हैं। के (जिसे लेख में दीपिका कहा है) निर्माण का वर्णन करना है। यह लेख संवत १६६३ मे लिखा गया था। रामपुरा (जिसे लेख मे दूषणारिपुर भी कहा है) मे कुएं का निर्माण सूलधार रामा की देखरेख में हुआ था। बघेरवाल जाति के ५२ गोत्रो मे एक सेठिया गोत्र के लेख मे पाथशाह के अन्य धर्मकार्यों का भी वर्णन है। संघई नाथू रहते थे । इनके पुत्र स० जोगा थे (इन्हे लेख उन्होंने पूजा, प्रतिष्ठा रथ यात्रा आदि का प्रायोजन में योग भी कहा है)। रामपुरा के चन्द्रावत वशीय राजा किया था तथा इसी लिए राजा ने उनका अभिनन्दन भी अचलदास ने इन्हे अपनी मेवा में नियुक्त किया था। किया था। प्रस्तुत लेख का पूर्ण पाठ जैन शिलालेख सग्रह इन्होंने एक जिन मन्दिर बनवाया था। इनके पुत्र सं० भा० ५ मे भी संगृहीत किया है जो शीघ्र ही भारतीय जीवा और जीवा के पुत्र स० पाथ हए । (लेख मे पाथ ज्ञानपीठ की भोर से माणिकचन्द दि. जैन ग्रन्थमाला में का संस्कृत रूप पदार्थ लिखा है)। ये अचलदास के वशज प्रकाशित होने जा रहा है।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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